मैं अब फेसबुक पर नहीं हूं। अब केवल गूगल प्लस, ट्वीटर और चिट्ठों पर हूं। ऐसा क्यों है इसके बारे में, इस चिट्ठी चर्चा है।
आज जब मैंने फेसबुक पर जाने का प्रयत्न किया तो उसने लॉग-इन करने से मना कर दिया। उसने इस बात की पुष्टि करनी चाही कि क्या फेसबुक पर मेरा नाम वासतविक है। यदि वास्तविक नहीं है तो मुझे अपना असली नाम बताना होगा।
मैं भारत के एक छोटे शहर से, एक साधारण व्यक्ति हूं। मेरे विचार ही मेरा परिचय हैं। मैं अपने विचारों के लिये पहचाने जाना पसन्द करता हूं न कि नाम या परिचय के कारण। यही कारण है कि मेरे सारे लेखों में कोई कॉपीराइट नहीं है। इन्हें किसी को भी कॉपी करने, संशोधन करने, की स्वतंत्रता है। यदि आप मुझे इसका श्रेय देंगे तो अच्छा है, न देंगे तो भी चलता है।
फेसबुक का कहना है कि वे चाहते हैं कि लोग जाने के वे किसी वास्तविक व्यक्ति से बात कर रहे हैं न कि किसी काल्पनिक व्यक्ति से। लेकिन शायद यह सही नहीं है। मेरा अनुमान है कि यह विज्ञापन दाता के कहने के अनुसार हो रहा है। वे वास्तविक लोगों की संख्या जानना चाहते हैं न कि काल्पनिक लोगों की। विज्ञापन के पैसे लोगों की वास्तविक संख्या पर निर्भर रहते हैं।
हमारे संविधान का कोई भी अनुच्छेद, स्पष्ट रूप से एकान्तता की बात नहीं करता है। अनुच्छेद २१ स्वतंत्रता एवं जीवन के अधिकार की बात करता है पर एकान्तता की नहीं। हालांकि कुछ निर्णयों में उच्चत्तम न्यायालय ने एकान्तता के अधिकार को, अनुच्छेद २१ के अन्दर, स्वतंत्रता एवं जीवन के अधिकार का हिस्सा माना है। इस समय आधार कार्ड की वैधानिकता को चुनौती देनी वाली याचिकाओं में यह सवाल संवैधानिक पीठ के समक्ष भेज दिया गया है।
कानून अपनी जगह है, मुझे अपनी एकान्तता पसन्द है। मैं अपना परिचय देने से बेहतर फेसबुक से बाहर जाना उचित समझता हूं। इसलिये अलविदा फेसबुक - मैं चिट्ठों पर मिलूंगा, गूगल+ पर मिलूंगा, ट्विटर पर मिलूंगा लेकिन फेसबुक पर नहीं।
अलविदा फेसबुक
आपका चिट्ठों, ट्विटर और गूगल+ पर इन्तज़ार रहेगा। वहां आपका स्वागत है
आपका चिट्ठों, ट्विटर और गूगल+ पर इन्तज़ार रहेगा। वहां आपका स्वागत है
उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।
सांकेतिक शब्द
। culture, Family, Inspiration, life, Life, Relationship, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन, दर्शन, जी भर कर जियो,
आपकी जीवन जीने की अपनी शर्त है, फेसबुक की शुरु से ही छद्मनामों के विरुद्ध नीति रही है. मैं तो अनिर्णय की स्थिति में पहुंच गया हूं. आपकी कमी खलने वाली है.
ReplyDeleteजान कर दुःख हुआ कि अब फेसबुक पर मुलाकात नहीं हो पायेगी. पर चिट्ठे पर निरंतर सक्रियता बनी रहे.
ReplyDeleteफेसबुक की सोच गलत है। इस नीति के प्रतिकार के बारे में और क्या किया जा सकता है? मैं सहयोग देना चाहूंगा।
ReplyDeleteयही।मंच ठीक है
ReplyDeleteहम भी अब नाम मात्र के लिए हैं वहाँ
मैं तो वहाँ शुरू से ही नाममात्र के लिए था. अब भी केवल लिंक टिकाता हूँ. :)
Deleteफेसबुक की इस नीति का प्रतिकार किया जाना चाहिए।
ReplyDeleteफेसबुक गलत नहीं है. वह सेवा देता है तो शर्तें रखने का हक़ उसे है.
ReplyDeleteठीक इसी तरह फेसबुक पर रहने, न रहने का अधिकार आपके पास है.
मैंने फेसबुक को गलत नहीं कहा। मैंने केवल एक सूचना दी की मैं क्यों अब इस पर नहीं रह पाउंगा। फेसबुक को अपनी शर्ते रखने का अधिकार है।
Deleteयह हर व्यक्ति पर निर्भर है कि वह जीवन में किसे महत्वपूर्ण समझता है - फेसबुक या एकान्तता को। मुझे एकान्तता फेसबुक से अधिक प्रिय है इसलिये उसे छोड़ दिया।
ब्लॉग पर तो आते ही हैं....यहां निरंतरता बनाये रखिये
ReplyDeleteप्रणाम
केवल इस कारण फेसबुक को त्याग देना समझ नहीं आया, लेकिन यह आपकी अपनी मर्ज़ी है और आप फेसबुक पर न जाने के लिए स्वतंत्र हैं. लेकिन और भी कई कारण हैं फेसबुक पर न जाने के और ब्लॉग के साथ जुड़े रहने के, उनमें से एक यह कि जिस तरह और गंभीरता से आप यहां अपने विचार रख पाते हैं और आपको टिप्पणियाँ मिलती हैं, है न? फेसबुक जैसे माध्यम में संभव नहीं. ब्लॉग पर बने रहिए!
ReplyDeleteचिट्ठों की अपेक्षा, फेसबुक लोगों से जुड़े रहने का बेहतर माध्यम है। मैं इससे जुड़े रहना चाहता था पर मुझे अपनी एकान्तता अधिक पसन्द है। इसलिये फेसबुक छोड़ना पड़ा।
Deleteदुखद
ReplyDeleteअनामी फ़ेसबुक के लिए टॉर के साथ फ़ेसबुक की एक और सेवा है... पर शायद वह अभी प्रयोगशाला (बीटा) में ही है. बहरहाल, आप केवल (और केवल) ब्लॉग में बने रहें - यह हमारी भी इल्तिज़ा है. बहुत सारा संस्मरण और ज्ञान है आपके पास बांटने को. आपको तो फुलटाइम ब्लॉगर बन जाना चाहिए अब तो. :)
ReplyDeleteजी , हम अब फिर ब्लॉगिंग में सक्रिय होंगें । शुभकामनायें
ReplyDeleteइंटरनेट पर ऐसा अक्सर देखने को मिलता है। जो भी हुआ उसे किसी भी लिहाज से उचित नहीं कहा जा सकता।
ReplyDeleteएकांत भी जरुरी है और जुड़ा रहना भी। देखते हैं कितने दिन निभती है।
ReplyDeleteमुझसे सात दिन की मोहलत, अपनी पहचान बताने के लिया दिया गया था। यह तो पूरे हो गये मैंने अपनी पहचान नहीं दी है। लेकिन फेसबुक ने मेरा नाम फिलहाल तो नहीं हटाया :-)
Deleteसनातन जी आप जैसे मेधा सम्पन्न सुधि जन का हमेशा साथ रहे चाहे किसी भी रूप में हो ।।
ReplyDeleteआप का स्मरण रहेगा