Saturday, May 05, 2007

स्वीय विधि (Personal Law)

(इस बार चर्चा का विषय है महिला अधिकार और स्वीय विधि। इसे आप सुन भी सकते हैं। सुनने के चिन्ह ► तथा बन्द करने के लिये चिन्ह ।। पर चटका लगायें।)

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लिंग के आधार पर सबसे ज्यादा भेद-भाव Personal Law में दिखाई देता है और इस भेदभाव को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है कि समान सिविल संहिता (Uniform Civil Code) बनाया जाय।

हमारे संविधान का भाग चार का शीर्षक है - 'राज्य की नीति के निदेशक तत्व' (Directive Principles of the State policy)। इसके अंतर्गत रखे गये सिद्घान्त, न्यायालय द्वारा क्रियान्वित (Enforce) नहीं किये जा सकते हैं पर देश को चलाने में उन पर ध्यान रखना आवश्यक है । अनुच्छेद ४४ इसी भाग में है। यह अनुच्छेद कहता है कि हमारे देश में समान सिविल संहिता बनायी जाय पर इस पर पूरी तरह से अमल नहीं हो रहा है।

हमारे संविधान के भाग तीन का शीर्षक है - मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)। इनका क्रियान्वन (enforcement) न्यायालय द्वारा किया जा सकता है। इस समय न्यायपालिका के द्वारा मौलिक अधिकारों और राज्य की नीति के निदेशक तत्वों में संयोजन हो रहा है। न्यायपालिका मौलिक अधिकारों की व्याख्या करते हुये राज्य की नीति के निदेशक तत्वों की सहायता ले रहे हैं। बहुत सारे लोग न्यायालयों को प्रोत्साहित कर रहे हैं कि वह देश में समान सिविल संहिता के लिये बड़ा कदम उठाए। उनके मुताबिक:-
  • संविधान के अनुच्छेद १३ के अंतर्गत स्वीय विधि (Personal Law) और किसी दूसरे कानून में कोई अन्तर नहीं है। यदि स्वीय विधि (Personal Law) में भेदभाव है तो न्यायालय उसे अनुच्छेद १३ शून्य घोषित कर सकता है।
  • स्वीय विधि, संविधान के अनुच्छेद १४ तथा १५ का उल्लंघन करते हैं और उन्हें निष्प्रभावी घोषित किया जाना चाहिये।
  • संसद, राजनैतिक कारणों से इस बारे में कोई कानून नहीं बना पा रही है इसलिये न्यायालय को आगे आना चाहिये।

न्यायपालिका ने इस दिशा में एक और कदम Sarla Mudgal Vs. Union of India वा Madhu Kishwar Vs. State of Bihar में उठाया था पर इस कदम को Ahmedabad Women Action Group (AWAG) Vs. Union of India में यह कहते हुये वापस ले लिया कि,
'यह सरकार की नीतियों पर निर्भर करता है जिससे सामान्यत: न्यायालय का कोई संबंध नही रहता है। इसका हल कहीं और है न कि न्यायालय के दरवाजे खटखटाने पर।'
न्यायपालिका आगे क्या करेगी - यह तो भविष्य ही बतायेगा पर शायद पहल उन महिलाओं को करनी पड़ेगी जो इस तरह के भेदभाव वाले स्वीय विधि से प्रभावित होती हैं।

यदि न्यायालयों के निर्णयों को आप देंखे तो पायेंगे कि न्यायपालिका किसी भी स्वीय विधि (Personal Law) को निष्प्रभावी घोषित करने में हिचकिचाती है लेकिन उस कानून की व्याख्या करते समय वह महिलाओं के पक्ष में रहता है। यही कारण है कि अपवाद को छोड़कर न्यायालयों ने कानून की व्याख्या करते समय, उसे महिलाओं के पक्ष में परिभाषित किया। इसके लिये चाहे उन्हें कानून के स्वाभाविक अर्थ से हटना पड़े। यह बात सबसे स्पष्ट रूप से Danial Latif Vs Union of India के फैसले से पता चलती है। इस मुकदमे में मुस्लिम स्त्री (विवाह-विच्छेद पर अधिकारों का समक्षण) अधिनियम १९८६ {Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act 1986} की वैधता को चुनौती दी गयी थी। इसके बारें में हम आगे बात करेंगे।

अगली बार चर्चा का विषय रहेगा - महिलाओं को भरण-पोषण भत्ता।


आज की दुर्गा
महिला दिवस|| लैंगिक न्याय - Gender Justice|| संविधान, कानूनी प्राविधान और अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज।। 'व्यक्ति' शब्द पर ६० साल का विवाद – भूमिका।। इंगलैंड में व्यक्ति शब्द पर इंगलैंड में कुछ निर्णय।। अमेरिका तथा अन्य देशों के निर्णय – विवाद का अन्त।। व्यक्ति शब्द पर भारतीय निर्णय और क्रॉर्नीलिआ सोरबजी।। स्वीय विधि (Personal Law)

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