Friday, June 11, 2010

नाई की दाढ़ी को कौन बनाता है

यह चित्र आईसीएम २०१० की वेबसाइट के सौजन्य से
कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, गणित के तर्क शास्त्र पर चलता है। कंप्यूटर वायरस, इसकी कमियों का फायदा उठाते हैं। इसलिये साइबर अपराध की श्रृंखला में, साइबर अपराधों के बारे में बात करने से पहले, कुछ बातें  गणित के प्रसिद्ध २३ सवालों, और तर्क शास्त्र के क्षेत्र से, स्वयं को संदर्भित करने वाले विरोधाभास के बारे में। 
इस चिट्ठी को, सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह पॉडकास्ट ogg फॉरमैट में है। यदि सुनने में मुश्किल हो तो दाहिने तरफ का विज़िट,
'मेरे पॉडकास्ट बकबक पर नयी प्रविष्टियां, इसकी फीड, और इसे कैसे सुने'
देखें।


अक्सर समझा जाता है कि गणित अपने में सम्पूर्ण विषय है। लेकिन यह सच नहीं है। १९वीं शताब्दी के समाप्त होते होते गणितज्ञों को अपने विषय के बुनियादी सिद्वान्तों के बारे में शक होने लगा। वे गणित के अलग अलग क्षेत्रों के मूलभूत सिद्वान्तों के सबूत ढूंढने लगे।

गणित के बारे में सबसे महत्वपूर्ण सम्मेलन इंटरनेशनल काँग्रेस ऑफ मैथमैटीशियनस् (आईसीएम) (International Congress of Mathematicians) है। इसका आयोजन इंटरनेशनल मैथमैटकल यूनियन (आईएमयू) (International Mathematical Union) करती है। यह सम्मेलन चार साल में एक बार होता है। इसमें पिछले चार साल में गणित का लेखा जोखा देखा जाता है और भविष्य में गणित की राह।

इस बार आईसीएम, १९-२७ अगस्त २०१० के दौरान, हैदराबाद में हो रहा है। यह एक महत्वपूर्ण सम्मेलन है और ऐशिया में तीसरी बार हो रहा है। इसकी वेबसाइट में इस सम्मेलन के पोस्टर हैं। उसका एक पोस्टर आप दाहिने तरफ देख रहे हैं और दूसरे पोस्टर से यह संस्कृत का श्लोक आपके लिये।
यथा शिखा मयूराणां नागानां मण्यो यथा।
तथा वेदाङ्गशास्त्राणां गणितं मूर्धनि स्थितम्।।
जिस तरह से,
मोरों के सिर पर कलगी,
सापों के सिर में मणियां,
उसी तरह विज्ञान का सिरमौर गणित।।

शायद कोई अन्य संस्कृत ज्ञानी बता सके कि यह श्लोक कहां से है और क्या इसका अनुवाद सही है?

गणित में नोबल पुरस्कार नहीं मिलता है। इसका कारण स्पष्ट नहीं है। नोबल ने शादी नहीं की थी। लेकिन कई कहते हैं कि वे साइने लिंडफोर्स (Signe Lindfors) से प्रेम करते थे। उसने उनका प्रेम न स्वीकार कर, गणितज्ञ गोस्टा मिटंग लेफर {Magnus Gustaf (Gösta) Mittag-Leffler}  से शादी कर ली। इससे क्रोधित होकर, उन्होंने गणित में नोबल पुरुस्कार नहीं रखा। शायद यह सच नहीं है। नोबल ने शायद गणित का महत्व ही नहीं समझा।
फील्डस् मेडल - चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से

गणित में सबसे महत्वपूर्ण पुरस्कार फील्डस् मेडल (Field's Medal) है। यह पुरस्कार इसी आईसीएम में दिया जाता है। चूकिं यह चार साल में एक बार होती है इसलिये यह अधिक से अधिक चार लोगों को दिया जाता है। इसमें अधिकतम आयु सीमा ४० वर्ष की है।


आईसीएम में, आईएमयू स्कॉलर एवार्ड (IMU Scholar Award) भी दिया जाता है। यह पुरुस्कार नवोदित (३५ सालसे कम उम्र) गणितज्ञों को दिया जाता है। बहुत साल पहले शुभा को इसमें जाने का मौका मिला था। उसे आईएमयू स्कॉलर पुरस्कार मिल चुका है। मैं उसके पीछे पड़ा हूं कि वह इस सम्मेलन के बारे में अपने चिट्ठे पर लिखे। देखिये वह कब लिखती है। पत्नियां कब पतियों की बात मनाती हैं :-( वह जब लिखेगी तब देखा जायगा, हम लोग उसके लिये क्यों रुकें, चलिये आगे चलते हैं।
 
