इस चिट्ठी में, एक ग्रुप के स्कूल, कॉलेजों के वार्षिकोत्सव के साथ, चर्चा है कि आने वाली पीढ़ी को, हम न केवल सपने देखने दें पर उन्हें पूरा करने के लिये प्रेणना भी दें।
जीवन की शाम में, सबसे सुखद अनुभव, किसी भी स्कूल या कॉलेजों के समारोह पर जाना होता है। आने वाली पीढ़ी का उत्साह, उनकी ऊर्जा, उनके सपने, न केवल आपको आनन्दित करते हैं पर आपको भी युवा बना देते हैं।
इस साल के शुरू में, मुझे एक ग्रुप के द्वारा संचालित कॉलेजों (लॉ और मैनज्मन्ट) और स्कूलों के वार्षिकोत्सव में रहने का मौका मिला। विद्यार्थियों के साथ उनके माता-पिता का भी उत्साह, ऊर्जा देखते ही बनती थी। स्कूल व कॉलेज, सब जगह सहशिक्षा थी, शायद लड़कियां की संख्या अधिक थी, लड़कों की कम। शायद इसी लिये, प्रधानाचार्य जी ने, अपने भाषण में एक महत्वपूर्ण बात कही,
'जब आप एक बेटी को पढ़ाते हैं तो एक देश पढ़ता है।'एकदम सच, दिल को छूने वाली।
मुझे अपने परिवार की, अपने बाबा जी की, अपनी मां की याद आयी। अपने को रोक नहीं पाया। वहां दो किस्से सुनाने को सोचा था - पहला वाला तो सुनाया पर दूसरे को छोड़, अपनी मां की बात करने लगा, उनके क्या सपने थे, हमारे परिवार ने, उन्हें पूरे करने दिये या फिर मझधार में छोड़ दिया। अपनी मां के बारे में, कुछ चर्चा यहां भी।
जरूरी है कि हम आने वाली पीढ़ी को न केवल सपने देखने दें पर उन्हें पूरा करने का मौका और प्रेणना भी दें।
नीचे का विज़िट, मेरे भाषण का है।
सांकेतिक शब्द
। संस्कृति, संस्कार, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन, दर्शन, जी भर कर जियो, तहज़ीब,
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जितना सुंदर आप लिखते हैं, उतनी ही शानदार आपकी आवाज भी है। आपका भाषण सुनकर बड़ा अच्छा लगा। शुक्रिया।
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