Tuesday, December 19, 2006

बासमती चावल का झगड़ा: पेटेंट पौधों की किस्में एवं जैविक भिन्नता

पहला भाग: पेटेंट
दूसरा भाग: पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम
तीसरा भाग: पेटेंट पौधों की किस्में एवं जैविक भिन्नता
पहली पोस्ट: प्रस्तावना
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राइस टेक एक अमेरिकन कम्पनी है यह कासमती और टैक्समती के नाम से चावल बेच रही थी। १९९४ में राइस टेक ने २० तरह के बासमती चावल के लिए पेटेंट प्राप्त करने के लिए यू.एस. पेटेंट एण्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन (यू.एस.पी.टी.ओ.) में एक आवेदन पत्र दाखिल किया। यू.एस.पी.टी.ओ. ने १९९७ में सभी पेटेंटों को मंजूर कर दिया। हमने अप्रैल २००० में तीन पेटेंटों की पुन: परीक्षा के लिए एक आवेदन पत्र प्रस्तुत किया । यह आवेदन पत्र उच्चतम न्यायालय के Research Foundation for Science Technology & Ecology and others Vs. Ministry of Agriculture and others (1999) 1 SCC 655 में की गयी कार्यवाही के तहत किये गये।

राइसटेक ने इन तीन के साथ एक और पेटेंट को वापस ले लिया। बाद में राइसटेक से 11 अन्य पेटेंटों को भी वापस लेने के लिए भी कहा गया जो कि उसने वापस ले लिया। राइसटेक को पेटेंट का नाम भी Basmati Rice lines and Grains से बदल कर Bas 867 RT 1121 and RT 117 करना पड़ा पर अन्त में राइसटेक को अगस्त २००१ में बासमती पर पांच पेटेंट दिये गये।

बासमती चावल हिमालय की तराई में पैदा होता है। इसी तरह से इसके नाम का प्रचलन भी हुआ। यह विश्व के अन्य भाग में पैदा नहीं किया जाता है। किसी अन्य स्थान पर पैदा किया गया चावल को बासमती भी नहीं कहा जा सकता है। बासमती एक भौगोलिक सूचक है। हमने राइसटेक के आवेदन पत्र में पेटेंट के आधार पर आक्षेप किया था लेकिन बासमती का एक ‘भौगोलिक सूचक’ के रूप में दावा नहीं किया था। राइसटेक अमेरिका में पैदा किया गये चावल को, बासमती कहते हुए बेच सकता है। यह अजीब बात है कि अमेरिका में बासमती चावल पैदा हो सकता है।

हमने भौगोलिक उपदर्शन (रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण) अधिनियम १९९९ बनाया है । हमें बासमती को एक भौगोलिक सूचक के रूप में दर्ज करना चाहिये फिर आगे कार्यवाही करनी चाहिये ताकि कोई भी इसके नाम का गलत लाभ न ले सके। अगली पोस्ट पर हम गेंहू पर उठे विवाद के बारे में चर्चा करेंगे।


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