इस चिट्ठी में, पंकज मिश्रा के द्वारा लिखी पुस्तक 'बटर चिकन इन लुधियाना' (Butter Chicken in Ludhiana) की समीक्षा है।
बटर चिकन इन लुधियाना (Butter Chicken in Ludhiana) भारत के कुछ (१९) शहरों के बारे में यात्रा संस्मरण है। यह यात्रा बस या फिर ट्रेन के द्वारा की गयी है। इसमें लेखक की यात्रा करने का कोई मकसद नहीं बताया गया है पर इसकी भाषा सरल है, अपना प्रवाह है, और यह कहानी है भारत के आधुनिकीकरण और ग्लोबीकरण की। यह किस तरह से इसके छोटे-छोटे शहरों को बदल रही है। वहां के लोग क्या बात कर रहे हैं किस प्रकार से उनकी सोच में परिवर्तन आ रहा है। यह यात्रा संस्मरण इसी परिप्रेक्ष्य में है।
झांसी में युवती, झांसी की रानी बनने की जगह, फैशन के दुनिया की रानी बनने की सोचती है तो बिहार के नक्सलाइट एक क्रान्ति लाने की। नये-नये व्यापारी पैसों को दिखाने के लिये सोने की चेन पहन रहे हैं। कानपुर के दुकानदार कन्याकुमारी में घूमते हुए लंदन जाने की बात सोचते हुऐ इस बात पर चिन्ता कर रहे हैं कि क्या उनकी अंग्रेजी ठीक-ठाक है या नहीं। हापुड़ की शादी में, लोग यह बात कर रहे हैं कि दहेज में १५ लाख मिले या फिर कुछ और ज्यादा।
मुझे, सबसे ज्यादा आश्चर्य बनारस के बारे में पढ़ कर हुआ। मैं, लगभग ४० साल पहले, बनारस अन्तर विश्वविद्यालय प्रतियोगिता खेलने गया था। उसके बाद जाने का मौका नहीं मिला। विश्वविद्यालय के बाहर की जगह लंका के नाम से जानी जाती है। यह केवल इसलिये क्योंकि बनारस में रामलीला के अलग अलग काण्डों का मंचन अलग अलग जगह होता है। इस जगह लंका काण्ड का मंचन होता है। यहां हम लोग सुबह शाम, मुसम्बी का रस, पिया करते थे। एक दिन शाम को गंगा पर नौका विहार भी किया। मेरे पास बनारस की मधुर यादें हैं पर इस पुस्तक में बनारस के बारे में पढ़कर दुख हुआ।
इस के अनुसार बनारस में विदेशी महिलाओं के साथ जितनी छेड़छाड़ और बद्तमीजी है उतनी कहीं नहीं। एक विदेशी महिला बताती है कि, बनारस में आदमी और महिलाओं के अनुभवों में उतना ही अन्तर है जितना दिन और रात में। कुछ बनारसी इसका यह कह कर विश्लेष्ण करते हैं कि वहां एक तरफ तो धार्मिक रूढ़िवादिता है तो दूसरी तरफ सबसे ज्यादा विदेशी - इन दोनों के मिश्रण से ऎसा हो रहा है।
मुशीरादाबार में पंकज जब सलीम से हिन्दु मुसलमान के रिश्तों के बारे में बात करता है तो सलीम कहता है कि,
मालदा के एक रेस्ट्रां में हरियाणा के पर्यटक रात में खाना खा रहें हैं। उनमें से एक , मजाक में, पहेली पूछ रहा है,
इस पुस्तक में सलीम के विचार पढ़ मुझे अपने विद्यार्थी जीवन के वकील मित्र इकबाल कि याद आयी। उसका जिक्र मैंने उर्मिला की कहानी में किया है। वह 'राम-जन्म भूमि - बाबरी मस्जिद विवाद' पर कहता है कि,
मुझे हमेशा लगता है कि धर्म - मन्दिर, मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारा - से उपर है। धर्म तो लोगों को जोड़ता है, यह तो अक्सर ... इसीलिये मैंने अनुगूंज १८: मेरे जीवन में धर्म का महत्व में लिखा था,
