Sunday, June 08, 2008

क्या आप इस शख्स को जानते हैं?

यह चिट्ठी मेरी सिक्किम यात्रा की पहली कड़ी है। इसमें एक ऐसी घटना का जिक्र है जो हमारे देश में अक्सर होती है और जो मुझे दुखी करती है। यह ऐसी नहीं है जो दूर न जा सकती है । दुख इस बात का होता है कि अक्सर यह पढ़े लिखे, संपन्न घराने के लोग भी करते हैं। यह हिन्दी (देवनागरी लिपि) में है। इसे आप रोमन या किसी और भारतीय लिपि में पढ़ सकते हैं। इसके लिये दाहिने तरफ ऊपर के विज़िट को देखें।


'उन्मुक्त जी यह चित्र तो एकदम स्पष्ट नहीं है इन्हें कैसे पहचाना जा सकता है।'

मैं जानबूझ कर इनका स्पष्ट चित्र नहीं लिया। ऐसा मैंने क्यों किया यह मैं आपको इस चिट्ठी के अन्त होते पता चलेगा।

मैं इस शख्स को नहीं जानता हूं पर मैं इनके बारे में कुछ और जानकारी देना चाहूंगा शायद यह आपके जान पहचान वाले हों या आप स्वयं हों और इस चिट्ठी को पढ़ रहे हों।

यह महोदय मई २००८ के अन्त में सिक्किम घूमने गये थे। यह ३० मई को, मारुति वैन से यूथांग घाटी से वापस, गैंगटॉक की तरफ जा रहे थे। दोपहर २:३५ बजे तुंग (Toong) के पास सड़क पर पत्थर गिर गये थे इसलिये सड़क जाम हो गयी थी। दोनो तरफ गाड़ियों फंस गयी थीं जिसमें पर्यटक थे। इन पर्यटकों में अधिकतर लोग बच्चे, बच्चियां, एवं महिलायें भी थीं। इसमें इनकी मारुति वैन (या शायद बोलेरो) और हमारी गाड़ी भी फंस गयी थी। इनकी और हमारी गाड़ी के बीच पांच गाड़ियां थीं जिसमें केवल विदेशी पर्यटक थे।

'उन्मुक्त जी, इन्होंने क्या कर दिया कि आप इनके बारे में चिट्ठी लिखने बैठ गये।'

इन्होंने जो किया वह तो प्राकृतिक था पर जिस तरह से किया वह अशोभनीय था। सड़क साफ होने में समय लगा। बहुत से लोग पहाड़ पर झाड़ियो, पेड़ों और पत्थरों के पीछे चले गये पर यह महानुभाव सबके सामने सबकी नजर में चालू हो गये। इन्होंने अपने साथ की महिलाओं की तरफ पीट कर ली पर बाकी सारी जनता, जिसमें अनेक विदेशी महिलायें थीं
हम सब के सामने खुले रूप से .. कुछ लोगों ने हार्न बजाया। एक व्यक्ति ने इन पर एक कंकड़ फेंक इनका ध्यान खींचना चाहा पर इन पर कोई असर नहीं।

यह चित्र पोस्ट करने के लिये आप मुझे माफ करेंगे। मैंने कई बार सोचा कि इस चित्र को पोस्ट करूं या न करूं। लगा कि यदि पोस्ट नहीं करता हूं तो बात अधूरी रह जायगी। यह महाशय जिस गाड़ में चल रहे थे वह इनके पीछे है। बगल की महिला इनके साथ की है।

यह घटना शिष्टाचार से जुड़ी है। इस संदर्भ में, मैं आपको तीन साल पहले कोरिया में घटी एक घटना के बारे में बताना चाहूंगा जो कि शिष्टाचार से जुड़ी है।

जून २००५ में कोरिया में एक २० साल की लड़की कुत्ते को लेकर ट्रेन में जा रही थी। उसके कुत्ते ने ट्रेन में गन्दगी कर दी लोगों ने उसे साफ करने को कहा तो उसने मना कर दिया। एक अन्य व्यक्ति ने कैमरे से उसका चित्र खींच लिया और उसे अन्तरजाल पर डाल दिया।

यह कोरियन लड़की, बहुत जल्द ही gae-ttong-nyue (dog-shit-girl) (कुत्ता-गन्दगी-लड़की) के नाम से जानी जाने लगी। लोग उसे पहचानने लगे और उसके बारे में सूचना देने लगे। अन्ततः उसे विश्वविद्यालय छोड़ना पड़ा और सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी। इस बारे में आप विकिपीडिया में विस्तार से पढ़ सकते हैं जहां पर इसके बारे में चिट्ठों पर जो भी लिखा गया है या जो भी चित्र हैं या जो कुछ बहस का विषय है उसकी लिंक दी गयी है।

