Friday, December 24, 2010

हो सकता है कि लैपटॉप के नीचे चाकू हो

द मदर, आत्मचित्र - विकिपीडिया से
चलिये, मां की नगरी - यह चिट्ठी हमारी पॉन्डिचेरी यात्रा की शुरुवात है।



होली के समय में उत्तर भारत में रहना, मेरे लिए हमेशा मुश्किल रहता है। इस समय मैं हमेशा वहां से भागने की फिराक में रहता हूं। मैं पहले भी केरल, बंगलौर, गोवा की यात्रा इसी समय कर चुका हूं। 

इस बार होली के समय, चेन्नई में एक सम्मेलन था।  मुझे उसमें भाग लेना था। मुझे लगा कि होली के समय बाहर रहने का इससे अच्छा और कोई कारण नहीं हो सकता है। मैंने फौरन चेन्नई सम्मेलन में जाने का प्रोग्राम बनाया।

पॉन्डिचेरी, चेन्नई के पास है। मैं लगभग ४० वर्ष पहले वहां गया था। इसलिए वहां भी घूमने की बात तय की।


पॉन्डचेरी समुद्र तट की शाम

हम लोग सुबह दिल्ली ट्रेन से पहुंचे। यहीं से चेन्नई के लिए हवाई जहाज़ पकड़ना था। ट्रेन एवं हवाई जहाज़ के बीच में कोई तीन घण्टें का समय था। कुछ घबराहट सी लगी कि यदि ट्रेन देर से पहुंची तब हवाई जहाज़ न मिल पाए। लेकिन ट्रेन सही समय पर थी। हमें हवाई जहाज़ आसानी से मिल गया। 

इस बार मैं अपने साथ लैपटॉप  भी ले गया था। मुझे बोलना भी था और लैपटॉप में अपना प्रस्तुतिकरण एवं लेख भी ठीक करना था। सुरक्षा की जांच के लिए जब अन्दर पहुंचा, तब सुरक्षा कर्मी ने पूछा। 
'क्या, इस बैग में लैपटॉप है?'
मैंने हामी भरी। 


उसने कहा लैपटॉप निकाल लीजिए। आपका बैग पुन: सुरक्षा की दृष्टि से चेक किया जायेगा। मैंने लैपटॉप निकाला। उसने पुन: चेक किया। मैंने उससे पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया? उसका जवाब था,
'हो सकता है आपके लैपटॉप के नीचे चाकू रखा हो। लैपटॉप के कारण, उसे देखा नहीं जा सकता है। इसलिए मैंने आपका लैपटॉप बाहर निकलवा कर पुन: चेक किया है।'
मैंने पूछा,
'आपने लैपटॉप के अन्दर चेक नहीं किया है। यदि मैंने उसके अन्दर चाकू रखा हो तब क्या होगा।'
उसने मुस्कुरा कर कहा,
'साहब हम लोगों की शक्ल देखकर पहचान लेते हैं।'
यदि यह बात थी तब लैपटॉप निकलवा कर चेक करने की क्या जरूरत थी? लेकिन, मैंने कोई जवाब नहीं दिया बस मुस्करा कर आगे बढ़ गया।

हवाई यात्रा के दौरान मैंने लेख को पुन: सम्पादित किया। प्रस्तुतिकरण ठीक किया। हम लोग चेन्नई पहुंच गये। 


चेन्नई में सम्मेलन तीन दिन बाद था। हम चेन्नई पहुंचते ही,  टैक्सी लेकर पॉन्डिचेरी चले गये। चेन्नई से पॉन्डिचेरी के रास्ते में ही एक घड़ियाल फार्म और महाबलिपुरम पड़ता है। जाते समय हम लोग ने घड़ियाल फार्म और लौटते समय महाबलिपुरम जाने का प्रोग्राम बनाया।

अगली बार हम लोग घड़ियाल फार्म चलेंगे।



मां की नगरी - पॉन्डेचेरी यात्रा
 हो सकता है कि लैपटॉप के नीचे चाकू हो।।

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7 comments:

  1. लेख ही चाकूनुमा लिख सकते हैं लेखकगण, सत्य चीरते हुये।

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  2. ज्यादातर हिन्दुस्तानियों की शक्ल से ही शराफत टपकती है इसलिए जहाँ कहीं भी चैकिंग चल रही होती है वहां से आधे से ज्यादा लोग तो कोरे ही निकल पड़ते हैं.
    जब कभी मैं पत्नी और बच्चों के साथ रहता हूँ तब मुझे चैकिंग के लिए कोई नहीं रोकता.

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  3. 'साहब हम लोगों की शक्ल देखकर पहचान लेते हैं।'
    यही मुगालता मुझे भी अक्सर हो उठता है ,बिना सुरक्षा कर्मी के कहे ही :)
    ये चूकें भयानक हो सकती हैं -सुरक्षा जांच में 'नो लेम एक्सिक्यूजेज "
    चलिए घड़ियाल फार्म का इंतज़ार करते हैं ..

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  4. कभी सूरत कभी सीरत का भरोसा.

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  5. अरविन्द जी की टिप्पणी की पहली दो लाइनें मेरी ओर से भी.. और यह भी कि उसे तो अपनी ड्यूटी निभानी ही थी जो उसने निभाई. इन्हीं चूक के चलते आतंकी घटनायें हो जाती हैं..

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  6. अब समझ आया कि लेपटॉप बेग को क्‍यों खुलवाकर देखते हैं? आगे के वर्णन का इंतजार रहेगा।

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