इस चिट्ठी में, सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा निर्णीत किया गया टी.एन.गोदावर्मन थिरूमुल्कड विरुद्ध भारत संघ १९९७ (२) SCC २६७ (गोदावर्मन केस) तथा उसमें प्रतिपादित सिद्धान्त की चर्चा है।
टी.एन.गोदावर्मन थिरूमुल्कड विरुद्ध भारत संघ १९९७ (२) SCC २६७ (गोदावर्मन केस), वन संरक्षण एवं पेड़ों को बचाने के लिये महत्वपूर्ण निर्णय है। उच्चतम न्यायालय ने, इस केस में महत्वपूर्ण फैसला दिया कि,
- वन्य संरक्षण अधिनियम, १९८०, वनोन्मूलन को रोकने के लिये लागू किया गया था। यह सारे वनों पर लागू होता है चाहे उसका स्वामित्व किसी के पास हो या उसका कुछ भी वर्गीकरण हो।
- सारे वनों में—चाहे वह वन संरक्षित, या निजी, या नामित हों—किसी भी तरह की वन विरोधी गतिविधि करने के पहले, भारत सरकार का पूर्व अनुमोदन लेना आवश्यक है।
- वनोन्मूलन से पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न होता है। इसलिये वन, वृक्ष, और जैव विविधता का संरक्षण करना आवश्यक है।
भूमिका।। विश्व पर्यावरण दिवस ५ जून को क्यों मनाया जाता है।। टिकाऊ विकास और जनहित याचिकाएं क्या होती हैं।। एहतियाती सिद्घांत की मुख्य बातें क्या होती हैं - वेल्लौर केस।। नुकसान की भरपाई, प्रदूषक पर - एन्वायरो एक्शन केस।। राज्य प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षणकर्ता है।। वन, वृक्ष, और जैव विविधता का संरक्षण - आवश्यक।।
सांकेतिक शब्द
। TN Godavarman vs Union 19997 (2) SCC 267,
। पर्यावरण, environment, Ecology, Environment (biophysical), Natural environment, Environmental movement, Environmentalism, Environmental science,
।हिन्दी,
वन्य संरक्षण अधिनियम, १९८०
ReplyDeleteअद्यतन संशोधनों पर भी फुर्सत में कभी प्रकाश डालें
लेकिन संरक्षण है कहाँ। किताबों तक।
ReplyDeleteवन बचाने की दिशा में सुदृढ़ सिद्धान्त, पर अनुपालन एक समस्या है।
ReplyDeleteOut of given 3 points only first one is command , rest two are just guidelines. Needless to say guidelines are often ignored. Thanks to remind those. Nice post .
ReplyDeleteजी जानकारी देता आलेख पर जब तक हर एक व्यक्ति को वन की चिंता नहीं होगी तब तक नियम कानून चाहे जितने बन जाए पर नतीजा मनमाफिक नहीं होगा
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