इस चिट्ठी में, बच्चों को विज्ञान में रुचि पैदा करने के तरीकों के साथ,पहली प्रसिद्ध विज्ञान कहानी फ्रैंकेस्टाइन की लेखिका मेरी शैली और उन हालात की चर्चा है जिसमें यह कहानी लिखी गयी।
Monday, January 29, 2007
Monday, January 15, 2007
तो क्या खिड़की प्रेमी ठंडे और कठोर होते हैं?
मैंने अपनी पिछली पोस्ट 'लिनेक्स प्रेमी पुरुष - ज्यादा कामुक और भावुक???' पर सुश्री एन्ड्रिया कॉर्डिंगली के विचार रखे। इस चिट्ठी का अन्त करते समय मैंने पूछा था कि, 'क्या यह सब केवल विज्ञापन ही है या फिर...'। मैंने यह इसलिये लिखा कि यदि मैं इस पर फिर से लिखना चाहूं तो यहीं से शुरु कर सकता हूं। रवी जी ने इस चिट्ठी पर टिप्पणी की,
मैं न तो कोई वैज्ञानिक या कंप्यूटर विशेषज्ञ हूं और न ही कंप्यूटर या विज्ञान सम्बन्धित फाईलें पलटता हूं पर विज्ञान मेरा प्रिय विषय रहा है। इसलिये कंप्यूटर पर काम करना, इसके बारे में जानकारी रखना, पसन्द है।
मैंने कंप्यूटर पर काम करना माईक्रोसॉफ्ट के डॉस ऑपरेटिंग सिस्टम से शुरु किया। उसके बाद विंडोज़ ९५ और विंडोस़ ९८ पर भी काम किया। इसी बीच बहुत दिनों तक OS2 पर भी काम किया और इसी पर काम करना चाहता था। यह चला नहीं, इसलिये इस पर काम करना बन्द करना पड़ा।
OS2 एक ऑपरेटिंग सिस्टम है। यह आई.बी.एम. के द्वारा विकसित किया गया था। इस समय यह समाप्त सा है क्योंकि, अब इस पर आई.बी.एम. ने भी सहायता देना बन्द कर दिया है। पर्सनल कंप्यूटर (पी.सी.) की शुरुवात तो स्टीवन जॉबस् (मैक कंप्यूटर) ने की पर इसमें सबसे बड़ा योगदान आई.बी.एम. का था। मेरी लिये यह एक पहेली सा था कि,
मैंने यह पोस्ट रवी जी के सवाल यानि कि खिड़की के संदर्भ पर शुरु की। पर बात ओपेन सोर्स की करने लगा। आप तो यही सोच रहें होंगे कि मैं टिप्पणी समझा ही नहीं। यह आपकी गलती नहीं। यह तो लोग अक्सर कह देते हैं कि, 'उन्मुक्त बाबू, आप पहले बात को समझा करें और फ़िर राय व्यक्त किया करें।' चलिये विषय पर आते हैं - ऐसे इन सब का सम्बन्ध इसी विषय से है। सब्र कीजये इतनी भी ज्लदी क्या है:-)
मैंने अपने प्रश्न का हल ढ़ूढते समय जिन किताबों को पढ़ा उनमें से एक पुस्तक थी - HARD DRIVE Bill Gates and the making of the Microsoft Empire by James Wallace & Jim Erickson. यह पुस्तक Harper Business, जो कि Harper Collins का एक भाग है, ने छापी है। यह १९९३ में आयी थी और तभी मैंने इसे पढ़ा था। शायद, सारे सफल व्यापर घराने की यही कहानी हो।
१९८० दशक के अन्त और १९९० दशक के शुरु में माईक्रोसॉफ्ट के खिलाफ कुछ कानूनी कार्यवाही की गयी थी। इस बारे में न्यूस़वीक में एक लेख १९९१ में छपा था। इस कानूनी कार्यवाही के बारे में बिल गेट्स ने न्यूसवीक को बताया कि,
इस पुस्तक में यह भी लिखा है कि न्यूस़वीक लेख का समापन कैसे हुआ है और कुछ टिप्पणी भी की गयी है। यह इस प्रकार है,
