मुझे, दो साल पहले कलकत्ता जाना पड़ा था। हयात ग्रुप का नया होटल बना है, वहीं पर हमारा सम्मेलन था। कमरे बढ़िया इंटरनेट का कनेक्शन, पर वह मेरे लिनेक्स लैपटॉप पर चल कर नहीं दिया। मैंने होटल वालों से कहा। उन्होने एक व्यक्ति को भेजा। वह कोई विशेष्ज्ञय तो नहीं लगता था पर थोड़ा बहुत कंप्यूटर के बारे में जानता था। उसने मेरे लैपटौप को देखा और कहा कि,
'बहुत सुन्दर स्क्रीन है। लगता है विंडोस़ की कोई नयी थीम डाली है।'मैंने कहा,
'यह विंडोस़ नहीं है, लिनेक्स है।'
'लिन्क्स? यह क्या होता है।'उसने आश्चर्य से पूछा।
मैंने,कंप्यूटर के औपरेटिंग सिस्टम के बारे में उसकी क्लास ही ले ली। बताया कि यह कितनी तरह के होते हैं, इनमेम क्या अन्तर होता है, जैसा कि कुछ मैंने अपनी ओपेन सोर्स सॉफ्टवेर की चिट्ठी पर बताया है। उसने मुझसे पूछा कि मैं अगली बार कब आ रहा हूं। मैंने कहा,
'यह क्यों पूंछ रहे हो।'उसका जवाब था,
'मैं लिनेक्स के बारे मैं सब सीख कर रखूंगा ताकि आपको मुश्किल न हो।'बहुत खूब।
पिछले साल कोची में हयात ग्रुप में हुऐ एक सम्मेलन में रहने का मौका मिला। यहां पर भी अनुभव कलकत्ता की तरह ही रहा।
इस साल मुझे गोवा जाना पड़ा। यहां सिडाडे डी गोवा के नाम के होटल में टहरने का मौका मिला। यह एक पांच सितारा होटेल है और बहुत अच्छा है। मुझे लगा कि लिनेक्स काफी लोकप्रिय हो चुका है इसलिये यहां बेहतर अनुभव रहेगा। पर यहां भी, मेरे लैपटॉप के साथ वही हुआ को कि मेरे साथ हयात कलकत्ता में हुआ था।
चलिये, प्यार किया तो डरना क्या। कम से कम तीन लोगों को तो मैंने लिनेक्स के बारे में बताया। वे अगली बार इसके लिये तैयार रहेंगे।
ऐसे आखिरकर, मैंने यहां पर लिनेक्स लैपटॉप की मुश्किल का हल निकाल ही लिया। बस जालक्रम विन्यास में जा कर यदि कोई लैन का कनेक्शन बना है तो इसका आईपी पता स्वचलित कर दे या नया इसी तरह का लैन कनेक्शन बना लें - बस काम फिट।
गोवा और यह होटेल दोनो बहुत अच्छे लगे। इसके बारे में आपको बताउंगा, कुछ चित्र भी लिये थे, वह भी पोस्ट करूंगा। यहां होटेल में दो खास बातें देखने को मिलीः
- महिलाओं की तो नेकरे छोटी होती जा रहीं हैं और पुरषों की बड़ी;
- गोरे चिट्टे (विदेशी) महिला बदन पर जितने कम कपड़े (बस चले तो सब उतार दें पर यह कानूनी तौर पर मना है), और गेहुवें तथा श्याम (मुन्ने की मां जैसी देसी) महिला बदन पर उतने ही ज्यादा।
तो मिलते हैं अगली बार परशुराम की शानती से - अरे बाबा, वही शान्ति, जिसकी हम सब को तलाश है।
प्यार किया तो डरना क्या।। परशुराम की शानती।। रात नशीले है।। सुहाना सफर और यह मौसम हसीं।। डैनियल और मैक कंप्यूटर।। चर्च में राधा कृष्ण।। मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती।। न मांगू सोना, चांदी।। यह तो बताना भूल ही गया।। अंकल तो बच्चे हैं
आप इत्ता सफ़र करते है, लैपटाप उठाने वाले की भी तो जरुरत पड़ती होगी, मै आ जाऊं?
ReplyDeleteआप डिसाइड नही कर पाए, कि होटल पर लिखे या लीनिक्स पर। खैर, गोवा की याद करा कर, लेख लिखने के लिए उकसा दिया आपने। अब झेलिएगा लेख।
आपका लिनक्स के प्रति प्रेम देखकर मेरी भी लिनक्स आजमाने की इच्छा हो रही है.
ReplyDeleteआपकी गोवा के बारे में अगली पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी
भाई कम बुझाया अपन को!!! उ का है की टेक्निकल ज्ञान में अपना हाथ थोड़ा तंगी मे रहता है…।फिर भी लोगों की टिप्पणी से जो प्रतीति हुई वह अच्छा अनुभव करा रही है…।
ReplyDeleteसही है। आगे की फोटुयें दिखाइये ने अपनी दो बातों के समर्थन में !:)
ReplyDeleteमुझे भी लिनक्स का कुछ पता नही और ना ही कभी देखा है। शुरू ज़माने से सिर्फ विन्डोस और माकिंटोश पर काम किया है। भाई आपने गोवा की याद दिलादी... वाह कितने मज़े किए थे हम दोस्तों ने वहां :)
ReplyDeletevivaran ka pravah aacchcha lagaa. Bahut hi saral bhasha mai likha hai. Dhanyavad.
ReplyDeleteDeepak
आपका आभारी हूँ की आपने मेरे पत्र में अपना विचार लिखा। मैने तो सिर्फ शुरूवात ही की थी पर जान कर बहुत प्रसन्नता हुई की मेरे पत्र को भी पढ़ सकता है। और जैसा की आपने चाहा है, मै आपके पत्र को श्रुंखला प्रदान करूंगा। आशा है आप भी ऐसा ही करेंगें। आपका हितचिंतक – उदयन
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