Friday, February 26, 2010

समय के साथ बदलना ही जीवन है

इस चिट्ठी में,  'हू मूव्ड माई चीज़' नामक पुस्तक के साथ, पिंजौर के मुगल (यादुवेन्द्र सिंह) उद्यान  की चर्चा है।


कुछ समय पहले डा. सपेंसर जॉनसन के द्वारा लिखित 'हू मूव्ड माई चीज़' (Who moved my cheese) नामक पुस्तक आयी थी। यह प्रसिद्ध पुस्तक है। इसका कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।  

इस पुस्तक में  चार चूहों ('स्निफ', 'स्कर्री' 'हेम' और 'हौ') के द्वारा एक मैनेजमेंट के सिद्घान्त को बताया गया है। इन नामों के अर्थ भी महत्वपूर्ण हैं। स्निफ का मतलब है सूंघने वाला, स्कर्री का अर्थ है - तेज दौड़ने वाला और बाकी दो नाम 'हेम एण्ड हौ' से लिये गये हैं, जो हां और न कहने वाले या अनिर्णय के लिए एक वाक्यांश है। 

इन चारों को पनीर मिल जाती है। हेम और हौ तो में तृप्त हो जाते हैं। पनीर के समाप्त होते ही, उनका जीवन समाप्त हो जाता है। लेकिन वहीं स्निफ और स्कर्री को लगता है कि पनीर समाप्त हो रही है। वे नई पनीर को ढूंढने के लिए निकल पड़ते हैं। वे नयी पनीर ढूंढ लेते हैं और जीवन में सफल होते हैं। समय के साथ बदलना ही जीवन है।

आप यह सोच रहे होंगे कि इस पुस्तक  का पिंजौर के मुगल उद्यान से क्या सम्बन्ध है। चलिये, मुगल उद्यान में चल कर देखते हैं कि वहां क्या हो रहा है।


पिंजौर का मुगल उद्यान
पिंजौर में, हम लोग हरियाणा पर्यटन का विभाग बजरीगर मोटेल में ठहरे थे। यह उद्यान के बगल में है। शाम के समय  उद्यान को देखने के लिए गये। यह अच्छा है पर शायद उतना सुन्दर नहीं जितना इसके बारे में कहा जाता है। लेकिन अंधेरा होते होते वहां पर सब बत्तियां जल गयी और फव्वारे भी चलने लगे जिससे कि उसकी सुन्दरता बढ़ गयी।

उद्यान के अन्दर मेरी मुलाकात एक सुरेश कुमार से हुई। वे एक छोटा सा स्टॉल लगाये हुये थे और उस स्टॉल में वे कैमरा और कैमरे की रील बेच रहे थे। उनके पास कोडेक के कैमरे थे जो उसे किराये पर देते थे। इसे लेने के लिए ६०० रूपये की जमानत  देनी पड़ती थी और एक घंटे का किराया वे ७० रूपया लेते थे। उसने बताया वे ठेके  पर कार्य करते हैं। इसके लिऐ, ठेकेदार ने  दो साल के अनुबंध के लिए २ लाख चालीस हजार रुपये दिये हैं। मैंने पूछा,
'क्या इतनी आमदनी हो जायेगी।'
उसने कहा कि नहीं। फिर उसने मुझे वह कापी दिखायी जिसमें लोगों के द्वारा दिये गये पैसे   को लिखता था। किसी दिन १०० तो किसी दिन २०० और अधिकतम शायद ५०० रू० थे। उसका कहना था, 
'यह बहुत घाटे में चल रही है। इसका कारण मोबाइल फोन में लगे कैमरे हैं। लोग कैमरे और रील से फोटो न लेकर अब मोबाइल फोन से ही फोटो ले रहे हैं।'
यह बात मुझे देखने में भी मिली क्योंकि अधिकतर लोग अपने मोबाइल से ही फोटो ले रहे थे। किसी भी तकनीक के पुराने होते ही उससे संबन्धित व्यापार भी समाप्त हो जाते हैं। रील फोटो ग्राफी का व्यापार समाप्त हो चुका है। यदि आप नयी तकनीक पर नहीं जाते हैं तब भगवान ही आपका मालिक है। मेडिकल के भी क्षेत्र में इसी तरह से बहुत सारी तकनीक समाप्त हो रही हैं, या समाप्त हो गयी हैं।