झांसी में युवती, झांसी की रानी बनने की जगह, फैशन के दुनिया की रानी बनने की सोचती है तो बिहार के नक्सलाइट एक क्रान्ति लाने की। नये-नये व्यापारी पैसों को दिखाने के लिये सोने की चेन पहन रहे हैं। कानपुर के दुकानदार कन्याकुमारी में घूमते हुए लंदन जाने की बात सोचते हुऐ इस बात पर चिन्ता कर रहे हैं कि क्या उनकी अंग्रेजी ठीक-ठाक है या नहीं। हापुड़ की शादी में, लोग यह बात कर रहे हैं कि दहेज में १५ लाख मिले या फिर कुछ और ज्यादा।
मुझे, सबसे ज्यादा आश्चर्य बनारस के बारे में पढ़ कर हुआ। मैं, लगभग ४० साल पहले, बनारस अन्तर विश्वविद्यालय प्रतियोगिता खेलने गया था। उसके बाद जाने का मौका नहीं मिला। विश्वविद्यालय के बाहर की जगह लंका के नाम से जानी जाती है। यह केवल इसलिये क्योंकि बनारस में रामलीला के अलग अलग काण्डों का मंचन अलग अलग जगह होता है। इस जगह लंका काण्ड का मंचन होता है। यहां हम लोग सुबह शाम, मुसम्बी का रस, पिया करते थे। एक दिन शाम को गंगा पर नौका विहार भी किया। मेरे पास बनारस की मधुर यादें हैं पर इस पुस्तक में बनारस के बारे में पढ़कर दुख हुआ।
इस के अनुसार बनारस में विदेशी महिलाओं के साथ जितनी छेड़छाड़ और बद्तमीजी है उतनी कहीं नहीं। एक विदेशी महिला बताती है कि, बनारस में आदमी और महिलाओं के अनुभवों में उतना ही अन्तर है जितना दिन और रात में। कुछ बनारसी इसका यह कह कर विश्लेष्ण करते हैं कि वहां एक तरफ तो धार्मिक रूढ़िवादिता है तो दूसरी तरफ सबसे ज्यादा विदेशी - इन दोनों के मिश्रण से ऎसा हो रहा है।
मुशीरादाबार में पंकज जब सलीम से हिन्दु मुसलमान के रिश्तों के बारे में बात करता है तो सलीम कहता है कि,
'दोनों के रिश्ते बहुत अच्छे हैं। एक बार बंगला देश से मुसलमानों ने आकर उत्पात मचाना शुरू किया, तो मुसलमानों ने ही उन्हें लताड़ा।'पंकज के पूंछने पर कि बाबरी मस्जिद के टूटने पर मुसलमानों की क्या प्रतिक्रिया रही। सलीम ने कहा,
'कुछ अजीब लगा पर इस बात के बारे में बात करने से क्या फायदा। मुझे कोई असर नहीं पड़ता कि अयोध्या में कितने मन्दिर या मस्जिद रहते है मुशीरादाबाद में कई मस्जिद है और मुझे क्या करना कि कहीं और, जहां मैं कभी न जा पाऊं वहां, कितनी मस्जिद हैं।'
मालदा के एक रेस्ट्रां में हरियाणा के पर्यटक रात में खाना खा रहें हैं। उनमें से एक , मजाक में, पहेली पूछ रहा है,
'खालिस्तान की राष्ट्रीय पक्षी क्या है ?'जब कोई नहीं बता पाया तो पहेलीबाज ने जोर से बोल कर कहा,
'बटर चिकन।'यह लोग देर रात तक हंसते रहे। इनमें से एक ने दूसरे को बताया कि वह हिन्दुस्तान के कई रेस्ट्रां में जा चुका है पर लुधियाना के एक रेस्ट्रां में जितना अच्छा बटर चिकन मिलता है उनता कहीं नहीं,
'एक बार खा लो जीवन सफल हो जाय!'शायद इसी कारण इस पुस्तक का नाम पड़ा 'बटर चिकन इन लुधियाना'।
इस पुस्तक में सलीम के विचार पढ़ मुझे अपने विद्यार्थी जीवन के वकील मित्र इकबाल कि याद आयी। उसका जिक्र मैंने उर्मिला की कहानी में किया है। वह 'राम-जन्म भूमि - बाबरी मस्जिद विवाद' पर कहता है कि,
'यहां न तो मस्जिद बननी चाहिये न ही मन्दिर यहां तो खेल का मैदान बनना चाहिये जिसमें पहला मैच भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच होना चाहिये। भारत के कप्तान कपिल देव और पाकिस्तान के कप्तान इमरान खान।'वह अक्सर अयोध्या जाता है, कहता है कि