हमारे देश में सार्वजनिक मूत्रालय/ शौचालय कम हैं। यदि,
  • आपको मूत्रालय/ शौचालय जाने की जरूरत पड़ जाय तो सबके सामने न शुरू हो जांय - कुछ ओट, या फिर एकान्त जगह पर चले जांय।
  • आप नगर, विकास या पर्यटन विभाग से संबन्ध रखते हैं तो सार्वजनिक मूत्रालय/ शौचालय बनावायें। हो सके तो सुलभ शौचालय की तरह हो, जिसमें पैसा दे कर प्रयोग किया जा सकता है। यह सुविधा जनक है और एक अच्छा तरीका है। योरप में सार्वजनिक शौचालय प्रयोग करने में पैसा देना पड़ता है हांलकि अमेरिका में नहीं। पैसा दे कर शौचालय का प्रयोग करने की सुविधा देने में कोई गलती नहीं है

'उन्मुक्त जी , आपने यह नहीं बताया कि आपने स्पष्ट चित्र क्यों नहीं लिया?'

मैंने इस व्यक्ति का स्पष्ट चित्र नहीं खींचा। क्योंकि,
  • मैं इस व्यक्ति का नाम या परिचय नहीं जानना चाहता हूं। मैं केवल यह चाहता हूं कि इन्हें मालुम चल जाय कि उन्होंने ठीक नहीं किया।
  • हो सकता है कि इनसे यह भूलवश हो गया हो। हो सकता है कि यह समझ ही न सके हों कि इनसे क्या गलती हो रही है। मैं इनका नाम या परिचय जान कर या उसे सार्वजनिक कर इन्हें और शर्मिन्दा नहीं करना चाहता हूं।
  • मैं यह भी नहीं चाहता हूं कि इनके बारे में कोई और जानकारी सार्वजनिक की जाय। इसमें कहीं एकान्तता के अधिकारों की बात भी आती है। यह बहस का विषय है और मैं इस बहस में नहीं पड़ना चाहता।

'उन्मुक्त जी, पर आप क्या चाहते हैं?'

मैं केवल यह चाहता हूं कि यदि,
  • आप स्वयं वह व्यक्ति हैं और यह चिट्ठी पढ़ रहे हैं तो समझे कि आपने क्या गलत किया।
  • आप इन्हें जानते हैं तो इन्हें सलाह दें कि यह भविष्य में यह कार्य इस तरह से न करें।
  • यदि आपको कभी यह कार्य करना पड़े तो कभी इस तरह से न करें।

मैं स्वयं यह कार्य कभी इस तरह से नहीं करता। यदि मैं वह कोरियन लड़की होता तो उस गन्दगी को साफ करता। वास्तव में एक बार मेरे साथ ऐसा ही हुआ था पर हम कूपे में थे फिर भी हमने वह गन्दगी साफ की।

इस चिट्ठी से तो आपको मालुम ही चल गया होगा कि मैं सिक्किम यात्रा पर गया था। सिक्किम बहुत सुन्दर जगह है। मैं जल्द ही आपको वहां ले चलूंगा।

सिक्किम यात्रा
क्या आप इस शख्स को जानते हैं?।।

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(सुनने के लिये चिन्ह शीर्षक के बाद लगे चिन्ह ► पर चटका लगायें यह आपको इस फाइल के पेज पर ले जायगा। उसके बाद जहां Download और उसके बाद फाइल का नाम अंग्रेजी में लिखा है वहां चटका लगायें।: Click on the symbol ► after the heading. This will take you to the page where file is. Click where 'Download' and there after name of the file is written.)
यह ऑडियो फइलें ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप -
  • Windows पर कम से कम Audacity, MPlayer, VLC media player, एवं Winamp में;
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; और
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में - सुन सकते हैं।
बताये गये चिन्ह पर चटका लगायें या फिर डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले।

yeh post meri sikkim yatra kee phlee kri hai. is per el aisee ghatnaa ka jikra hai jisne mujhe dukhee kiyaa. yeh devnagree mein hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

This post is my first one of my Sikkim trip. It is about an incident that pained me. It is in Hindi (Devnaagaree script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.