डेविड हिल्बर्ट - चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से

वर्ष १९०० की आईसीएम पेरिस में हुई थी। इसमें डेविड हिल्बर्ट ने २३ प्रश्नों को रखा था उसका कहना था कि इन मुश्किलों का हल ही गणित को नयी ऊँचाइयों तक ले जा सकता है। इसमें कुछ का हल तो निकाला जा सका है पर कईयों का नहीं।

इन प्रश्नों के, दूसरे प्रश्नों में सिद्घ करना कि,

'Mathematical reasoning is reliable, it should not lead to contradictory results'
गणित का तर्क विश्वसनीय है। यह विरोधाभास को जन्म नहीं दे सकता।

वर्ष १९२८ की आईसीएम बोलोन्या इटली (Bologna, Italy) में हुई। यहां पर हिल्बर्ट ने पुन: विचार किया,
'If it was possible to prove every true mathematical statement or can there be truly formal logical system for mathematics, where every statement could either be proved or disproved.
क्या यह संभव है कि प्रत्येक गणित के कथन को सिद्घ किया जा सके। दूसरे शब्दों में क्या गणितीय तर्क का ऐसा संसार हो सकता है जहां सही अथवा गलत कथन सिद्घ किये जा सके।

यह प्रश्न गणित के तर्क शास्त्र के क्षेत्र का है। इसमें सबसे मुश्किल स्वयं को संदर्भित करते हुए विरोधाभास (self referencing paradoxes) की है।

ऍपीमेनेडीज़ का चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से

स्वयं को संदर्भित करते विरोधाभास में सबसे प्रसिद्घ विरोधाभास ऍपीमेनेडीज़ या लाएरस् विरोधाभास (Epimenides' or liar's paradox) है। ऍपीमेनेडीज़ एक ग्रीक दार्शनिक थे और ईसा के ६०० साल पहले क्रीट में रहते थे। उन्होंने एक महत्वपूर्ण कथन किया,
'The Cretans are always liars.'
सारे क्रीटवासी हमेशा झूठ बोलते हैं।
यदि आप इनको सच माने तो यह झूठ बन जाती है और इसे झूठ माने तो यह सच हो जाती है। यही इसका विरोधाभास है।

बट्रेंड रसेल (Bertrand Russell) न केवल एक प्रसिद्व दार्शनिक थे बल्कि वह एक गणितज्ञ भी थे। उन्होंने सौ साल पहले इस विरोधाभास को नयी तरह से रखा। जिसको रसेल विरोधाभास या नाई का विरोधाभास (Russell's or Barber's paradox) भी कहा जाता है। यह कुछ इस प्रकार है,
'एक गांव में केवल एक ही नाई था। उसने कहा कि वह उन लोगों की दाढ़ी बनाता है जो स्वयं अपनी दाढ़ी न बनाते हो।'
इस कथन में कोई भी मुश्किल नहीं है जब तक आप यह सवाल न पूछें कि,
'नाई की दाढ़ी को कौन बनाता है?'
यदि नाई अपनी दाढ़ी स्वयं बनाता है तो उसके कथनानुसार उसे अपनी दाढ़ी नहीं  बनानी चाहिए। यदि वह अपनी दाढ़ी नहीं बनाता है तो उसके कथनानुसार अपनी दाढ़ी बनानी चाहिए।

रसेल और व्हाइटहैड (Whitehad) ने इस तरह के विरोधाभास को समाप्त करने के लिए वर्ष १९१३ में अंकगणित की एक प्रसिद्घ पुस्तक प्रिंसिपिया मैथमैटिका (Principia Mathematica) नाम से प्रकाशित की।  उनके विचार से उन्होंने इसका हल निकाल लिया था।  क्या यह सच था - यह इस श्रृंखला की अगली कड़ी में। 

लाऍरस् विरोधाभास का एक रूप और भी देखिये। शायद यह बेहतर समझ में आये :-)



पुनः (१) मैंने कुछ समय पहले मार्टिन गार्डनर को श्रद्धांजलि देते समय सुझाव दिया था कि क्या अच्छा हो कि कोई विश्वविद्यालय उनके सम्मान में कोई कॉंफरेन्स या सम्मेलन करे। आईसीएम २०१० के आयोजकों को भी मैंने यह सुझाव दिया है। उन्होंने कहा कि यह मुश्किल है क्योंकि सब पहले से तय हो गया है पर वे प्रयत्न करेंगे। देखिये यह हो पाता है कि नहीं।

