इस चिट्ठी में पिंजौर के भीमा देवी मन्दिर एवं उसके संग्रहालय के बारे में चर्चा है।
पिंजौर में लोगों ने बताया,'पांडवों ने अज्ञात वास इसी जगह पर बिताया था। वे प्रतिदिन दिन एक बावड़ी खोदते थे ताकि ऐसा न हो कि उनके दुश्मन पुरानी खोदी हुई बावड़ी में जहर लगा दें। यहां पर ३६० बावड़ियां हैं।'मैंने पूछा,
'यदि पांडव उस समय के अज्ञात वास में थे तब उन्हें ३६५ बावड़ी खोदनी चाहिए थी न कि ३६०'उसने कहा,
'पहले ३६० दिन का एक साल माना जाता था।'मेरे विचार से या तो अज्ञात वास की बात नहीं होनी चाहिए या फिर बावड़ी खोदने का यह कारण गलत है। क्योंकि यदि कौरव वहां पर जहर मिला सकते थे तब पाण्डवों को भी पकड़ सकते थे।
पिंजौर के मुगल उद्यान के बगल में, एक पुराना आम का बड़ा पेड़ था। उस जगह पर, स्थानीय लोग पर आधुनिक मूर्तियां रखकर, इसे भीमा देवी के नाम से पूजते थे। दुर्गा सप्तशती में, भीमा देवी को दुर्गा का ही रूप होने का उल्लेख है। १९७२ में, यह आम का पेड़ अंधड़, तूफान में जड़ से उखड़ गया। उसके नीचे बहुत सी मूर्तियां मिली। अखबारों में लेख निकले, उसके बाद सरकार जागी और यहां पर खुदाई का कार्य किया गया।
यहां पर मिले अवशेषों से, इस जगह 'शक्ति' अथवा दुर्गा मंदिर होने की पुष्टि नहीं होती हैं। कुछ किंवदन्तियों के अनुसार पिंजौर का प्रांचीन नाम भीम नगर भी था। लगता है कि भीम नगर नाम के कारण ही इस मंदिर को भीमा देवी का मंदिर कहा जाने लगा होगा।
मंदिर अवशेषों से लगता है कि यह एक भव्य मंदिर समूह रहा होगा। मुख्य मंदिर के शिखर का गठन तत्कालीन उत्तर भारत के मंदिर निर्माण शैली के अनुसार ही कई छोटे शिखर को मिलाकर तैयार किया गया था। जिसके ऊपर आमलक और कलश स्थापित थे। मंदिर की बाह्य दीवारें पूर्णतः देवी देवताओं एवं उप-देवताओं की मूर्तियों सहित अनेक सामाजिक दृश्यों सुसज्जित रही हैं। हिन्दू देवतावाद में आठों दिशाओं की रक्षा के लिए आठ अलग-अलग उप-देवताओं की मान्यता है जिन्हें सम्मिलित रूप से अष्ट-दिग्पाल कहा जाता है। इसलिए लगता है कि यहाँ से प्राप्त इन्द्र (पर्व), अग्नि (दक्षिण -पूर्व), वायु (उत्तर -पश्चिम), वरूण (पश्चिम), ईशान (उत्तर-पूर्व) आदि दिग्पालों की प्रतिमाएं मंदिर की बाहरी दीवार पर उनसे संबंधित दिशाओं में लगायी गई होंगी। देवताओं में शिव-पार्वती, विष्णु, गणेश, कार्तिकेय आदि देवताओं के विभिन्न रूपों में प्रतिमाएं भी यहां से प्राप्त हुई हैं।
भीमा देवी मंदिर से प्राप्त मंदिर अवशेष एवं मूर्तियों के समूह में वृहद शिवलिंग और प्रवेश द्वारा के ऊपर ललाट बिम्ब में स्थापित की जाने वाली चैत्य झरोखे में अंकित त्रिमूर्ति शिवशीर्ष से इस बात की संभावना है कि यह मुख्य रूप से शिव मंदिर रहा हो।
यहां संग्रहालय में रखी एक मूर्ति |
मंदिर के अवशेषों के कुछ शिलालेख में, राजा रामदेव का उल्लेख मिलता है इससे लगता है। कि इस मंदिर समूह का निर्माण रामदेव के समय में हुआ होगा। इन अभिलेखों में उल्लिखित राजा रामदेव संभवत: इस पहाड़ी क्षेत्र का वही रामदेव है जिसने १०१४ ई० में महमूद गजनवी आक्रमण के दौरान सतलुज से भाग कर रोपड़ में काफी डटकर मुकाबला किया था। इस आधार पर १०१४ ई० की तिथि पूर्णत: भीमा देवी मंदिर के अवशेषों से मिलती है।
इस समय यहां पर संग्रहालय बना दिया गया है।
इस श्रृंखला की अगली कड़ी में हम लोग शिमला में इंस्टिटयूट आफ एडवांस्ड् स्टडीज़ देखने चलेंगे।
देव भूमि, हिमाचल की यात्रा
वह सफेद चमकीला कुर्ता और चूड़ीदार पहने थी।। यह तो धोखा देने की बात हुई।। पाडंवों ने अज्ञातवास पिंजौर में बिताया।। अखबारों में लेख निकले, उसके बाद सरकार जागी
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अच्छी जानकारी दी....
ReplyDeleteदिवाली, दशहरा, होली, रक्षा बंधन और जन्माष्टमी की छुट्टी काट कर ३६० ठीक तो हैं. :)
जानकारी रोचक होने के साथ ही ज्ञान वर्धक भी है |
ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी आपने
ReplyDeleteकितनी ही जगहें पांडवों से जुडी हुई कही जाती हैं ! आश्चर्य होता है...
ReplyDeleteपिंजौर की ऐतिहासिकता पर बहुत सुन्दर और ज्ञानवर्धक लेख किन्तु आज ही अचानक चौकता हूँ कि मुन्ने का बापू कहाँ गया ? किसी को जैसे कोई फर्क नहीं पड़ा -अज मन में ये विचार सहसा ही कौंध आया -यह कोई संयोग तो नहीं -आज १०० वां महिला दिवस है न ?
ReplyDeleteआदरणीय मिसेज उन्मुक्त को मेरा सादर अभिवादन !
अरविन्द जी, मेरी पत्नी शुभा पढ़ाती है, अपने काम, घर में ही व्यस्त रहती हैं। मैं जब पीछे पड़ता हूं तो ही कुछ लिखती है। बहुत दिनों से मैं भी व्यस्त रह रहा हूं। इसलिए चिट्टाकारी कम कर दी है। उसके पीछे पड़ा नहीं पड़ा इसलिए उसने कुछ लिखा नहीं।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी
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