यह अंग्रेजी में है, मैं इसका अनुवाद नहीं करना चाहता। आप, इसका अर्थ स्वयं लगायें और तय करें कि क्या खिड़की वाला (वाले नहीं) ठंडा और कठोर है? :-)
'तो क्या खिड़की (विंडोज़) प्रेमी ठंडे और कठोर होते हैं?'यह हास्य में की गयी टिप्पणी है। यहां पर, हास्य में, कुछ इसी के सन्दर्भ में।
मैं न तो कोई वैज्ञानिक या कंप्यूटर विशेषज्ञ हूं और न ही कंप्यूटर या विज्ञान सम्बन्धित फाईलें पलटता हूं पर विज्ञान मेरा प्रिय विषय रहा है। इसलिये कंप्यूटर पर काम करना, इसके बारे में जानकारी रखना, पसन्द है।
मैंने कंप्यूटर पर काम करना माईक्रोसॉफ्ट के डॉस ऑपरेटिंग सिस्टम से शुरु किया। उसके बाद विंडोज़ ९५ और विंडोस़ ९८ पर भी काम किया। इसी बीच बहुत दिनों तक OS2 पर भी काम किया और इसी पर काम करना चाहता था। यह चला नहीं, इसलिये इस पर काम करना बन्द करना पड़ा।
OS2 एक ऑपरेटिंग सिस्टम है। यह आई.बी.एम. के द्वारा विकसित किया गया था। इस समय यह समाप्त सा है क्योंकि, अब इस पर आई.बी.एम. ने भी सहायता देना बन्द कर दिया है। पर्सनल कंप्यूटर (पी.सी.) की शुरुवात तो स्टीवन जॉबस् (मैक कंप्यूटर) ने की पर इसमें सबसे बड़ा योगदान आई.बी.एम. का था। मेरी लिये यह एक पहेली सा था कि,
- मैक कंप्यूटर दुनिया में सबसे पहला पर्सनल कंप्यूटर, चलने में सबसे आसान (user friendly), फिर भी क्यों सबसे लोकप्रिय नहीं हुआ।
- OS2 उच्च कोटि का ऑपरेटिंग सिस्टम, तकनीक की दृष्टि से सारे ऑपरेटिंग सिस्टम से बेहतर, विंडोस़ से कम से कम १० साल आगे। फिर भी क्यों बैठ गया।
मैंने यह पोस्ट रवी जी के सवाल यानि कि खिड़की के संदर्भ पर शुरु की। पर बात ओपेन सोर्स की करने लगा। आप तो यही सोच रहें होंगे कि मैं टिप्पणी समझा ही नहीं। यह आपकी गलती नहीं। यह तो लोग अक्सर कह देते हैं कि, 'उन्मुक्त बाबू, आप पहले बात को समझा करें और फ़िर राय व्यक्त किया करें।' चलिये विषय पर आते हैं - ऐसे इन सब का सम्बन्ध इसी विषय से है। सब्र कीजये इतनी भी ज्लदी क्या है:-)
मैंने अपने प्रश्न का हल ढ़ूढते समय जिन किताबों को पढ़ा उनमें से एक पुस्तक थी - HARD DRIVE Bill Gates and the making of the Microsoft Empire by James Wallace & Jim Erickson. यह पुस्तक Harper Business, जो कि Harper Collins का एक भाग है, ने छापी है। यह १९९३ में आयी थी और तभी मैंने इसे पढ़ा था। शायद, सारे सफल व्यापर घराने की यही कहानी हो।
१९८० दशक के अन्त और १९९० दशक के शुरु में माईक्रोसॉफ्ट के खिलाफ कुछ कानूनी कार्यवाही की गयी थी। इस बारे में न्यूस़वीक में एक लेख १९९१ में छपा था। इस कानूनी कार्यवाही के बारे में बिल गेट्स ने न्यूसवीक को बताया कि,
'The FTC investigation was a lightening rod to bring computer people forward and say that it would be helpful if Microsoft was hobbled in some way.'
