कुछ लोग अपने देश भारतवर्ष को धर्म निर्पेक्ष कहते हैं तो कुछ पंथ निर्पेक्ष। मैं इस विवाद में नही पड़ना चाहता कि क्या सही शब्द है पर मै इतना जानता हूं कि हमारा संविधान सब धर्मो का आदर करता है। पर फिर भी इतने सालो बाद हमें धार्मिक उन्माद या धार्मिक पागलपन के अलावा क्या मिला। यदी मैं हुसैन होता तो सरस्वती का वह चित्र न बनाता जिस पर इतना बवाल हुआ। पर यदी चित्र बन गया था तब उस पर इतना बवाल बेकार था लोग अक्सर लीक से हट कर इसलिये काम करते हैं कि वे चर्चा में आ जायें या चर्चा में बने रहें। बवाल करके हुसैन को उससे ज्यादा महत्व दे दिया जितना उन्हे मिलना चाहिये था। इसी तरह से डैनिश व्यंगकार को पैगम्बर का कार्टून नहीं बनाना चाहिये था पर यदी बन गया तो उस पर यह पागलपन बेकार है तथा किसी सरकार के मिनिस्टर के व्दारा उस व्यंगकार के सर पर इनाम रखना; उस मिनिस्टर का सरकार में बने रहना: इस पर न तो मेरे पास उस मिनिस्टर के लिये, न ही उस सरकार के लिये कोई शब्द है।
सही कहा आपने, ऐसे सिरफीरे लोग सरकार में हैं. यह हमारा दुर्भाग्य है. हुसैन की तो छोडिए- इस व्यक्ति की जितनी भर्त्सना की जाए कम है.
ReplyDeletegood article.
"उस िमिनस्टर का सरकार में बने रहने के िलये मेरे पास कोई शब्द नही है"
ReplyDeleteअरे भाई वोट तो है आपके पास, ऐसे लोग इस लिए सरकार में हैं क्योकि लोग ऐसे लोगों को ही वोट देती हैं.
धार्मिक नहीं, इसे साम्प्रदायिक उन्माद कहना चाहिए। धर्म और सम्प्रदाय में तो फ़र्क है।
ReplyDeleteडैनिश व्यंगकार पर एक लेख http://www.nybooks.com/articles/18811
ReplyDeleteपर है, इसे भी देखें|
bilkul satya kaha aapne. magar unmaad dharamon se adhik rajneeti main hai.
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