किसी भी स्थिति पर, पक्ष और विपक्ष, दोनो के तर्क होते हैं। कुछ लोग, इन तर्को को अच्छी तरह से समझ लेने के बाद भी, निर्णय नहीं ले पाते; कुछ निर्णय लेने में तो सक्षम हैं पर निर्णय के पहले सब तरह के तर्कों को सुनते नही; कुछ अन्य भी, निर्णय लेने में सक्षम हैं और यह निर्णय सब तर्कों को सुन कर ही लेते हैं।
पहले वर्ग के लोग, निर्णय लेने में घबराते हैं, यथा-स्थिति पर विश्वास करते हैं। ऐसे लोगों पर गलती मढ़ने का कम मौका आता है। अधिक-तर अधिकारी-वर्ग इसी श्रेणी में आता है। सारे फैसलों को टालते रहते हैं। बहुत से लोगों का सोचना है कि पहले की सरकार कुछ इसी श्रेणी में थी। अब, इसके बारे में, कोई टिप्पणी करने का औचित्य नहीं है।
दूसरे और तीसरे वर्ग के लोग कर्म योगी होते हैं, निर्णय लेने में घबराते नहीं। लेकिन यह जरूरी नहीं के इनके निर्णय हमेशा गलत या हमेशा सही हों।
- दूसरे वर्ग के निर्णय हमेशा गलत नहीं होते। अक्सर, समय पर निर्णय महत्वपूर्ण होता।
- तीसरे वर्ग के निर्णय हमेशा सही नहीं होते। सोच विचार कर लिये गये फैसले भी अक्सर गलत हो जाते हैं।
लॉकडाउन का फैसला आसान नहीं था। सरकार ने इसे मजबूती से लिया। यहां यह प्रसांगिक नहीं है कि फैसला - ठीक समय से लिया, या देरी से; इसे लेने के बाद, लोगों को इससे झूझने के लिये कुछ और समय देना चाहिये था या ४ घन्टे पर्याप्त थे - क्योंकि यह हो चुका है। यहां यह भी प्रसांगिक नहीं है कि दिहाड़ी मजदूरों को लॉकडाउन के बाद घर वापस जाने देना चाहिये था या नहीं। क्योंकि, यह भी फैसला लिया जा चुका है। उन्हें वापस नहीं जाने दिया गया।
हांलाकि, इस समय यह प्रसांगिक है कि जब भारत सरकार ने उन्हें वापस भेजने की अनुमति दे दी, तब उसके बाद भी, कुछ राज्यों के द्वारा - उन्हें वापस न जाने देना; या श्रमिक ट्रेनों को रद्द करवा देना; या जिस राज्य से दिहाड़ी मजदूर आते हैं, उनके मुख्य मंत्रियों से कहना कि वे अपने दिहाड़ी मजदूरों को वापस न आने दें - कितना उचित है। क्या इसे अंजाम देना चाहिये अथवा नहीं।
उन्मुक्त जी, अच्छा बेवकूफ बनाते हैं। शीर्षक कुछ देते हैं कि पाठक झांसे में आकर, चिट्टी पढ़ने आ जांय फिर लिखने कुछ और ही लग जाते हैं। अच्छा, चलिये थोड़ा और पढ़ के देखते हैं। शायद, शीर्षक पर कुछ चर्चा मिले।जो राज्य दिहाड़ी मजदूरों को रोकना चाहते हैं। उनका कहना है कि दिहाड़ी मजदूरों का भविष्य, उनके राज्य में उज्जवल है। वहां रोज़गार है, काम है। वापस जा कर बिना काम रहना है, कुछ दिन बाद वे पुनः वापस आना बेवकूफी है। यह लोग अपने फैसले लेने में सक्षम नहीं है। यह लोग भावनाओं में बह रहें हैं।
दूसरी विचारधारा है, भावनाओं का महत्व है। यदि उन्हें समझाने के बाद भी, उनका वहां रुकने का मन नहीं - तो क्या वे खुश रह पायेंगें; क्या वे दिल से काम कर पायेंगे; यदि दिल से न काम कर पायें, तो क्या वे अच्छा काम कर सकेंगे? हम लोकतंत्र हैं तानाशाही नहीं।
मेरे विचार से, भावनाओं का महत्व है। किसी को उनकी इच्छा के विरुद्ध रोकना गलत है। यदि वे वापस अपने गांव जाना चाहते हैं तो सरकारों का कर्तव्य है कि उन्हें वापस जाने दे।
दिहाड़ी मजदूरों की वापसी, उन राज्यों को भी चुनौती है, जहां के वे हैं - क्या वह वापस आये दिहाड़ी मजदूरों को रोज़गार मुहैया करा पायेगा; क्या वह वहां नयी फैक्टरियां शुरू करवा पायेगा; कया वह इनको काम दिलवा पायेगा? चीन से कई कम्पनियां बाहर निकलना चाहती हैं। क्या ऐसे राज्य, अपने यहां के काबिल लोगों के हांथ में लगाम देकर, नयी फैक्टरियां शुरू करवा कर, अपने लोगों को काम दिलवा सकेंगे? क्या उन्हें ऐसी चुनौती स्वीकार करनी चाहिये?
पिछली शताब्दी भौतिक शास्त्र की थी। यदि आप बुद्धिमान थे और दुनिया को बदलने का सपना देखते थे तो आपका रास्ता भौतिक शास्त्र से गुजरता था। भौतिक शास्त्र मेरा प्रिय विषय था। शुभा तो गणित पढ़ाती है। मैं उसे हमेशा चिढ़ाता था कि भौतिकि तो महरानी है और गणित नौकरानी।
लेकिन, समय होत बलवान। अब, सब बदल गया। यह शताब्दि जीव विज्ञान या उससे मिले विषयों की है और गणित के बिना आपका ठौर नहीं। यह नौकरानी नहीं है। आज यह सब विषयों की रानी है। लगभग साढ़े तीन हज़ार साल पहले, संस्कृत में लिखा यह श्लोक, जितना सच आज है, उतना कभी नहीं रहा।
यथा शिखा मयूराणां नागानां मण्यो यथा।इसके बारें यह चिट्ठी और इसकी टिप्पणियों को देखें।
तथा वेदाङ्गशास्त्राणां गणितं मूर्धनि स्थितम्।।
जिस तरह से,
मोरों के सिर पर कलगी,
सापों के सिर में मणियां,
उसी तरह विज्ञान का सिरमौर गणित।।
मैंने पिछली चिट्ठी में, कटैस्ट्रफी थ्योरी की चर्चा की थी यह कुछ इस तरह के, दोराहों का भी अध्यन करती है। क्या अच्छा हो कि दोनों कारणों और उनके परिणामों का गणितीय मॉडल निकाला जाय। उसके बाद निर्णय लेकर, आगे काम आगे किया जाय। लेकिन, यह तुरन्त किया जाय यदि देर होती है तब तो सरकारों का पहले वर्ग में आना तय है।
सांकेतिक शब्द
। संस्कृति, संस्कार, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन, दर्शन, जी भर कर जियो, तहज़ीब,
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Mathematics is the language of Universe , but Physics is what it speaks .
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