इस पुस्तक में यह भी लिखा है कि न्यूस़वीक लेख का समापन कैसे हुआ है और कुछ टिप्पणी भी की गयी है। यह इस प्रकार है,
'The Newsweek article ended with an apt passage from John Steinbeck's novel Canary Row: "The things we admire in men, kindness and generosity, openness, honesty, understandingn and feeling are the concomnitants of failure in our system. And those traits we detest, sharpness, greed, acquisitiveness, meanness, egotism and self-interest are the traits of success. And while men admire the quality of the first they love the produce of the second." The same, apparently, was true about Gates.'
यह अंग्रेजी में है, मैं इसका अनुवाद नहीं करना चाहता। आप, इसका अर्थ स्वयं लगायें और तय करें कि क्या खिड़की वाला (वाले नहीं) ठंडा और कठोर है? :-)
Thursday, January 11, 2007
लिनेक्स प्रेमी पुरुष - ज्यादा कामुक और भावुक ? ? ?
लिनेक्स और सेक्स – क्या इन दोनो में सम्बन्ध है।
सुश्री कॉर्डिंगली के अनुसार महिलायें उन पुरुषों को ज्यादा पसन्द करती हैं जो कि पेंग्यूइन से प्रेम करते हैं। उनका अर्थ किसी पेंग्यूइन पक्षी या खिलौने से नहीं है पर लिनेक्स के चिन्ह पेंग्यूइन से है। हूं... हूं क्या बात है। (झूट ही सही, सपने देखने से कौन रोक सकता है)
महिलायें ऐसे लोगो को क्यों पसन्द करती हैं?
क्योंकि ऐसे लोग जोशीले, उत्साही और कामुक होते हैं।
ऐसे लोग मुश्किलों को कैसे झेलते हैं?
मुश्किल का हल निकालने में, लिनेक्स प्रेमियों का कोई सानी नहीं हैं। आप उनके सामने कोई भी मुश्किल रखें, वे बहुत ज्लद उसका हल निकालेगे।
वे ऐसा कैसे कर लेते हैं?
लिनेक्स में स्वयं मुश्किलो का हल निकालना पड़ता है। बस, हल ढ़ूढते हुऐ, वे इस कला में सिद्धहस्त हो चुके होते हैं।
ऐसे लोग क्या सोचते हैं?
यह लोग अकसर मुश्किल बातों का हल सोचते रहते हैं। मसलन यह ब्रहमांड कैसे बना? ब्लैक होल्स कैसे आये? यह बात दीगर है कि जहां वे इन बातों को सोचते हैं वहां उनका क्या औचित्य है - मसलन कार में मस्ती में घूमते समय :-)
लिनेक्स में विश्वास करने वाले लोग कैसे होते हैं?
लिनेक्स प्रयोग करने वाले लोग एक तरफ जहां भावुक होते हैं वहीं अपनी बात न केवल विश्वास करते हैं पर उसे जोर देकर कहने में कभी नहीं हिचकिचाते। यह लोग सपने देखते हैं और उन सपनो को पूरा करने का माद्दः रखते हैं। मालुम नहीं यह लोग सोते भी हैं कि नहीं, पर यह सच दिन रात काम में लगे रहते हैं फिर भी इनकी ऊर्जा में कोई कमी नहीं होती।
क्या यह लोग कंजूस होते हैं?
बिलकुल नहीं। यह लोग न केवल अच्छा पैसा कमाते हैं पर उसे खर्चा भी करना जानते हैं। हां यह बात अलग है कि उनके सब रास्ते लिनेक्स पर जाते हैं :-)
क्या आपको अभी भी इस बात का विश्वास नहीं है?
