Saturday, November 21, 2015

हीरा देने वालों का दिल भी हीरे जैसा

इस चिट्ठी में महारानी विक्टोरिया के एक प्रसंग और एक विज्ञापन से, तहज़ीब के बारे में चर्चा है। 

महारानी विक्टोरिया - चित्र विकिपीडिया से
महारानी विक्टोरिया भारत के बारे में उत्सुक रहती थीं और बहुत अच्छी उर्दू लिख और बोल सकती थीं। उनके पास, जब भारत से महत्वपूर्ण लोग मिलने आते और अंग्रेजी में बात करते, तब उनका खालिस उर्दू में जवाब सुन, वे आश्चर्यचकित रह जाते थे। उर्दू में इतना अच्छा ज्ञान उन्हें अब्दुल करीम से मिला था। अबदुल करीम नौकर से कब उनका सबसे करीब जा पहुंचा, इसकी की भी अपनी कहानी है पर पहले कुछ बाद महारानी विक्टोरिया के बारे में।

महारानी विक्टोरिया अपने पती राजकुमार एलबर्ट से बेहद प्यार करती थीं। लेकिन उनकी मृत्य १८६१ में हो गयी। उस समय, उन्हें समझ और हमदर्दी अपने नौकर जॉन ब्राउन से मिली। लेकिन ब्राउन की भी मृत्यु १८८३ में हो गयी। इसी बीच १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम के बाद, भारतवर्ष की सत्ता ईस्ट इंडिया कंपनी से अंग्रेज हुकूमत के पास चली गयी और विक्टोरिया भारत की भी महारानी हो गयी।

भारत की महारानी बनने के बाद, राजा रानियां भी उनके दरबार में पहुंचने लगीं। उस समय उन्होंने इच्छा जाहिर  की, कि उनके दरबार में भारत का भी प्रतिनिधित्व हो। इस पर उनके सैन्य दल में भारत के सैनिकों का घोड़ा दल भी शामिल हो गया। इसके साथ, उन्होंने भारत से नौकरों की भी मांग की। इस तरह से २४ साल के, लम्बे एवं सुन्दर नौजवान अब्दुल करीम उनके पास पहुंचे। 

अब्दुल बहुत जल्दी से महारानी के करीब हो गये और उन्हें कभी भी नौकर नहीं समझा गया। वे उनके इतने करीब हो गये कि महारानी उन्हें नाइट की पदवी देना चाहती थीं पर वाइसरॉय एवं प्रधान मंत्री की आपत्ति के बाद उसे नाइट की पदवी तो नहीं मिली पर कमांडर ऑफ विक्टोरियन ऑडर से नवाज़ा गया। अब्दुल ने ही महरानी को उर्दू लिखना बोलना सिखाया। यदि आप इन दोनो के बारे में और जानना चाहें तो श्रबानी बासू की 'विक्टोरिया एण्ड अब्दुल' पढ़ें।
 
बचपन में महारानी विक्टोरिया का एक किस्सा सुना करते थे। एक बार भारत से एक राजा महारानी के पास मिलने के लिये पहुंचे। महारानी ने उन्हें रात्रि भोजन पर अन्य प्रमुख लोगों के साथ बुलाया। खाने के बाद, उंगलियाँ धोने के लिये कटोरा आया। राजा अंग्रेजी तरीकों से अनभिज्ञ थे। वे समझे कि इसे पीना है। उन्होंने कटोरे को हाथ में लेकर पीना शुरू किया। यह देख कर सारे मेहमान हतप्रद रह गये उनकी समझ में नहीं आया कि क्या करना चाहिये। इतने में महारानी ने भी कटोरे को हाथ में लेकर उसी तरह से पीना शुरु किया जैसे कि राजा पी रहे थे। इस पर वहां के सभी मेहमान ने भी उसी तरह से पीना शुरू किया।

मैं कह नहीं सकता कि यह सच है कि नहीं या यह भारत के किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के बारे में है या किसी अफ्रीकी के बारे में। लेकिन यह अंतरजाल पर भी पढ़ने को मिलता है।

'उन्मुक्त जी, लेकिन आप तो किसी विज्ञापन और हीरे के बारे में बात करना चाहते थे लेकिन आप तो महारानी को लेकर बैठ गये।'

लीजिये वह विज्ञापन भी हाजिर है जिसे देख कर यह किस्सा याद आया। यह विज्ञापन भी इसी किस्से का भारतीयकरण है :-)  
 


उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।

About this post in Hindi-Roman and English
is ctthi Queen Victoria ke ek prasang se, ek vigyapan aur tehjeeb ke baare charcha hai. yeh hindi (devnaagree) mein hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

This post is about an incident of Queen Victoria, an advertisement, and etiquette. It is in Hindi (Devanagari script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

सांकेतिक शब्द
culture, Family, Inspiration, life, Life, Relationship, Etiquette, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन, दर्शन, जी भर कर जियो, तहज़ीब, 

3 comments:

  1. हमेशा की तरह जानकारी युक्त और शिक्षाप्रद लेख

    सामने वाले की भूल, कमी/कमजोरी या गलती को छुपाना सभी से नहीं आता। :-)

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  2. अच्‍छा लेख प्रस्‍तुत किया है आपने।

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  3. वाह उन्मुक्त जी जोरदार समापन किया।
    रोचक प्रेरक पसंद ,महानता क्या होती है यह एक अच्छा दृष्टांत है।
    करीम जैसे जन सामान्य को इतना बड़ा सम्मान और ऐसी मेहमाननवाजी किसी साधारण
    व्यक्ति के सोच से भी परे है !

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