दूसरी पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन - क्या भूलूं क्या याद करूं
तीसरी पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन – तेजी जी से मिलन
चौथी पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन - इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अध्यापक
यह पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन - आइरिस, और अंग्रेजी
आज हिन्दी दिवस है। बच्चन जी हिन्दी प्रेमी थे, पर पढ़ाते अंग्रेजी थे। आज पढ़ते हैं उनके विचार अंग्रेजी भाषा के बारे में। यह विचार उन्होने अपनी जीवनी के दूसरे भाग 'नीड़ का निर्माण फिर' में आइरिस नामक लड़की के द्वारा, उनके प्रेम प्रणय को अस्वीकार करने के बाद लिखा।
बच्चन जी के जीवन में कई लड़कियां आयीं कुछ का नाम वह बताते हैं तो कुछ का नाम छिपा जाते हैं। इन समबन्धों का जिक्र करने का उनका ढंग भी निराला है। विश्वविद्यालय में पढ़ाई करते समय आइरिस नाम की इसाई लड़की उनके सम्पर्क में आयी और उसे वे दिल से चाहने लगे । वे कहते हैं कि,
'आइरिस ने प्रथम दृष्टि में ही मुझे आकर्षित किया। वैसे तो मुझमें कुछ विशेष आकर्षक नहीं था, पर मेरे बालों ने उसे आकर्षित किया हो तो कोई आश्चर्य नहीं। यदि पहले से मेरा परिचय उसे कवि के रूप में दे दिया गया होता तो बालों के सम्बन्ध में मेरी रोमानी लापरवाही उसे अप्रत्याशित और अस्वाभाविक न लगी होगी। कद से लम्बी, बदन से इकहरी, और रंग से विशेष गौर वर्ण की, उसमें कहीं ऐंग्लो-इंडियन रक्त का मिश्रण अवश्य था। गर्दन लम्बी, चेहरा आयताकार, आंखें नीली, गाल की हड्डियां उभरी, होठ भरे, बाल सुनहरे, कटे, फिर भी इतने बड़े कि दायेँ-बायेँ कन्धों पर और पीठ के उपरी भाग पर लहराते। शायद उसके शरीर में उसके बाल ही उसके मनोभावों के सबसे अधिक अभिव्यंजक थे। वह थोड़ी-थोड़ी देर पर उन्हें कभी दाहिने और कभी बायेँ झटकती और इससे उसके सौन्दर्य में एक गतिशीलता –सी आ जाती।‘
आयरिस ने बच्चन जी के प्रेम प्रणय को अस्वीकार कर दिया। उससे पत्र व्यवहार अंग्रेजी में होता था। अस्वीकार होने के बाद बच्चन जी ने अंग्रेजी के पत्रों को नष्ट कर दिया। ‘नीड़ का निर्माण फिर’ लिखते समय उन्हें लगा कि उन्होंने उन पत्रों का गलत अर्थ शायद इसलिये लगा लिया था कि पत्र अंग्रेजी भाषा में थे। उन पत्रों को याद कर अंग्रेजी के बारे में कहते हैं कि,
'अंग्रेजी बिना लेशमात्र कृतज्ञता अनुभव किए ‘थैंक यू’ कह सकती है। जब यह ‘सारी’ कहती है तब अफसोस इसे शायद ही कहीं छूता हो। ‘आई ऐम ऐफ्रेड’ से इसका तात्पर्य बिलकुल यह नहीं होता कि यह जरा भी डरी है; और इसकी उक्ति, ‘एक्सक्यूज मी’ (यानी मुझे क्षमा करें) आपके गालों पर थप्पड़ लगाने की भूमिका भी हो सकती है। मेरी ‘मधुशाला’ की अंग्रेजी अनुवादिका कुमारी मार्जरी बोल्टन की एक बात मुझे याद आ गई। जब मैं इंग्लैंड-प्रवास में एक छुट्टी में उनके घर गया तो एक शाम को वे अपने जीवन की दुखद अनुभूति मुझसे बताने लगीं। उनके एक प्रेमी ने कई वर्षो तक उनसे पत्र-व्यवहार किया। क्या भावना में भीगे पत्र थे वे ! और एक दिन सहसा उसने उन्हें भुला दिया! मैं मार्जरी का वाक्य नहीं भूला-Since that day I have lost faith in English language (उस दिन से अंग्रेजी भाषा पर से मेरा विश्वास उठ गया)। अंग्रेजी औपचारिक शिष्टता, पटुता, प्रदर्शन और डिसेप्शन यानी धोखा-धड़ी की इतनी परिपूर्ण माध्यम हो गई है कि आज अभिव्यक्ति से अधिक यह गोपन और डिसटार्शन यानी विरूपन की भाषा है। क्या भाषाएँ विकसित और परिष्कृत होकर अपनी सूक्ष्म अभिव्यंजन शक्ति, सच्चाई, सिधाई, गहराई और ईमानदारी खो देती हैं?‘
अगले सप्ताह बात करेंगे कि नहरू परिवार और बच्चन परिवार में मित्रता कैसे हुई।
अन्य चिट्ठों पर क्या नया है इसे आप दाहिने तरफ साईड बार में, या नीचे देख सकते हैं।
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उन्मुक्त जी, आप का ये लेख मैंने बसेरा के ग्याहरवें अँक में डाला है जिसकी कुछ प्रतियां मुफ़्त बाँट रहा हूँ। उम्मीद है कि आपको कोई आपत्ती नहीं होगी। साथ में एक और प्रयोग भी करने जा रहा हूँ। अब से लेकर हर साप्ताह इस पत्रिका के लिए चुनी गई हर प्रविष्टी के लिए मैं उसे लिखने वाले को छोटे से उपहार के रूप में एक यूरो (लगभग 55 - 58 रुपए) देना चाहता हूँ। अगर आप ये उपहार कबूल करते हैं तो कृपया मुझे भारत में अपने किसी बैंक खाते का विवरण rajneesh_mangla@yahoo.com पर भेजें। धन्यवाद
ReplyDeleteरजनीश जी
ReplyDeleteमेरे सारे चिठ्ठों की सब चिठ्ठियां कौपी-लेफ्टेड हैं। किसी को भी इनके प्रयोग व संशोधन करने की स्वतंत्रता है। इसके बाद भी आपने मुझसे पूछा तो मुझे अच्छा लगा। उपहार का महत्व अपनी जगह अलग है चाहे वह जितना बड़ा हो पर मैं चाहूंगा कि इसे आप मुझे न भेंजे। मै आशा करता हूं कि आपको मेरे कई लेख पसन्द आयेंगे और जब यह कुछ और पैसा हो जाय तो उसे अज्ञरग्राम के कोश में मेरी तरफ से दे दें। वे इस पैसे का ज्यादा अच्छा उपयोग करेंगे।
उन्मुक्त
रजनीश जी
ReplyDeleteमेरे सारे चिठ्ठों की सब चिठ्ठियां कौपी-लेफ्टेड हैं। किसी को भी इनके प्रयोग व संशोधन करने की स्वतंत्रता है। इसके बाद भी आपने मुझसे पूछा तो मुझे अच्छा लगा। उपहार का महत्व अपनी जगह अलग है चाहे वह जितना बड़ा हो पर मैं चाहूंगा कि इसे आप मुझे न भेंजे। मै आशा करता हूं कि आपको मेरे कई लेख पसन्द आयेंगे और जब यह कुछ और पैसा हो जाय तो उसे अज्ञरग्राम के कोश में मेरी तरफ से दे दें। वे इस पैसे का ज्यादा अच्छा उपयोग करेंगे।
उन्मुक्त