सांकेतिक शब्द
Sulabh International, सुलभ शौचालय, good manners, manners,
Sikkim, सिक्किम,
Travel, Travel, travel and places, Travel journal, Travel literature, travelogue, सैर सपाटा, सैर-सपाटा, यात्रा वृत्तांत, यात्रा-विवरण, यात्रा विवरण, यात्रा संस्मरण,

13 comments:

  1. ओह! पढ़ना प्रारम्भ किया तो पढ़ते ही गये। और ये सज्जन तो हमें रोज मिलते हैं!:)

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  2. Hamare yahan Delhi me jo ki Bharat ki Rajdhani hai eis tarah ke aur in jaise aneko sajjan roj miltey hai. Ab aap swayam hi soche ki inhone jo kiya vo ek jangal me kiya par yahn to log sadak ki footpath par kartey hai Delhi me. Eska hal sujhaye. Delhi jaise shaharo me bhi abadi ke hisab se sabhi jagah shauchalaya ki suvidha nahi hai atah log jarurat ke samay footpath ka estemal kar lete hai.
    Kahi urinal hai bhi to itna Ganda ki uski gangh se behoshi chhane lage. Samasya to hai par hal sujhaye alochna karke India ko Koria na banye. Vaise bhi itni jaldi India se Koria to banane se raha atah apne yaha ke sansadhano aur kshamtao se hal sujhye.

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  3. Anonymous9:07 pm

    बधाई हो आपको, आपने बहुत अच्छा काम किया जो ये चिट्ठा लिख कर सबको इस बात से अवगत कराया | शायद मैं भी यही करती | मैं सिर्फ़ एक बात से सहमत नही हूँ कि इन महाशय से यह भूलवश हो गया | इन्होंने तो यही सोचा कि सारी दुनिया अपना घर है, इस तरह की मानसिकता रखने वाले हर रोज़ हर नुक्कड़ पर मिल जाते हैं |
    क्यों इन्हे यह ख्याल नही आता कि हम महिलाएं किस तरह रहती हैं पुरुषों को हम से सीख लेनी चाहिए |
    यह देखिये, कितना सच है. Something similar.

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  4. उन्‍मुक्‍त जी । एकदम मौजूं समस्‍या । इन महाशय को तो हम सब जानते हैं ।
    ये वही हैं जो बिल्डिंग की खिड़की से पान मसाले के रैपर फेंकते हैं ।
    ये वही हैं जो गंदे मोज़े लेकर ए.सी. डिब्‍बे में घुस जाते हैं और बदबू फैलाते हैं ।
    ये वही हैं......

    ओह एक नयी पोस्‍ट कौन लिखे
    आप समझ जाईये ।

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  5. ये तो हर गली मुहाले में रहते हैं, अक्सर सड़क पर दिख जाते हैं... आपने तस्वीर लगा कर अच्छा ही किया, सिक्किम के बारे में भी लिखिए... सिक्किम जैसी खूबसूरत जगह पर भी ये मिल गए आपको, आश्चर्य है !

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  6. sahi samsya ki or ishara kiya hai aapne --
    aisey vyakti aksar samnay shishtachar bhi bhoool jaate hain--
    ab yehi vyakti UAE mein aisa kabhi nahinn karenge k'yunki yahan aisa karne par 'Fine hai aur seedha Police station ki sair..!!!!

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  7. चलिये, आपने लिखा-शायद कोई इससे सीख ले ले. वो तो खैर जो भी थे-मगर ऐसे ही हर जगह मिल जायेंगे.

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  8. Anonymous8:38 am

    लघुशंका निवारण गलत नही है किन्‍तु शंका का निवारण सही जगह पर किया जाना चाहिए।

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  9. ये जनाब तो हर गली हर मोहल्ले हर शहर मे मिलते है। हमने भी ऐसे ही एक विदेशी महाशय की फोटो morjim beach पर खींची थी ।

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  10. इस पोस्ट में सबसे अधिक बात जो हमे प्रभावित की वह है आपका व्यक्तित्व .. आपने महोदय की बुरी बात पर ज़्यादा ज़ोर दिया और उनकी पहचान को छिपा गए.. यकीन है कि वे भी इस बात से प्रभावित होकर दुबारा वैसी गलती नही करेंगे..

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  11. सही कहा आपने, आदमी में इतना शिष्टाचार या समझ तो होनी ही चाहिए। वर्ना आदमी और जानवर में फर्क ही क्या रह जाएगा?

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  12. मिनाक्षी जी की बात से हम भी सहमत हैं। वैसे ऐसे महाशय तो यहां सुबह रोज सड़क किनारे बैठे दिखते हैं।

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  13. Thanks for bringing up such an important issue with such a decency.

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आपके विचारों का स्वागत है।