तकनीकी दृष्टि से साफ्टवेयर के दो हिस्से होते हैं । सोर्स कोड (source code) और औबजेक्ट कोड (object code)| इन दोनों को समझने के लिये थोडा कमप्यूटर साफटवेयर के इतिहास को जानना होगा|
सोर्स कोड और औबजेक्ट कोड
कम्पयूटर हम लोगो की भाषा नहीं समझते हैं| वे केवल हां या ना, अथवा 1 अथवा 0 की भाषा समझते हैं| हमारे लिये इस भाषा में प्रोग्राम लिखना बहुत मुश्किल है| पहले प्रोग्राम इसी तरह से लिखे जाते थे एक पंच-कार्ड होता था जिसे छेद किया जाता था कार्ड में छेद का मतलब हां और यदि छेद नहीं है तो मतलब ना|
जब कमप्यूटर विज्ञान का विकास हुआ तो ऊचें स्तर की कमप्यूटर भाषाओं (high level languages), जैसे कि बेसिक, कोबोल , सी ++ इत्यादि, का भी ईजाद किया गया| इन भाषाओं में ख़ास सुविधा यह है कि प्रोग्राम अंग्रेजी भाषा के शब्दों एवं वर्णमाला का प्रयोग करते हुये लिखा जा सकता है| जब इस तरह से प्रोग्राम लिख लिया जाता है तो उसे हम सोर्स कोड कहते हैं| अब इसे कमप्यूटर के समझने की भाषा में बदला जाता है|
ऊचें स्तर की कमप्यूटर भाषाओं में एक प्रोग्राम होता है जिसे कम्पाइलर (complier) कहते हैं| कम्पाइलर के द्वारा सोर्स कोड को जब कम्पाइल किया जाता है तो सोर्स कोड कम्पयूटर की भाषा, यानी 1 या 0 की भाषा में, बदल जाता है| इसको औबजेक्ट कोड या मशीन कोड भी कहते हैं| सौफ्टवेर किस तरह से कानून में सुरक्षित होता है, जानने से पहिले कुछ बात बौधिक सम्पदा अधिकारों की - जिसकी चर्चा अगली बार|
ऊचें स्तर की कमप्यूटर भाषाओं में एक प्रोग्राम होता है जिसे कम्पाइलर (complier) कहते हैं| कम्पाइलर के द्वारा सोर्स कोड को जब कम्पाइल किया जाता है तो सोर्स कोड कम्पयूटर की भाषा, यानी 1 या 0 की भाषा में, बदल जाता है| इसको औबजेक्ट कोड या मशीन कोड भी कहते हैं| सौफ्टवेर किस तरह से कानून में सुरक्षित होता है, जानने से पहिले कुछ बात बौधिक सम्पदा अधिकारों की - जिसकी चर्चा अगली बार|
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