Friday, March 03, 2006

दावतें

हमारे देश में खाने की कमी है| ज्यातर जनता को पेट भर खाने को नही मिलता है पर उच्च वर्ग के लोगों को देखें तो उनके यहां दावतें ही दावतें | अक्सर यदी शहर में कोई ख़ास व्यक्ती आया तो सुबह के नाशते से ले कर रात के खाने तक बस खाने में व्यस्थता रहती है या उसकी तैयारी में | जैसे खाने के अलावा कोई काम न हो| जैसे सम्बन्ध स्थापित करने का केवल यही तरीका बचा हो|

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