Monday, August 11, 2025

इलाहाबाद उच्च न्यायालय में FOSS की शुरुवात

यह चिट्ठी 'भारतीय न्यायालयों में FOSS का प्रयोग: इलाहाबाद उच्च न्यायालय से प्रेरित' श्रंखला की तीसरी कड़ी है। इसमें चर्चा है कि इलाहाबाद उच्च् न्यायालय में, क्यों और किस तरह से FOSS का प्रयोग करना शुरू हुआ। 

भारतीय न्यायालय में FOSS का प्रयोग: इलाहाबाद उच्च न्यायालय से प्रेरित

परिचय।। भारतीय न्यायालयों का कम्प्यूटरीकरण।। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में FOSS की शुरुवात।। 

मैंने अपना पहला डेस्कटॉप १९९० में खरीदा था। उस समय, इसके लिए छह महीने इंतज़ार करना पड़ा था। यह DOS पर था। मैंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में, ५ फरवरी १९९९ को शपथ ली। इसी बीच, मैंने चार और डेस्कटॉप खरीदे और समय-समय पर उन्हें अपग्रेड भी किया।

इस दौरान, मैंने OS2 Warp और Linux के साथ भी प्रयोग किया। लेकिन, कम्प्यूटरों को Windows-95 पर ही रहा, क्योंकि इलाहाबाद में, OS2 Warp या Linux के लिए तकनीकी सहायता आसानी से उपलब्ध नहीं थी।

न्यायाधीश बनने के तुरंत बाद, मुझे इलाहाबाद उच्च न्यायालय की कंप्यूटर समिति में नामित किया गया और बाद में मैं उसका अध्यक्ष भी बना। मैं लगभग एक दशक तक इलाहाबाद की कंप्यूटर समिति से जुड़ा रहा।

जब मैं कंप्यूटर समिति का सदस्य बना, तो मुझे एहसास हुआ कि हमारे पास MS Office के लाइसेंस से ज़्यादा डेस्कटॉप थे। इसका कारण बजट की कमी थी और इसे, इस तर्क पर उचित ठहराया गया कि किसी भी समय उच्च न्यायालय के पास जितने लाइसेंस थे, उससे कम MS Office चलते थे। यह गलत था: एक लाइसेंस प्राप्त सॉफ़्टवेयर केवल एक कंप्यूटर पर अपलोड किया जा सकता है, एक से ज़्यादा पर नहीं। मेरा पहला प्रयास इस गलती को सुधारने का था।

मेरे कंप्यूटर समिति में शामिल होने से पहले, वित्तीय वर्ष 1998-99 में डेस्कटॉप खरीदे गए थे। डेस्कटॉप में कुछ खामियाँ थीं और पूरा भुगतान नहीं किया गया था। जिसने हमें डेस्कटॉप बेचे थे वह मामले को निपटाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन सफल नहीं हो रहा था। समझौते के तौर पर, उसने कुछ और डेस्कटॉप देने की पेशकश की। बातचीत के दौरान, उसने कहा कि अगर लिनक्स आधारित कंप्यूटर स्वीकार कर लिए जाते हैं, तो वह डेढ़ गुना ज़्यादा डेस्कटॉप देगा।

यह प्रस्ताव बहुत अच्छा था, उच्च न्यायालय को अधिक कंप्यूटर मिल रहे थे, और हमारा मुख्य काम वर्ड प्रोसेसिंग का था जो लिनक्स डेस्कटॉप पे अच्छी तरह से हो सकता था। हमने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और वर्ड प्रोसेसिंग के लिए OpenOffice.Org को वर्ड प्रोसेसिंग के लिये प्रयोग करने लगे। 

यह काम पिछली सदी के अन्त या इस सदी के शुरू में हुआ। भारत के देश के न्यायालयों में FOSS पर काम करने वाले हम पहले न्यायालय थे। लेकिन यह बदलाव आसान नहीं था: इसमें समस्याएँ थीं और बहुत विरोध भी हुआ।

आशुलिपिक विंडो मशीनों और MS Office के आदी थे। उन्होंने लिनक्स आधारित डेस्कटॉप पर न काम करने के हर बहाने ढूंढ़े। लेकिन उच्च न्यायालय के कंप्यूटर इंजीनियरों ने बेहतरीन काम किया। सारी समस्याओं को बेखूबी से सुलझाया। अब कोई भी उच्चन्यायालय गैरकानूनी काम करने का आरोप नहीं लगा सकता था।

धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूप से, सभी को FOSS का महत्व समझ में आ गया। यह ज़्यादा किफ़ायती, ज़्यादा स्थिर था, इसमें वायरस नहीं थे और कंप्यूटर गेम भी उपलब्ध नहीं थे - जो काम से ध्यान भटकाने के साथ-साथ बच्चों के लिए भी एक समस्या थे।

जल्द ही, हाई कोर्ट के कर्मचारी हमसे अपने घरेलू कंप्यूटरों में Linux इंस्टॉल करने का अनुरोध करने लगे: इससे उन्हें पायरेटेड वर्ज़न इस्तेमाल करने से छुटकारा मिला, और वे अपने बच्चों को कंप्यूटर गेम पर अपना समय बर्बाद करने से भी रोकना चाहते थे। जल्द ही, सभी को FOSS पसंद आने लगा। हाई कोर्ट को यह इतना उपयोगी लगा कि उसने FOSS को एक नीति के रूप में अपना लिया। ऐसा करने वाला, इलाहाबाद उच्च न्यायालय, पहला न्यायालय था।

अगली चिट्ठी में, हम बात करें कि किस प्रकार से FOSS ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में आगे जगह बनायी। 

One can read English version of the post here.

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