यदि आप महिला हैं तो आप वह प्रयोग करके देखिये जो कि सुश्री कॉर्डिंगली की महिला मित्र ने किया। यह प्रयोग भी उनकी चिट्ठी में बताया गया है। आप यह तभी करें जब आप शादी-शुदा हों। बाद में यह मत कहियेगा कि मैंने बताया नहीं।
मैं नहीं जानता कि सुश्री कॉर्डिंगली की बात सच है अथवा नहीं। पर यह सच है कि यदि मुन्ने की मां ने इसे पढ़ लिया तो मेरा घर से बाहर निकलना दूभर हो जायगा और किसी भी महिला से बात करने की बात तो दूर, महिलाओं की तरफ देखना भी वर्जित। वह कभी यह बात नहीं मानेगी कि यह इस शर्ट का एक विज्ञापन मात्र है, या केवल हसी-मजाक के लिये लिखी गयी एक चिट्ठी है, जिसके लिखने वाले का भी जवाब नहीं।
'उन्मुक्त जी, आप तो सीरियस बातें किया करते हैं। आपको मजाक कब से सूझने लगा।'भाई, मैं तो यही समझता था कि इन दोनो में कोई सम्बन्ध नहीं है और यह मैं नहीं कह रहा हूं यह तो सुश्री एन्ड्रिया कॉर्डिंगली कह रही हैं। सुश्री कॉर्डिंगली स्वयं लिनेक्स प्रेमी हैं और लिनेक्स के बारे न केवल लिखती हैं पर इसकी मुश्किलों को भी दूर करती हैं।
सुश्री कॉर्डिंगली के अनुसार महिलायें उन पुरुषों को ज्यादा पसन्द करती हैं जो कि पेंग्यूइन से प्रेम करते हैं। उनका अर्थ किसी पेंग्यूइन पक्षी या खिलौने से नहीं है पर लिनेक्स के चिन्ह पेंग्यूइन से है। हूं... हूं क्या बात है। (झूट ही सही, सपने देखने से कौन रोक सकता है)
महिलायें ऐसे लोगो को क्यों पसन्द करती हैं?
क्योंकि ऐसे लोग जोशीले, उत्साही और कामुक होते हैं।
ऐसे लोग मुश्किलों को कैसे झेलते हैं?
मुश्किल का हल निकालने में, लिनेक्स प्रेमियों का कोई सानी नहीं हैं। आप उनके सामने कोई भी मुश्किल रखें, वे बहुत ज्लद उसका हल निकालेगे।
वे ऐसा कैसे कर लेते हैं?
लिनेक्स में स्वयं मुश्किलो का हल निकालना पड़ता है। बस, हल ढ़ूढते हुऐ, वे इस कला में सिद्धहस्त हो चुके होते हैं।
ऐसे लोग क्या सोचते हैं?
यह लोग अकसर मुश्किल बातों का हल सोचते रहते हैं। मसलन यह ब्रहमांड कैसे बना? ब्लैक होल्स कैसे आये? यह बात दीगर है कि जहां वे इन बातों को सोचते हैं वहां उनका क्या औचित्य है - मसलन कार में मस्ती में घूमते समय :-)
लिनेक्स में विश्वास करने वाले लोग कैसे होते हैं?
लिनेक्स प्रयोग करने वाले लोग एक तरफ जहां भावुक होते हैं वहीं अपनी बात न केवल विश्वास करते हैं पर उसे जोर देकर कहने में कभी नहीं हिचकिचाते। यह लोग सपने देखते हैं और उन सपनो को पूरा करने का माद्दः रखते हैं। मालुम नहीं यह लोग सोते भी हैं कि नहीं, पर यह सच दिन रात काम में लगे रहते हैं फिर भी इनकी ऊर्जा में कोई कमी नहीं होती।
क्या यह लोग कंजूस होते हैं?
बिलकुल नहीं। यह लोग न केवल अच्छा पैसा कमाते हैं पर उसे खर्चा भी करना जानते हैं। हां यह बात अलग है कि उनके सब रास्ते लिनेक्स पर जाते हैं :-)
क्या आपको अभी भी इस बात का विश्वास नहीं है?
