एडक्कल गुफायें
एडक्कल मलयालम का शब्द है जिसका मतलब होता है चट्टान – चट्टानों के बीच में| यह दो गुफायें हैं जो कि ऊपर की तरफ से एक चट्टान से बन्द है| यह कोई तीस हज्जार साल पहिले भूकम्प के कारण बनी बतायी जाती हैं| कुछ दूर आप जीप से जा सकते हैं, फिर कुछ ऊपर सीड़ियों से, तब टिकट घर जहां से टिकट लीजये, फिर पत्थर तथा लोहे की सीड़ियां, तब गुफायें| पहली गुफा की दीवालों पर कुछ नही है पर दूसरी बहुत कुछ खुदा है| कुछ तस्वीरें हैं जिनकी अपनी कथा है; कुछ पुरानी द्राविदियन भाषा में लिखा है, 'यहां वह शूरवीर आया था जिसने हज़ार शेर मारे हैं'हेरिटेज़ म्यूज़ियम
एडक्कल गुफायें से हम लोग हेरिटेज़ म्यूजियम आये| वहां के मैनेजर ने बतया कि यह ज़िले स्तर का म्यूज़ियम है तथा अपनी तरह का हिन्दुस्तान में पहला| इस म्यूज़ियम में वायनाड ज़िले पायी जाने वाली मूर्तियां तथा ट्राइबल लोगों का समान है| यहां से लेटी हुई सुन्दरी एकदम साफ दिखायी पड़ती है| यदी यहां पर एक दूरबीन होती तो एडक्कल गुफायें को अच्छी तरह से देखा जा सकता था शायद आप कभी भविष्य में जायें तो वहां आपको एक दूरबीन मिले|
जगंल - कुलार्च रेजं
हम लोग शाम को जगंल वायनाड वाईल्ड लाईफ सैक्चुंरी की कुलार्च रेजं से गये| इसके बद जगंल के अन्दर- अन्दर बन्दीपुर राष्ट्रीय वन उद्यान गये जहां पर एक बहुत बड़ा जलाशय है| यहां पर जानवर पानी पीने आते हैं| हम लोगों ने यहां पर हाथियों तथा जगंली सुअरों के झुन्डों को देखा|- रोज़ जगंल के अलग अलग हिस्से पर एक निश्चित दूरी चल कर टाईगरों के पजों के निशान देखे जाते हैं|
- रोज़ जगंल के अलग-अलग हिस्से पर एक निश्चित दूरी चल कर टाईगरों के मल के सैम्पल को लेकर उसकी डी. एन. ए. (DNA) टेस्टिन्ग की जाती है पर अभी यह तक्नीक अपने देश में बहुत विकसित नही है|
- जगंल के अलग अलग हिस्से पर एक निश्चित दूरी पर दो तरफ कैमरे लगायें जाते हैं तथा जब कोई जानवर इनके बीच आता है तो उसकी दोनो तरफ से फोटो ले ली जती है| हर टाईगर की धारियां अलग-अलग होती हैं इससे टाईगरों की पहचान की जा सकती है| यह कैमरे केवल रात मे ही चलते क्योंकि टाईगर रात मे निकलता है| वह इसी प्रकार से शोध कर रहा था|
हम लोग वायनाड मे दो दिन थे| यह कम थे वहां कुछ झरने, द्वीप्समूह, तथा डैम है जो कि समय की कमी रहते हम लोग नही देख पाये| हमारी केरल की यत्रा सुखद थी पर एक बात में कहना चाहूगां, मैने कई जगह छोटे तथा बड़े धार्मिक स्थल बने या बनते देखे, शायद जरूरत से ज्यादा| स्कूल, अस्पताल, कारखाने एक तरह के भाव मन में लाते हैं तथा धार्मिक स्थल कुछ अलग तरह के भाव मन में लाते हैं| कहीं यह किसी तनाव, या अशान्ति का सूचक तो नहीं| यदी ऊपर कोई है तो वह चाहे ख़ुदा हो, या ईश्वर हो, या भगवान हो| वह न ही वह अपने वतन, देश, घर को, पर हमारे देश भारतवर्ष तथा इस विश्व को रहने लायक बना कर रखे - ऐसी कामना, ऐसी इच्छा, ऐसा विश्वास लिये हम घर वापस लौटे|
उन्मुक्त, यात्रा विवरण तो बहुत अच्छा है पर अगर साथ में तस्वीरें भी होतीं तो और भी अच्छा हो जाता.
ReplyDeleteसुनील