इस चिट्ठी में, कुफरी में हुई सुन्दर लड़कियों से मुलाकात की चर्चा है।
कुफरी में मेरी मुलाकात दो तिब्बती लड़कियों से हुई थी। वे क्रोशिया से सुन्दर काम कर ही थीं। वे छोटे छोटे बच्चों के जूते बुन रही थी। इसे काफी लोग ख़रीद भी रहे थे। उनमें से कुछ जगह बैंड रखे हुए थे। मैंने पूछा कि बैंड किस लिए है। उनमें से एक लड़की जिसका नाम श्रद्धा था वह बैंड का काम कर रही थी। उसने बताया,
'इसमें नाम लिखा जा सकता है और कलाई में बांधा जा सकता है।'मैनें कहा कि क्या वह मेरी बहू रानी और मेरे बेटे का नाम लिख कर दे सकती है। उसने कहा,
'यह नाम बहुत बड़े हो जायेंगे। लेकिन आपकी कलाई बहुत पतली है। यह अच्छा नहीं लगेगा। आप उनके नाम के दो अलग, अलग बैंड बनवाइये।'मुझे लगा वह बातचीत करने में कुशल है। उसे मालूम है किस तरह बैंड बेचे जाते हैं। मैने कहा,
'दोनो की शादी हो चुकी है। इसलिए दोनो का नाम साथ ही लिख कर दो। क्या हुआ यदि वह मेरी कलाई में ऊपर की तरफ न दिखायी पड़े।'उसने बैंड बनाकर कुछ ऊन दिया उसमे पतले धागे थे। मेरी समझ में नही आया कि वह कैसे बंधेगा। मैंने पूछा कि इसे हाथ में किस प्रकार बाधूं। वह मुस्कराई और बोली,
'लाईये मैं आपके हाथ में बांध देती हूं और आपको सिखा भी देती हूं।'उसने ऊन के जो धागों को टाई की तरह मेरे हाथ में बांध दिया।
इसके बाद हम लोग वापस चायल आये और अगले दिन सुबह सीधे दिल्ली आ गये हमने चंडीगढ़ में रुकने का प्रोग्राम बनाया था नहीं जा सके।
हम लोगों ने ठीक रास्ता नहीं चुना था हमें वास्तव में हमे सबसे पहले पिंजौर, चायल, शिमला, मनाली होते हुए वापस दिल्ली आना चाहिए था। लेकिन रास्ते की ठीक जानकारी न होने के कारण इस तरह का रास्ता चुना गया था।
इसी के साथ देव भूमि की यात्रा विवरण समाप्त होता है। अब चलेंगे, पॉन्डचेरी।
देव भूमि, हिमाचल की यात्रा
वह सफेद चमकीला कुर्ता और चूड़ीदार पहने थी।। यह तो धोखा देने की बात हुई।। पाडंवों ने अज्ञातवास पिंजौर में बिताया।। अखबारों में लेख निकले, उसके बाद सरकार जागी।। जहां हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे की बात हुई हो, वहां मीटिंग नहीं करेंगे।। बात करनी होगी और चित्र खिंचवाना होगा - अजीब शर्त है।। हनुमान जी ने दी मजाक बनाने की सजा।। छोटे बांध बनाना, बड़े बांध बनाने से ज्यादा अच्छा है।। लगता है कि विंडोज़ पर काम करना सीख ही लूं।। गाड़ी से आंटा लेते आना, रोटी बनानी है।। बच्चों का दिमाग, कितनी ऊर्जा, कितनी सोचने की शक्ति।। यह माईक की सबसे बडी भूल थी।। भारत में आधारभूत संरचना है ही नहीं।। सुनते तो हो नहीं, जो करना हो सो करो।। रानी मुकर्जी हों साथ, जगह तो सुन्दर ही लगेगी।। उसकी यह अदा भा गयी।। यह बौद्व मंदिर है न कि हिन्दू मंदिर।। रास्ता तो एक ही है, भाग कर जायेंगे कैसे।। वह कुछ असमंजस में पड़ गयी।। हमने भगवान शिव को याद किया और आप मिल गये।। अपनी टूर दी फ्रांस - हिमाचल की साइकिल रेस।। और वह शर्मा गयी।। पता नहीं हलुवा घी में, या घी हलुवे में तैर रहा था।। अभी तक इसका पैसा नहीं निकल पाया है।। नग्गर में, रोरिख संग्रहालय।। मेरे दिल में आज क्या है।। आप, क्यों नहीं, इसके बाल खींच कर देते।। तुमसे मिल कर, न जाने क्यों और भी कुछ याद आता है।। हम हिन्दुस्तानी तो एक दूसरे की देखा देखी करते हैं।। लाईये मैं आपके हाथ में बांध देती हूं।।
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दो और बनवा लेने थे, बहू और लड़के के लिये।
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट!
ReplyDeleteबढियां विवरण
ReplyDeleteबहुत रोचक रहा देव भूमि का यात्रा विवरण। धन्यवाद। अब पान्डीचेरी चलते हैं---- हम भी साथ साथ हैं। शुभकामनायें।
ReplyDeleteकुफरी में आपके अनुभवों के लिए बधाई. पुदुस्सेरी में आपका इंतज़ार रहेगा.
ReplyDeleteतिब्बती पूरे मैदानी इलाके में भी ऊन के वस्त्र बेच लेते हैं। बहुत अच्छी वाणिक बुद्धि की कौम लगती है। अपने अस्तित्व के लिये जद्दोजहद भी कर रहे हैं वे - यहूदियों की तरह।
ReplyDeleteकभी शायद छा भी जायें दुनियां पर यहूदियों की तरह।
आपके ब्लाग पर आने पर लगता है कि भारत भ्रमण हो रहा है...खेद है कि नियमित भारत भ्रमण नही कर पाता हूँ :)
ReplyDeleteबेहद सुन्दर वर्णन ..
ReplyDeleteक्या ये कुफरी वो कुफरी नहीं है जो जम्मू के पास है |
ReplyDeleteअब यह लिखता हूं कि मैं तो कुछ और ही समझ बैठा था तो अर्थ का अनर्थ होने का डर है फिर भी...
ReplyDelete:)
अंशुमाला जी, यह कुफरी, शिमला के पास है।
ReplyDeleteसुन्दर लेखन
ReplyDeleteकुफ़्री की याद ताज़ा करवा दी आपने.
ReplyDeleteउन्मुक्त जी, इतना घूमते रहते हैं, कभी लखनऊ का भी रूख करें, शायद यहॉं भी दिख जाऍं कुछ खूबसूरत लडकियॉं।
ReplyDelete:)
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प्रेत साधने वाले।
रेसट्रेक मेमोरी रखना चाहेंगे क्या?