यदि आप महिला हैं तो आप वह प्रयोग करके देखिये जो कि सुश्री कॉर्डिंगली की महिला मित्र ने किया। यह प्रयोग भी उनकी चिट्ठी में बताया गया है। आप यह तभी करें जब आप शादी-शुदा हों। बाद में यह मत कहियेगा कि मैंने बताया नहीं।
मैं नहीं जानता कि सुश्री कॉर्डिंगली की बात सच है अथवा नहीं। पर यह सच है कि यदि मुन्ने की मां ने इसे पढ़ लिया तो मेरा घर से बाहर निकलना दूभर हो जायगा और किसी भी महिला से बात करने की बात तो दूर, महिलाओं की तरफ देखना भी वर्जित। वह कभी यह बात नहीं मानेगी कि यह इस शर्ट का एक विज्ञापन मात्र है, या केवल हसी-मजाक के लिये लिखी गयी एक चिट्ठी है, जिसके लिखने वाले का भी जवाब नहीं।
Tuesday, January 09, 2007
गेहूं और हल्दी का लफड़ा: पेटेंट पौधों की किस्में एवं जैविक भिन्नता
पहला भाग: पेटेंट
दूसरा भाग: पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम
तीसरा भाग: पेटेंट पौधों की किस्में एवं जैविक भिन्नता
पहली पोस्ट: प्रस्तावनादूसरा भाग: पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम
तीसरा भाग: पेटेंट पौधों की किस्में एवं जैविक भिन्नता
दूसरी पोस्ट: बासमती चावल का झगड़ा
यह पोस्ट: गेहूं और हल्दी का लफड़ा
अगली पोस्ट: नीम पर कड़ुवाहट
गेहूं
यूलिवर नाम की कम्पनी गलेटी नामक गेहूं का बीज बनाती थी। इसे मोसेन्टो ने खरीद लिया। उसके पश्चात इस पर यूरोपियन पेटेंट कार्यालय के म्यूनिख कार्यालय से इस पर 21-5-2003 को एक पेटेंट प्राप्त किया। हमारे देश में नपहाल (Nap Hal) नाम का एक सामान्य किस्म का गेहूं होता है गलेटी में वहीं गुण हैं जो कि नपहाल में हैं इसका प्रयोग चपाती बनाने में किया जाता है। नपहाल में अन्य गेहूं की किस्मों से कम ग्लूटेन (Gluten) होता है जो इसकी Viscoelasticity को कम कर देता है। यह पकाने के दौरान कम फूलती है। यह कुरकुरे ब्रेड बनाने में प्रयोग किया जाता है। इस पेटेंट के खिलाफ कार्यवाही करने पर इसे 23-1-2004 को रद्द कर दिया गया।
हल्दी: Turmeric
हल्दी के कई गुण हैं इसमें कई तरह की बीमारियां जैसे कि वातज रोग (Rheumatoid) और जोड़ों का दर्द (Osteoarthritis) को ठीक करने की क्षमता है। इस पर कई तरह के पेटेंट मिल चुके हैं। इस पर एक पेटेंट, घाव भरने के लिए भी था। यह मार्च 1995में में दिया गया था। यह मिस्सीसिप्पी विश्वविद्यालय में दो भारतीयों को दिया गया। हमने (भारतवर्ष ने) पूर्व कला के आधार पर इस पेटेंट को चुनौती देते हुए यू.एस.पी.टी.ओ. के यहां एक आपत्ति दाखिल की। इस आपत्ति को स्वीकार कर लिया गया और यह पेटेंट रद्द कर दिया गया है।
Sunday, January 07, 2007
आभार, धन्यवाद, बधाई
आप सबका आभार और धन्यवाद। आपने मुझे इस लायक समझा कि उदियमान चिट्ठाकार २००६ में एक पदक मेरे हाथ भी लग गया। मेरा प्रयत्न रहेगा कि मैं और अच्छा लिखूं ताकि इन्टरनेट पर हिन्दी के विस्तार में कुछ योगदान कर सकूं।
मैं उस अज्ञात बन्धु का भी आभार प्रगट करना चाहता हूं, जिसने मुझे इस चुनाव के लिये नामांकित किया। क्योंकि उसके बिना तो मैं यहां तक नहीं पहुंच सकता था।
