१. कॉपीराइट की तरह: इस विषय की चौथी पोस्ट (४. ओपेन सोर्स सौफ्टवेर – सौफ्टवेर क्या है) पर चर्चा की थी कि आजकल सोर्सकोड ऊचें स्तर की कमप्यूटर भाषाओं (high level languages) में अंग्रेजी भाषा के शब्दों एवं वर्णमाला का प्रयोग करते हुये लिखा जाता है। यह उस सॉफ्टवेयर के कार्य करने के तरीके को बताता है तथा यह एक तरह का वर्णन है। यदि, इसे प्रकाशित किया जाता है तो उस सॉफ्टवेयर के मालिक या जिसने उसे लिखा है उसका कॉपीराइट होता है।
ऑबजेक्ट कोड कम्पयूटर को चलाता है और यह हमेशा प्रकाशित होता है, परन्तु क्या यह किसी चीज का वर्णन है अथवा नहीं इस बारे में शक था। ट्रिप्स के समझौते के अन्दर यह कहा गया कि कंप्यूटर प्रोग्राम को कॉपीराइट की तरह सुरक्षित किया जाय। इसलिये ऑबजेक्ट कोड हमारे देश में तथा संसार के अन्य देशों में इसी प्रकार से सुरक्षित किया गया है।
कंप्यूटर प्रोग्राम के ऑबजेक्ट कोड तो प्रकाशित होतें हैं पर सबके सोर्स कोड प्रकाशित नहीं किये जाते हैं। जिन कमप्यूटर प्रोग्राम के सोर्स कोड प्रकाशित किये जाते हैं उनमें तो वे कॉपीराइट से सुरक्षित होते हैं। पर जिन कंप्यूटर प्रोग्राम के सोर्स कोड प्रकाशित नहीं किये जाते हैं वे ट्रेड सीक्रेट की तरह सुरक्षित होते हैं।
२. ट्रेड सीक्रेट की तरह: मालिकाना कंप्यूटर प्रोग्राम में समान्यत: सोर्स कोड प्रकाशित नहीं नही किया जाता है तथा वे सोर्स कोड को ट्रेड सीक्रेट की तरह ही सुरक्षित करते हैं। यह भी सोचने की बात है कि वे सोर्स कोड क्यों नही प्रकाशित करते हैं?
सोर्स कोड से ऑबजेक्ट कोड कम्पाईल (compile) करना आसान है; यह हमेशा किया जाता है और इसी तरह प्रोग्राम लिखा जाता है। पर इसका उलटा यानि कि ऑबजेक्ट कोड से सोर्स कोड मालुम करना असम्भ्व तो नहीं पर बहुत मुश्किल तथा महंगा है। इस पर रिवर्स इन्जीनियरिंग का कानून भी लागू होता है। इसी लिये सोर्स कोड प्रकाशित नहीं किया जाता है। इसे गोपनीय रख कर, इसे ज्यादा आसानी से सुरक्षित किया जा सकता है। रिवर्स इन्जीनियरिंग भी रोचक विषय है, इसके बारे पर फिर कभी।
३. पेटेन्ट की तरह: ‘बौधिक सम्पदा अधिकार (Intellectual Property Rights)’ शीर्षक में चर्चा हुई थी कि सॉफ्टवेयर को पेटेन्ट के द्वारा भी सुरक्षित करने के भी तरीके हैं कई मालिकाना सॉफ्टवेयर इस तरह से भी सुरक्षित हैं पर यह न केवल विवादास्पद हैं, पर कुछ कठिन भी हैं। इसके बारे में फिर कभी।
४. सविंदा कानून के द्वारा: सविंदा कानून(Contract Act) भी सॉफ्टवेयर की सुरक्षा में महत्वपूण भूमिका निभाता है। आप इस धोखे में न रहें कि आप कोई सॉफ्टवेयर खरीदते हैं। आप तो केवल उसको प्रयोग करने के लिये लाइसेंस लेते हैंl आप उसे किस तरह से प्रयोग कर सकते हैं यह उसकी शर्तों पर निर्भर करता है । लाइसेंस की शर्तें महत्वपूण हैं। यह सविंदा कानून के अन्दर आता है।
ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर में सोर्स कोड हमेशा प्रकाशित होता है। यह किस प्रकार का सॉफ्टवेयर होता है यह इसके लाइसेंसों की शर्तों पर निर्भर करता है, जिसके अन्तर्गत यह प्रकाशित किये जाते हैं। इसके बारे में बात करने से पहिले हम लोग बात करेगें: कॉपीलेफ्ट (Copyleft), फ्री सॉफ्टवेयर, और जी.पी.एल. {General Public License (GPL)} की। यह उस सौफ्टवेर के कार्य करने के तरीके को बताता है तथा यह एक तरह का वर्णन है यदि इसे प्रकाशित किया जाता है तो उस सौफ्टवेर के मालिक या जिसने उसे लिखा है उसका कौपीराइट होता है|
ऑबजेक्ट कोड कम्पयूटर को चलाता है और यह हमेशा प्रकाशित होता है, परन्तु क्या यह किसी चीज का वर्णन है अथवा नहीं इस बारे में शक था। ट्रिप्स के समझौते के अन्दर यह कहा गया कि कंप्यूटर प्रोग्राम को कॉपीराइट की तरह सुरक्षित किया जाय। इसलिये ऑबजेक्ट कोड हमारे देश में तथा संसार के अन्य देशों में इसी प्रकार से सुरक्षित किया गया है।
कंप्यूटर प्रोग्राम के ऑबजेक्ट कोड तो प्रकाशित होतें हैं पर सबके सोर्स कोड प्रकाशित नहीं किये जाते हैं। जिन कमप्यूटर प्रोग्राम के सोर्स कोड प्रकाशित किये जाते हैं उनमें तो वे कॉपीराइट से सुरक्षित होते हैं। पर जिन कंप्यूटर प्रोग्राम के सोर्स कोड प्रकाशित नहीं किये जाते हैं वे ट्रेड सीक्रेट की तरह सुरक्षित होते हैं।
२. ट्रेड सीक्रेट की तरह: मालिकाना कंप्यूटर प्रोग्राम में समान्यत: सोर्स कोड प्रकाशित नहीं नही किया जाता है तथा वे सोर्स कोड को ट्रेड सीक्रेट की तरह ही सुरक्षित करते हैं। यह भी सोचने की बात है कि वे सोर्स कोड क्यों नही प्रकाशित करते हैं?
