इस चिट्ठी में, गोकुल-मथुरा में रमण रेती आश्रम की चर्चा है।
रमण रेती पर बालू का अनन्द लेते लोग - यह चित्र मेरा खींचा नही है पर इस वेबसाइट के सौजन्य से |
रमण रेती अथार्त ऐसी रेत जिसके स्पर्श से आनन्द हो और रमण रेती आश्रम की रेत कुछ इसी तरह की है। इसी लिये, गोकुल-मथुरा में स्थित इस आश्रम में, कोई भी जूते, चप्पल पहन कर कोई नहीं जा सकता है। यहां नंगे पांव ही चलना पड़ता है। यहां यमुना की रेत है इसमें कोई भी कंकड नहीं है। इसी लिये यहां नंगे पाव चलने में कोई असुविधा नहीं होती और अच्छा लगता है।
वहां पर साधू एवं सन्तों के ठहरने के लिये कुटियाएं थी - अधिकतर में एयर कंडिशनर लगे थे।
प्रसाद के रूप में, खाने को खिचड़ी मिली, जो स्वादिष्ट लगी।
गोकुल में, कालिया पर कन्हैया - चित्र विकिपीडिया से |
'लोगों का विचार है कि भगवान कृष्ण बचपन में यही पर घूमा करते थे और उनके पैर इसी बालू पर पड़े होगें। इसीलिए लोग यहां आकर लोटते हैं ताकि इस पवित्र मिट्टी से वे भी पवित्र हो सकें।'सच है कि हम वही हवा, वही मिट्ठी, वही पानी प्रयोग कर रहे हैं जो अरबों साल से है। प्रकृति मां, हमें इनका पुनः प्रयोग करने देती है।
पृथ्वी, हमारे पास, वंशजों की धरोहर है। हमें इसका इस प्रकार से उपयोग करना है कि हमारी आने वाली पीढ़ी भी उसी तरह इसका प्रयोग कर सके जैसे हम कर रहें हैं। यदि हम दुरुपयोग करेंगे या फिर दिन दूने, रात चौगने बढ़ते जायेंगे तो हो सकता है कि हमारी आने वाली पीढ़ी इसका उपयोग न कर सके। हमें इसके लिये सावधानी बरतनी है।
रमण रेती आश्रम में एक भजन
मथुरा में एक दिन, पूरे बनारसी जीवन पर भारी - मथुरा यात्रा
रस्किन बॉन्ड।। कन्हैया के मुख में, मक्खन नहीं, ब्रह्माण्ड दिखा।। जहाँपनाह, मूर्ति-स्थल नापाक है - वहां मस्जिद न बनायें।। कृष्ण-जन्मभूमि मन्दिर को महमूद गजनवी ने लूटा।। गाय या भैंस के चमड़े को अन्दर नहीं ले जा सकते।। बांके बिहारी से कुछ न मांग सका।। देना है तो पशु वध बन्द करवा दें।। माई स्वीट लॉर्ड।। चित्रकला से आध्यात्म।। शायद भगवान कृष्ण यहीं होंगे।। महिलायें जमीन पर लोट रही थीं।।
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बड़ा आनन्द आता रमणरेती की रेत पर..
ReplyDeleteAisee koyee jagah hai ye pata nahee tha!
Deleteabhi hm allahabad men yamuna kinare hi rahte hain...sach much iski ret badi mulayam si hoti hai!!magar yahan par us ret par khel nhi sakte to ramanreti me bahut maza aata..
ReplyDeleteजो उस आश्रम में रहते हैं उनकी श्रद्धा यह रेत ही है। मुझे भी एक परिवार मिला था जो अपना शेष जीवन यही काटना चाहता था।
ReplyDeleteसारगर्भित आलेख ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका सवागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/
ReplyDeleteकुछ जगहों पर अधिक ही आनंद आता है.
ReplyDeleteजहां किशन कन्हाई रहे हों वहां रमण रेत न हो भला यह कैसे संभव था ...
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