मेरा एक मित्र डाक्टर है उसके पास एक ऐक्सरे मशीन थी। इसमें ऐक्सरे,  पुरानी तकनीक से लिया जाता था। इस समय जितने भी ऐक्सरे होते हैं वह डिजिटल होते हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि उसे बड़ा या छोटा किया जा सकता है या ई-मेल के द्वारा कहीं भेज कर राय मांगी जा सकती है। मैंने अपने मित्र से कई बार कहा कि यदि वह डिजिटल ऐक्सरे नहीं लेता है तो उसका व्यापार चौपट हो जायेगा। उसने मेरी बात नहीं मानी और इस समय उसका व्यापार समाप्त हो गया है।

मेरे एक और जान पहचान के व्यक्ति की चश्मे की दुकान थी। समय के साथ उसने बदलाव किया। पहले कन्टैक्ट लेंस भी बेचने शुरू किये। कुछ सालों पहले उन्हें लगा कि कन्टैक्ट लैंस का व्यापार समाप्त हो रहा है। इस समय लोग न तो चश्मा लगाना चाहते हैं और न ही कन्टैक्ट लेंस लगाना चाहते हैं पर वे एक लेज़र के द्वारा आंख की पुतलियों का आपरेशन करा लेते हैं और उसके पश्चात आपको आंख के चश्मे से छूट मिल जाती है। उसने इस तकनीक से आपरेशन के लिए मशीन ले ली। कुछ समय पहले तक यह केवल पढ़ने वाले चश्मे से निजात पा सकते थे। लेकिन इस समय बाइफोक्ल चश्मे वालों को भी  चश्मों से छुटकारा मिल सकता है।

यह आगे देखने वाला व्यक्ति है। उसने दिल्ली में, मेडिकल पर्यटन नाम की बात शुरू कर रखी है। देश विदेश से लोग आते हैं। दोपहर तक आपरेशन करवाते है। इसमें ऑपरेशन के बाद मरीज को तुरन्त छोड़ा जा सकता है। क्योंकि ऑपरेशन बाद बहुत सावधानी की जरूरत नहीं होती है। उसने एक जगह ले रखी है जहां वह लोगो को टिकाता है। उसके बाद ऑपरेशन होता है। उसके बाद मरीजों को आगरा, राजस्थान की तीन दिन की यात्रा में भेजता है। लोग लौट कर अपने  देश चले जाते हैं। बहुत से सैलानी इसी तरह से आ रहे हैं। बाहर से आये व्यक्तियों अपने देश में ऑपरेशन कराने में जितना पैसा लगता है वह यहां ऑपरेशन और घूमने के बाद खर्च किये गये पैसों से अधिक है। इसलिए लोग भारत आ रहे हैं। उसका धंधा अच्छा रहा है।

यह सच है कि यदि आप तकनीक के साथ नहीं बदलेंगे, तो वह आपको बदल देगी, आपका व्यापार समाप्त हो जायेगा।

अगली चिट्ठी में भीमा देवी के मन्दिर एवं संग्रहालय के बारे में।

देव भूमि, हिमाचल की यात्रा

वह सफेद चमकीला कुर्ता और चूड़ीदार पहने थी।। यह तो धोखा देने की बात हुई।। पाडंवों ने अज्ञातवास पिंजौर में बिताया।। समय के साथ बदलना ही जीवन है।।

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7 comments:

  1. आपके विचारो से सहमत हूँ . . आपको होली पर्व की शुभकामनाये

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  2. जी खोजी चूहे जिस बन जाना ही जीवन की गारंटी है -अच्छा सन्देश

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  3. आपके इस पोस्ट नें सोचने पर विवश कर दिया, लेकिन इस विशाल देश में जहाँ आज भी बैलगाड़ी और प्लेन साथ साथ चल रहे हों, वहाँ तकनीकी के साथ इतनी जल्दी व्यवसाय लोग कैसे बदल पायेंगे,
    यह एक चिंतनीय बात है.

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  4. बहुत अच्छी लगी आपकी पिंजौर की मुगल गार्डन यात्रा। इसका अर्थ हुया कि आप भाखडा नंगल के पास आ कर चले गये। 3.--00 --3.30 घन्टे का रास्ता है वहाँ से नंगल का । अगर फिर कभी आयें तो भाखडा डैम और नगल भी आयें । अगली कडी का इन्तजार रहेगा। होली की शुभकामनायें

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  5. सही कहा आपने.

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  6. विचारो से सहमत,आपको होली की रंग भरी शुभकामनाएँ !

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  7. मैने भी बिजनेस में चेंज के खिलाफ जाते बहुत से देखे हैं। बेचारे, बदल नहीं पाते अपने को!

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आपके विचारों का स्वागत है।