सोर्स कोड से ऑबजेक्ट कोड कम्पाईल (compile) करना आसान है; यह हमेशा किया जाता है और इसी तरह प्रोग्राम लिखा जाता है। पर इसका उलटा यानि कि ऑबजेक्ट कोड से सोर्स कोड मालुम करना असम्भ्व तो नहीं पर बहुत मुश्किल तथा महंगा है। इस पर रिवर्स इन्जीनियरिंग का कानून भी लागू होता है। इसी लिये सोर्स कोड प्रकाशित नहीं किया जाता है। इसे गोपनीय रख कर, इसे ज्यादा आसानी से सुरक्षित किया जा सकता है। रिवर्स इन्जीनियरिंग भी रोचक विषय है, इसके बारे पर फिर कभी।
३. पेटेन्ट की तरह: ‘बौधिक सम्पदा अधिकार (Intellectual Property Rights)’ शीर्षक में चर्चा हुई थी कि सॉफ्टवेयर को पेटेन्ट के द्वारा भी सुरक्षित करने के भी तरीके हैं कई मालिकाना सॉफ्टवेयर इस तरह से भी सुरक्षित हैं पर यह न केवल विवादास्पद हैं, पर कुछ कठिन भी हैं। इसके बारे में फिर कभी।
४. सविंदा कानून के द्वारा: सविंदा कानून(Contract Act) भी सॉफ्टवेयर की सुरक्षा में महत्वपूण भूमिका निभाता है। आप इस धोखे में न रहें कि आप कोई सॉफ्टवेयर खरीदते हैं। आप तो केवल उसको प्रयोग करने के लिये लाइसेंस लेते हैंl आप उसे किस तरह से प्रयोग कर सकते हैं यह उसकी शर्तों पर निर्भर करता है । लाइसेंस की शर्तें महत्वपूण हैं। यह सविंदा कानून के अन्दर आता है।
ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर में सोर्स कोड हमेशा प्रकाशित होता है। यह किस प्रकार का सॉफ्टवेयर होता है यह इसके लाइसेंसों की शर्तों पर निर्भर करता है, जिसके अन्तर्गत यह प्रकाशित किये जाते हैं। इसके बारे में बात करने से पहिले हम लोग बात करेगें: कॉपीलेफ्ट (Copyleft), फ्री सॉफ्टवेयर, और जी.पी.एल. {General Public License (GPL)} की। यह उस सौफ्टवेर के कार्य करने के तरीके को बताता है तथा यह एक तरह का वर्णन है यदि इसे प्रकाशित किया जाता है तो उस सौफ्टवेर के मालिक या जिसने उसे लिखा है उसका कौपीराइट होता है|
अगली बार - कौपीलेफ्ट
मेरे खयाल से यह कहना ठीक नही है कि सोर्स-कोड अंगरेजी भाषा में लिखा होता है ; बल्कि यह कहना ठीक रहेगा कि सोर्स-कोड किसी (हाई-लेवेल)कम्प्यूटर-भाषा में लिखा रहता है जिसे पढकर साफ्टवेयर के कार्य करने (या, न करने) के तरीके को समझा जा सकता है |
ReplyDeleteधन्यवाद, मेरे शब्दों का चयन ठीक नही था| अब ठीक कर दिया है|
ReplyDeleteमुक्त स्रोत और मुफ्त स्रोत दोनों में काफी अन्तर है। कुछ मुक्त स्रोत और मुफ्त स्रोत दोनों सुविधाओं वाले होते हैं। लेकिन हर मुक्त स्रोत के साथ यह ईमानदारी तथा कठोरता से लागू होना चाहिए कि उस स्रोत पर आगे विकास करनेवाले व्यक्ति भी अपने अगले विकास-कार्य को मुक्तस्रोत के अधीन जमा करे।
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