मेरे चिट्ठियों पर बहुत कम टिप्पणियां रहती हैं। मेरी अधिकतर चिट्ठियां बिना किसी टिप्पणी के हैं। इसलिये मैं कभी नहीं सोचता था कि मेरी चिट्ठियों को लोग पसन्द करते होंगे। तरकश पर अनूप जी ने मेरा परिचय देते समय लिखा कि मैं टिप्पणियां कम करता हूं। टिप्पणियों के बारे में पर तरुन जी ने यहां बताया कि इन पर 'इस हाथ ले उस हाथ दे' का सिद्धान्त लगता है। मैं सबके चिट्ठे तो अवश्य पढ़ता हूं पर यह सच है कि टिप्पणियां कम कर पाता हूं। कभी समय कि कमी, तो कभी यह न समझ पाने की इतनी सुन्दर चिट्ठी पर क्या लिखूं कि इसकी सुन्दरता बढ़ जाये। आने वाले समय पर मेरा यह भी प्रयत्न रहेगा कि मैं चिट्ठेकार बन्धुवों कि चिट्ठियों पर अधिक से अधिक टिप्पणी करूं।
मेरी तरफ से समीरलाल जी, शुऐब जी, और सागर चन्द जी को पुरुस्कार जीतने की बधाई।
सबको बधाई, जिन्होने इस चुनाव में वोट दिया। हांलाकि मैंने स्वयं या फिर मुन्ने की मां ने इस चुनाव में कोई वोट नहीं दिया। यह इस कारण से नहीं कि हमें इस चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं, पर इसलिये कि हम इस चुनाव में निष्पक्ष रहना चाहते थे। मैं तो मुन्ने की मां के अलावा किसी और को वोट दे ही नहीं सकता था, न ही देने की हिम्मत थी :-)
मेरी तरफ से तरकश टीम को भी बधाई। उन्होने न केवल इस तरह के आयोजन की बात सोची पर इसका इसका सफल आयोजन भी कराया। मैं आशा करता हूं कि वे न केवल इसका आयोजन हर साल करेंगे पर इस तरह के अन्य आयोजन भी करते रहेंगे जिससे लोगो में जोश बना रहेगा। आने वालो सालो में अलग अलग श्रेणियों में भी आयोजन कराने की बात सोची जा सकती है या फिर कुछ इस तरह के आयोजन की जिसमें न केवल किसी साल में शुरु किये गये चिट्ठेकार पर सारे चिट्ठेकार भाग ले सकें।
मुझे एक बात का दुख भी है। हमारे साथ कोई महिला चिट्ठाकार नहीं है।
मुझे मुन्ने की मां को कई बार कहना पड़ता है तब वह कोई चिट्ठी पोस्ट करती है। जब मैं उससे पूछता हूं कि वह और चिट्ठियां क्यों नहीं पोस्ट करती, तो उसका जवाब रहता है कि,
मैं उस अज्ञात बन्धु का भी आभार प्रगट करना चाहता हूं, जिसने मुझे इस चुनाव के लिये नामांकित किया। क्योंकि उसके बिना तो मैं यहां तक नहीं पहुंच सकता था।
मेरे चिट्ठियों पर बहुत कम टिप्पणियां रहती हैं। मेरी अधिकतर चिट्ठियां बिना किसी टिप्पणी के हैं। इसलिये मैं कभी नहीं सोचता था कि मेरी चिट्ठियों को लोग पसन्द करते होंगे। तरकश पर अनूप जी ने मेरा परिचय देते समय लिखा कि मैं टिप्पणियां कम करता हूं। टिप्पणियों के बारे में पर तरुन जी ने यहां बताया कि इन पर 'इस हाथ ले उस हाथ दे' का सिद्धान्त लगता है। मैं सबके चिट्ठे तो अवश्य पढ़ता हूं पर यह सच है कि टिप्पणियां कम कर पाता हूं। कभी समय कि कमी, तो कभी यह न समझ पाने की इतनी सुन्दर चिट्ठी पर क्या लिखूं कि इसकी सुन्दरता बढ़ जाये। आने वाले समय पर मेरा यह भी प्रयत्न रहेगा कि मैं चिट्ठेकार बन्धुवों कि चिट्ठियों पर अधिक से अधिक टिप्पणी करूं।
