पंकज मिश्रा का यह चित्र - अन्तरजाल के इस पेज से। |
पंकज मिश्रा का जन्म १९६९ में हुआ। उनके पिता रेलवे में काम करते थे। वे १९८५ में, इलाहाबाद विश्वविद्यालय पढ़ने आये। यहां से १९८८ में, बी.कॉम की डिग्री ली। इस दौरान, वे सर सुन्दर लाल हॉस्टल में रहते थे।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कामर्स की स्नातक डिग्री लेने के बाद वह दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय चला गया। वहां से उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. (M.A.) और एम. फिल. (M. Phil) किया। कुछ दिनों तक हापर कॉलिनस में कार्य किया अब मुक्त लेखन करते हैं। इस समय अधिकतर समय, हिमालय की गोद में बसे एक गांव मशोबरा नामक गांव में, व्यतीत करते हैं।
'बटर चिकन इन लुधियाना' १९९५ में छपी। हांलाकि, उन्होंने इसे तभी लिखना शुरू कर दिया था, जब वे इलाहाबाद में पढ़ते थे। यह पुस्तक कितनी अच्छी लिखी इसका अन्दाज़ा, आप इसी से लगा सकते हैं कि जब पंकज ने अपनी दूसरी पुस्तक २००० में Romantics नाम से लिखी, तब उसे लिखने के लिये उन्हें ३ लाख डालर मिले। यह रकम, उस समय तक, किसी भी एशिया के लेखक को मिलने वाले सबसे ज्यादा पैसे थे। इन पैसों को मिलने का कारण में, सबसे महत्वपूर्ण 'बटर चिकन इन लुधियाना' की प्रसिद्घि थी।
इसकी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह न तो भारतवर्ष की पर्यटन जगहों के बारे में है न अनूठी तरह से किया गया यात्रा विवरण है। यह भारत के कुछ (१९) शहरों के बारे में है और यात्रा भी बस या फिर ट्रेन के द्वारा की गयी है। इसमें लेखक की यात्रा करने का कोई मकसद नहीं बताया गया है।
'अरे उन्मुक्त जी, इसमें तो कुछ भी नहीं है फिर यह इतनी प्रसिद्ध क्यों है? क्या है इसमें, जो इसे यादगार यात्रा संसमरण बनाता है?'इंतजार करिये, इतनी भी क्या ज्लदी है - यह अगली बार।
इंतजार रहेगा!
ReplyDeleteउन्मुक्त जी, लिखिये उत्सुकता से प्रतीक्षा है, इस यात्रा संस्मरण की!
ReplyDeleteशुक्रिया इस जानकारी के लिए। पर आपका ये विवरण कुछ ज्यादा ही संक्षिप्त लगा। रोमांटिक्स मैंने पढ़ी है अच्छी किताब है।
ReplyDeleteआशा है सब्र का फल मीठा होगा
ReplyDeleteआप भी न!! बहुत इन्तजार करवाते हैं. :)
ReplyDeleteThanks a lot for introducing this book. This books keeps coming in my thoughts again and again.
ReplyDeleteI knew very little of Pankaj mishra, when I started reading this book 4-5 years back. I thought this has most remarkable description of student life and captured very accurately the soul of a north Indian University of our time. The setting of Banaras was very wise, specially to depict cross-cultural conflicts.
After reading this book, I try to find out about author.
बहुत ही उच्च स्तरीय लेखक और सर सुंदरलाल छात्रावास में भी रहे। हमारे लिए गौरव की बात।
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