शाम के समय हम लोग गिरि राज गोवर्धन पर्वत को भी देखने गये। इसकी कथा कुछ इस प्रकार है।
पुराने समय इन्द्र देव की पूजा होती थी। इस पर कृष्ण भगवान ने आपत्ति की। उनका कहना था कि सबको अपना कर्म करना चाहिये और प्राकृतिक घटनाओं के लिये कोई पूजा या बलि नहीं करनी चाहिये। वृन्दावन-वसियों ने भगवान कृष्ण की बात से सहमत होकर, इन्द्र की पूजा नहीं की। इस पर इन्द्र देव कुपित हो गये तथा तूफान और वर्षा करने लगे। तब कृष्ण भगवान ने इस पर्वत को छोटी उंगली पर उठा कर, वृन्दावन-वासियों की रक्षा की।
यह घटना, भारतीय धार्मिकता में, नयी शुरुवात का द्योतक है - यज्ञ, बलि एवं तुष्टीकरण के स्तर से, कर्म के आध्यात्मिक स्तर पर जाने की। यहां से भारतीय दर्शन में कर्म का महत्व शुरू हुआ। इस दर्शन को, भगवान कृष्ण ने गीता में विस्तार से समझाया है।
यहां पर एक मंदिर भी है। हम लोग वहां भी गये। मन्दिर से, मुझे, यह पर्वत कहीं दिखायी नहीं पड़ा। पुजारी जी से पूछने पर उन्होंने बताया। इस समय यह लगभग समाप्त सा हो चुका है।
गोवर्धन पर्वत की दो परिक्रमाए है। जिनमे से एक १३ किमी तथा दूसरी ९ किमी लम्बी है। कहा जाता है कि इन दोनों परिक्रमाओं को पूरा करने पर मनोकामना पूरी होती है। इसी कारण इसकी परिक्रमा करने लाखों की संख्या में लोग आते हैं। हालंकि जब हम लोग गये थे तब भीड़ काफी कम थी फिर भी बहुत से पुरूष और स्त्री नंगे पैर इस परिक्रमा को पूरी करते हुए दिखे। समय की कमी होने के कारण, हमने यह परिक्रमा कार में बैठ कर पूरी की है।
गोवर्धन परिक्रमा में कुसुम सरोवर |
इसी के साथ मथुरा यात्रा समाप्त होती है बहुत जल्दी हम लोग कुमायूं की यात्रा पर चलेंगे।
इस चिट्ठी का पहला और दूसरा चित्र विकिपीडिया से
मथुरा में एक दिन, पूरे बनारसी जीवन पर भारी - मथुरा यात्रा
रस्किन बॉन्ड।। कन्हैया के मुख में, मक्खन नहीं, ब्रह्माण्ड दिखा।। जहाँपनाह, मूर्ति-स्थल नापाक है - वहां मस्जिद न बनायें।। कृष्ण-जन्मभूमि मन्दिर को महमूद गजनवी ने लूटा।। गाय या भैंस के चमड़े को अन्दर नहीं ले जा सकते।। बांके बिहारी से कुछ न मांग सका।। देना है तो पशु वध बन्द करवा दें।। माई स्वीट लॉर्ड।। चित्रकला से आध्यात्म।। शायद भगवान कृष्ण यहीं होंगे।। महिलायें जमीन पर लोट रही थीं।। हमारे यहां भरतपुर से अधिक पक्षी आते हैं।। भारतीय़ अध्यात्मिकता की नयी शुरुवात - गोवर्धन कथा।।
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चलिए कुमाऊं की ओर..
ReplyDeleteआस्थायें धीरे धीरे आसपास के प्रतीकों पर आधारित होती गयीं।
ReplyDeleteइंद्र देवराज जरुर हैं मगर उनमें कुछ दुष्प्रवृत्तियाँ भी पुराण कथाओं में इंगित हुयी हैं ....गौतम ऋषि की अनुपस्थिति में उन्होंने उनकी पत्नी से दुराचार का प्रयास किया था ...शाप ग्रस्त हुए -कामुकता की इन्गिती स्वरुप उन्हें सहस्र भग अभिशाप मिला --जो बाद में अनुनय विनय के बाद सहस्र नेत्रों में बदल गया -इरानी ग्रन्थ अवेस्ता में इंद्र से मिलते जुलते एक चरित्र का उल्लेख है ....कृष्ण ने इंद्र को चुनौती दी -घोर युद्ध हुआ मगर कृष्ण ने अपनी रणनीतियो से गोवर्धन की कंदराओं में गोकुल-ब्रज वासियों को छुपाकर उनकी रक्षा की ....पुराण इस घटना को अपनी तरह प्रस्तुत करते हैं ! हमें भी हिम्मत नहीं हुयी थी पद प्रदक्षिणा की !
ReplyDeleteकर्म की ओर जाने की जानकारी सर्वथा नयी है ... आभार
ReplyDeleteगीता ग्रन्थ जीवन का सच्चा मार्गदर्शक है
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