मेरी तरफ से समीरलाल जी, शुऐब जी, और सागर चन्द जी को पुरुस्कार जीतने की बधाई।
सबको बधाई, जिन्होने इस चुनाव में वोट दिया। हांलाकि मैंने स्वयं या फिर मुन्ने की मां ने इस चुनाव में कोई वोट नहीं दिया। यह इस कारण से नहीं कि हमें इस चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं, पर इसलिये कि हम इस चुनाव में निष्पक्ष रहना चाहते थे। मैं तो मुन्ने की मां के अलावा किसी और को वोट दे ही नहीं सकता था, न ही देने की हिम्मत थी :-)
मेरी तरफ से तरकश टीम को भी बधाई। उन्होने न केवल इस तरह के आयोजन की बात सोची पर इसका इसका सफल आयोजन भी कराया। मैं आशा करता हूं कि वे न केवल इसका आयोजन हर साल करेंगे पर इस तरह के अन्य आयोजन भी करते रहेंगे जिससे लोगो में जोश बना रहेगा। आने वालो सालो में अलग अलग श्रेणियों में भी आयोजन कराने की बात सोची जा सकती है या फिर कुछ इस तरह के आयोजन की जिसमें न केवल किसी साल में शुरु किये गये चिट्ठेकार पर सारे चिट्ठेकार भाग ले सकें।
मुझे एक बात का दुख भी है। हमारे साथ कोई महिला चिट्ठाकार नहीं है।
मुझे मुन्ने की मां को कई बार कहना पड़ता है तब वह कोई चिट्ठी पोस्ट करती है। जब मैं उससे पूछता हूं कि वह और चिट्ठियां क्यों नहीं पोस्ट करती, तो उसका जवाब रहता है कि,
- कंप्यूटर तुम्हारा ज्यादा अच्छा मित्र है; या
- घर का काम कौन करेगा; या
- मुझे कंप्यूटर कम समझ में आता है।
Saturday, January 06, 2007
एक शब्द, एक हीरो, एक जीरो
क्या एक शब्द आपका जीवन बदल सकता है? क्या एक शब्द आपको हीरो से जीरो या जीरो से हीरो बना सकता है? जी हां, और यह शब्द है मकाका। इसने कम से कम दो व्यक्तियों का जीवन बदल दिया: एक हैं भारतीय मूल के अमेरीकी निवासी एस.आर. सिद्धार्थ और दूसरे हैं अमेरिका के ही निवासी जौर्ज ऐलेन पर यह कैसे हुआ?
जौर्ज ऐलेन अमेरिका में सेनेटर हैं। ये फिर से चुनाव लड़ रहे हैं और रिप्बलिकन पार्टी की तरफ से अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने का सपना देखते हैं। यह जगह जगह अपनी मीटिंगे कर रहे थे। इनकी हर मीटिंग में भारतीय मूल के अमेरीकी निवासी सिद्धार्थ रहते थे। सिद्धार्थ, डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक हैं। एक मीटिंग में भाषण के दौरान ऐलेन ने, सिद्धार्थ को मकाका कह कर सम्बोधित किया और यही कह कर अमेरिका में स्वागत किया। सिद्धार्थ के पास वीडियो कैमरा था जिससे वह इस भाषण की क्लिप खींच रहा था उसने इसे वेब में डाल दिया। फिर तो इतना बवाल मचा कि पूछो मत।
वाशिंगटन पोस्ट ने, ऐलेन के खिलाफ एक सम्पादकीय लिखा। ऐलेन को सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी। फिर भी तूफान थमा नहीं। उनका चुनाव प्रचार टूट गया, वे हीरो से जीरो हो गये और उनकी मीटिंगे होना बन्द हो गयीं। सिद्धार्थ जिसे कोई नहीं जानता था वह जीरो से हीरो हो गया। सेलन डाट कॉम ने सिद्धार्थ को २००६ का व्यक्ति (person of the year) मान लिया।
आखिरकार मकाका कहने से क्या हो गया? ऐसा क्या है, इस शब्द में?