(२)  १९२८ की आईसीएम Bologna, Italy में हुई थी। मैंने शहर का नाम बोलगाना लिखा था। राम चन्द्र मिश्र जी इटली में शोद्ध करते हैं। उन्होंने टिप्पणी करके बताया कि इसे बोलोन्या कहते हैं। उनको मेरा धन्यवाद।

(३) मैथली गुप्त जू बलॉगवाणी के संचालक हैं। उन्होंने टिप्पणी कर के बताया कि यह श्लोक सुधाकर द्विवेदी जी द्वारा लिखित ज्योतिष ग्रंथ याजुष ज्योतिष (Yajush Jyotish) के इस पन्ने से लिया गया है। मेरा उनको धन्यवाद। मुझे अच्छा लगेगा यदि कोई चिट्टाकार बन्धु इस ग्रंथ एवं इस श्लोक के संदर्भ की व्याख्या कर उसे प्रकाशित करे। 

(४) प्रेत विनाशक जी ने टिप्पणी कर बताया कि उपरोक्त श्लोक मूल रूप से लगध ऋषि द्वारा रचित ’वेदांग ज्योतिष’ नामक ग्रंथ से लिया गया है। लगध ऋषि का काल १३५० ई. पूर्व का माना जाता है। वे भारतीय ज्ञान परम्परा में प्राचीनतम विद्वानों में से हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि सुधाकर द्विवेदी जी ने अपनी पुस्तक में इस श्लोक को मात्र संदर्भित किया है। वे इसके लिये इस पेज को भी देखने को कहते है। यह तो अब बहुत ही रोचक होता जा रहा है।  क्या कोई चिट्ठाकार बन्धु, विस्तार से प्राचीन भारत में गणित के योगदान के बारे में लिख सकेगा।

  तू डाल डाल, मैं पात पात
भूमिका।। नाई की दाढ़ी को कौन बनाता है।।









About this post in Hindi-Roman and English yeh chitthi cyber apradh ki shrakhlaa kee chitthi hai. computer software ganit ke tark shatra per banaaye jaate hain. computer virus iskee kamiyon kaa faydaa utthate hain. is chitthi mein kuchh baaten ganit kee aur kuch bate svayam ko sandarbhit karte virodhabhas ke baare mein. yeh chitthi {devanaagaree script (lipi)} me hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

This post is part of 'Cyber Crime' series. Computer software are created with the help of mathematical logic. Computer virus take advantage of their shortcoming. In this post we talk about 23 most famous problems of Mathematics and about self referencing paradoxes. It is in Hindi (Devnagri script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.
सांकेतिक शब्द
Hindi, पॉडकास्ट, podcast,

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29 comments:

  1. आपने ’बोलगाना’ शायद Bologna (Italy) के लिये लिख दिया है| ये वही शहर है जहाँ अपने सुनील दीपक जी रहते हैं। मैं सबसे पहले इसी शहर मे उनसे (हिन्दी ब्लॉगर) मिला था। इस शहर को वहाँ पर ’बोलोन्या’ (gna = न्या) बोलते हैं।

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  2. आपके ब्लाग पर हमेशा ग्यानवर्द्धक जानकारी होती है। धन्यवाद।

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  3. राम चन्द्र जी धन्यवाद। मैंने ठीक कर दिया है।

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  4. रोचक, मनोरंजक! बलोनिया के बारे में मिश्र जी की बात सही है.

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  5. बहत ग़ज़ब , ज्ञानवर्धक और शानदार पोस्ट....

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  6. बड़ा ही गूढ़ विषय उठाया है आपने । गणितीय गणनाओं के बिना विज्ञान की तहों में उतरना संभव ही नहीं था । कम्प्यूटर के विकास ले गूगल की सर्च तक, सबमें गणितीय मॉडल विद्यमान है ।

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  7. प्रवीण जी, आप सही कहते हैं कि,
    'गणितीय गणनाओं के बिना विज्ञान की तहों में उतरना संभव ही नहीं था। कम्प्यूटर के विकास ले गूगल की सर्च तक, सबमें गणितीय मॉडल विद्यमान है।'
    मैं आजकल आएन स्टीवर्ट की 'लेटरस् टू अ यंग मैथमेटीशियन' पढ़ रहा हूं। यह हार्डी के प्रसिद्ध उत्कर्ष रचना 'अ मैथमेटीशियन अपॉलोजी' का जवाब है। यह बताती है गणित कहां कहां और कैसे प्रयोग होती है। इसके बारे में भी लिखूंगा।

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  8. जानदार!!!! शानदार !!!! गूढ़ विषयों पर तार्किक ढंग से बात ! आभार

