दूसरी पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन - क्या भूलूं क्या याद करूं
तीसरी पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन – तेजी जी से मिलन
चौथी पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन - इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अध्यापक
पांचवीं पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन - आइरिस, और अंग्रेजी
यह पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन - इन्दिरा जी से मित्रता,
बच्चन परिवार एवं नेहरू परिवार के सम्बन्ध आजकल वैसे नहीं है जैसे के पहले थे। इसका क्या कारण है यह तो वह ही लोग जानते हैं पर कुछ दिन पहले अमिताभ बच्चन ने राहुल गांधी के कथन पर टिप्पणी करते हुये कहा था कि बच्चन परिवार और नेहरू परिवार के सम्बन्ध बहुत पुराने हैं और शायद राहुल गांधी को इसका अन्दाजा नहीं है। इन सम्बन्धों की शुरूवात कैसे हुई, कैसे थे वे सम्बन्ध, इसके बारे में बच्चन जी ‘नीड़ का निर्माण फिर’ में कहते हैं कि,
‘उस फरवरी में सरोजिनी नायडू प्रयाग आई थीं ; आनन्द-भवन में ठहरी थीं। झा साहब ने एक रात को उनके सम्मान में भोज दिया था और उसमें सम्मिलित होने को तेजी को और मुझे निमन्त्रित किया था। तेजी के सौन्दर्य, सुरूचिपूर्ण पहनाव, शिष्टतापूर्ण बौद्धिक वार्तालाप से मिसेज नायडू इतनी प्रभावित हुई कि दूसरे दिन उन्होंने हमें आनन्द-भवन में चाय पर निमन्त्रित कर दिया। जब मैं तेजी के साथ वहाँ पहुँचा तो उन्होंने बड़े नाटकीय ढंग से हमारा परिचय नेहरू-परिवार से कराया। हमारी ओर हाथ करके बोलीं, "The Poet and the poem"- "आप कवि, आप कविता"। इस परिचय के फलस्वरूप तेजी सबसे अधिक निकट इंदिरा जी के आई - उस समय तक उनका विवाह नहीं हुआ था - और तब से आज तक उनकी मैत्री बनी हुई है। मिसेज नायडू ने जिस प्रकार तेजी का परिचय कराया था, वह इन्दिरा जी को आज तक याद है, और अब भी जब वे तेजी का परिचय किसी विदेशी महिला से कराना चाहती हैं, उसका संकेत करती हैं। पंडित नेहरू ने जो वाक्य मुझसे कहा था, वह भी याद है, "अरे, तुम्हारे फैन (प्रशंसक) तो हमारे घर में भी हैं"। उस समय तक ‘मधुशाला’ उनकी भांजियों के हाथों पहुँच चुकी थी। मार्च में जब इंदिरा जी का विवाह हुआ तो हमें निमन्त्रित किया गया और उस अवसर पर मिसेज, नायडू के आग्रह पर देश के बड़े-बड़े नेता-मेहमानों के सामने हमने मिलकर ‘वर्ष नव हर्ष नव’ का गीत सुनाया था। हमारा यह ‘डूएट’ उन दिनों प्रयाग में प्रसिद्ध हो गया था। वही ‘डूएट’ हमने छब्बीस वर्ष बाद इंदिरा जी के बड़े लड़के राजीव के विवाह पर सुनाया। पर हमारे कंठों में अब वह बात कहाँ ! समय का प्रभाव मानना ही पड़ता है। खैरियत है कि स्मृतियों पर अभी उसने हाथ साफ नहीं किया।‘
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