'अयोध्या में लोग चाहे मुसलमान हों या फिर हिन्दू - वे यह नहीं सोचते कि मन्दिर बने या मस्जिद। वे सोचते हैं कि इसी बहाने यहां लोग तो आते हैं। वे कुछ पैसा तो कमा पाते हैं। यदि मन्दिर मस्जिद की जगह जीविका उपार्जन का साधन बन सके तो अच्छा है।'
मुझे हमेशा लगता है कि धर्म - मन्दिर, मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारा - से उपर है। धर्म तो लोगों को जोड़ता है, यह तो अक्सर ... इसीलिये मैंने अनुगूंज १८: मेरे जीवन में धर्म का महत्व में लिखा था,
'नहीं बसता मैं किसी मन्दिर या मस्जिद में,खैर यह चर्चा न तो धर्म की है या फिर राम जन्म भूमि - बाबरी मस्जिद विवाद की। यह तो थी बटर चिकन इन लुधियाना की - यह सब तो बस यूं ही।
न ही रहता हूं किसी गिरिजाघर या गुरुद्वारे में,
न ही बसता हूं किसी पूजा घर में।
यह तो है केवल अपना दिल बहलाना,
मैं तो हूं तुम्हारे आशियाना।
मैं नही पाया जाता पुरी, रामेश्वर में,
न ही मक्का, मदीना में,
जेरूसलम या कोई अन्य पवित्र स्थल भी नही है मेरा ठिकाने।
यह सब तो है लोगों के अफसाने,
तरीके दिल बहलाने के,
क्योंकि मैं तो वास करता हूं, तुम्हारे मन मानस में।'
सैर सपाटा - विश्वसनीयता, उत्सुकता, और रोमांच
भूमिका।। विज्ञान कहानियों के जनक जुले वर्न।। अस्सी दिन में दुनिया की सैर।। पंकज मिश्रा।। बटर चिकन इन लुधियाना।। । कॉन-टिकी अभियान के नायक - थूर हायरडॉह्ल।। कॉन-टिकी अभियान।। फैंटास्टिक वॉयेज: अद्भुत यात्रा।। स्कॉट की आखिरी यात्रा - उसी की डायरी सेसांकेतिक शब्द
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लो जी एक पुस्तक और जुड़ गयी पढ़ने की फेहरिस्त में ।
ReplyDeleteमुझे एक और पुस्तक याद आ गयी जो बरसों पहले पढ़ी थी फिर दोबारा हासिल नहीं हुई ।
नाम था बंबई रात की बांहों में । ख्वाजा अहमद अब्बास इसके संपादक थे शायद ।
इसमें कई लेखकों ने संस्मरण लिखे थे कि उनका अपना शहर रात को कैसा दिखता है ।
वहां क्या क्या होता है वगैरह ।
बहुत अच्छी लगी पुस्तक चर्चा। अब मिलेगी तो पढ़ डालेंगे इसे। :)
ReplyDeleteअच्छा लगा ,पंकज मिश्रा और आप के विचारोंकी काकटेल पढ़कर.मैं बनारस में पिछले १० वर्षों से रह रहां हूँ ,यहाँ विदेशी औरतों के साथ छेड़खानी का प्रतिशत वही है जो दीगर टूरिस्ट शहरों में है.अभी आगरा की ख़बर अपने पढी होगी .दरअसल बनारस के बारे में अनेक कारणों से लोगों के अपने पूर्वाग्रह भी हैं.दूसरे शहरों के बजाय बनारस के बारे में कुछ ऐसा वैसा सुनने सुनाने को लोग लालायित रहते हैं ,किताब भी चर्चा में आ जाती है.आप आश्वस्त रहें बनारस आज भी आप की यादों जैसा है ,एक कन्तेम्पोरैरी क्लासिक -विस्वास न हो तो ख़ुद आ के देख लें -मेरे निजी निमंत्रण पर !स्वागत है.
ReplyDeleteपुस्तक को आपके नजरिये से जानना अच्छा लगा...अभी अभी अनूप जी की पोस्ट पढी और पता चला कि आपके पास भी बहाने है टिप्पणी नही करने के, लेकिन हमे कोई बहाना मन्जूर नही.. :)
ReplyDeletepankaj ji ludhiana ke kaun se restaurant mein apne chicken khaya tha
ReplyDeleteVikas Gulati