अपने देश में साधारणतया बन्दर (rhesus monkey) पाये जाते हैं। पुरानी फ्रेन्च कॉलोनियों में, इन्ही बन्दरों के लिये मकाका शब्द का प्रयोग किया जाता है। यदि इस शब्द को व्यक्तियों के लिये प्रयोग किया जाय तो, यह जातीय निन्दा के रूप में देखा जाता है। अमेरिकियों ने इसे भारतीय मूल के लोगों के खिलाफ, जातीय निन्दा के रूप में देखा। बस, इसीलिये इतना बवाल मच गया।
यह हादसा अगस्त २००६ के महीने में हुआ था। काफी दिन बीत गये हैं। फिर मैं, इतने दिन बाद क्यों इसके बारे में लिख रहा हूं?
कुछ समय से हिन्दी चिट्ठे-जगत में बन्दर की कथा सुन रहा हूं। बस इसी से इसकी याद आयी।
मैं क्षमा प्रार्थी हूं। मेरे विचार से हिन्दी चिट्ठे जगत में बन्दर के अलावा भी कई अन्य रोचक विषय चर्चा के लिये हैं।
जौर्ज ऐलेन अमेरिका में सेनेटर हैं। ये फिर से चुनाव लड़ रहे हैं और रिप्बलिकन पार्टी की तरफ से अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने का सपना देखते हैं। यह जगह जगह अपनी मीटिंगे कर रहे थे। इनकी हर मीटिंग में भारतीय मूल के अमेरीकी निवासी सिद्धार्थ रहते थे। सिद्धार्थ, डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक हैं। एक मीटिंग में भाषण के दौरान ऐलेन ने, सिद्धार्थ को मकाका कह कर सम्बोधित किया और यही कह कर अमेरिका में स्वागत किया। सिद्धार्थ के पास वीडियो कैमरा था जिससे वह इस भाषण की क्लिप खींच रहा था उसने इसे वेब में डाल दिया। फिर तो इतना बवाल मचा कि पूछो मत।
वाशिंगटन पोस्ट ने, ऐलेन के खिलाफ एक सम्पादकीय लिखा। ऐलेन को सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी। फिर भी तूफान थमा नहीं। उनका चुनाव प्रचार टूट गया, वे हीरो से जीरो हो गये और उनकी मीटिंगे होना बन्द हो गयीं। सिद्धार्थ जिसे कोई नहीं जानता था वह जीरो से हीरो हो गया। सेलन डाट कॉम ने सिद्धार्थ को २००६ का व्यक्ति (person of the year) मान लिया।
आखिरकार मकाका कहने से क्या हो गया? ऐसा क्या है, इस शब्द में?
अपने देश में साधारणतया बन्दर (rhesus monkey) पाये जाते हैं। पुरानी फ्रेन्च कॉलोनियों में, इन्ही बन्दरों के लिये मकाका शब्द का प्रयोग किया जाता है। यदि इस शब्द को व्यक्तियों के लिये प्रयोग किया जाय तो, यह जातीय निन्दा के रूप में देखा जाता है। अमेरिकियों ने इसे भारतीय मूल के लोगों के खिलाफ, जातीय निन्दा के रूप में देखा। बस, इसीलिये इतना बवाल मच गया।
यह हादसा अगस्त २००६ के महीने में हुआ था। काफी दिन बीत गये हैं। फिर मैं, इतने दिन बाद क्यों इसके बारे में लिख रहा हूं?
कुछ समय से हिन्दी चिट्ठे-जगत में बन्दर की कथा सुन रहा हूं। बस इसी से इसकी याद आयी।
मैं क्षमा प्रार्थी हूं। मेरे विचार से हिन्दी चिट्ठे जगत में बन्दर के अलावा भी कई अन्य रोचक विषय चर्चा के लिये हैं।
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