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  9. ये श्लोक मैंने पढ़ा तो है, पर कहाँ याद नहीं. संस्कृत साहित्य और शास्त्र इतना विशाल है कि एक समय पर इतनी बातें याद रखना ज़रा मुश्किल है... ढूँढ़कर बता दूंगी पक्का ...
    मुझे गणित विषय से हमेशा से ही डर लगता है, शायद कोई अच्छा पढाने वाला नहीं मिला इसलिए... हाँ विज्ञान में रूचि है... पर प्रवीण जी के कथनानुसार तो गणित विज्ञान के अध्ययन के लिए आवश्यक है... वैसे भी आपका ये चिट्ठा पढकर गणित के प्रति रूचि जागृत हो रही है... मैंने आज शुभा जी के ब्लॉग में आपलोगों के विषय में पढ़ा, बुत अच्छा लगा... और लोगों की तरह मुझे भी आपलोगों से मिलने का मन होने लगा... मैं भी मानती हूँ कि विचार प्रमुख हैं पर व्यक्तित्व की भूमिका कम नहीं... इतने ज्ञानवर्धक लेख के लिए आभार.

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  10. संस्कृत का श्लोक बहुत ही सरल और प्रांजल है -अर्थ तो अपने ठीक किया है -यह इतना सरल है कि मैं खुद भी कर सकता हूँ !
    उसी तरह विज्ञान का सिरमौर गणित के बजाय उसी तरह वेदांग और शास्त्रों में (सिरमौर )गणित !
    अब जब आराधना जी स्रोत नहीं बता सकीं तो मुश्किल है -गूगल भी आपकी पोस्ट तक पहुंचा रहा है -श्लोक पहले का पढ़ा है !
    वीडियो खुल नहीं रहा है १
    जानकारीपूर्ण -आदरणीय शोभा जी से मेरा भी आग्रह की वे रपट तैयार करें !

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  11. अरविन्द जी, मैं संस्कृत का ज्ञानी नहीं हूं पर शब्दों के देख कर आपका ही अनुवाद सही लगता है। लेकिन वहां विज्ञान लिखने का कारण वह प्रसंग है जिसके संदर्भ में यह चिट्ठी लिखी है।

    मैं अक्सर शुभा को चिढ़ाता हूं कि भौतिक शास्त्र रानी है जिसका कि मैं प्रेमी हूं। गणित नौकरानी है। वह हर काम करने सब जगह पहुंच जाती है। उसे भी प्रसन्न रखना है :-)

    लगता है कि आपका अन्तरजाल धीमा है। मेरे यहां तो विडियो चल रहा है।

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  12. नाई की दाढ़ी कौन बनायेगा यह वाकई में बड़ा रोचक प्रश्न है.. उत्तर भी बतायें

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  13. बहुत रोचक है आपकी यह चिट्ठी, हमेशा की तरह.
    शायद उक्त श्लोक का स्रोत आपको और अरविन्द जी को पसन्द न आये :)क्योंकि यह श्लोक सुधाकर द्विवेदी जी द्वारा लिखित ज्योतिष ग्रंथ याजुष ज्योतिष (Yajush Jyotish) से लिया गया है. इस पन्ने की इमेज
    यहां हैं.

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  14. मैथिली जी का कोटि कोटि आभार जिन्होंने अपने एक सांस्कृतिक धरोहर को आखिर खोज ही निकाला !

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  15. रोचक रहा पठन!

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  16. @एक बात छूटी जा रही थी -मैथिली जी ने कहा है कि चूंकि उक्त उद्धरण एक ज्योतिष ग्रन्थ से है अतः मुझे और आपको भी शायद पसंद न आये !

    @मैथिली जी ,मैं आपके इस अवदान से इतना आह्लादित हुआ और आपके प्रति मेरे मन में थोडा और सम्मान भाव जागा -उन्मुक्त जी अपनी बात स्वयं स्पष्ट करेगें पर मैं यह स्पष्ट कर दूं मैं भारतीय ज्योतिर्विज्ञान जिसका पूरा आधार ही गणितीय है कभी विरुद्ध नहीं हूँ -मैं केवल फलाफल देने वाले फलित ज्योतिष का विरोधी हूँ -आपकी बात से मुझे थोडा दुःख पहुंचा -मगर आपकी खोज ने उसे तिरोहित भी कर दिया ...
    सादर ,

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  17. बहुत जमा पोस्ट की विषय वस्तु। और निश्चय ही, अगली पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी!

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  18. चलिए अच्छा हुआ कि आदरणीय मैथिली जी ने श्लोक का स्रोत ढूढ़कर मुझे इस कार्य से मुक्त किया, शायद मैंने वो श्लोक किसी रिसर्च पेपर में पढ़ा हो. प्राचीन संस्कृत-साहित्य और शास्त्रों में ढूंढती तो मुझे कभी न पता चलता. आभार.

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  19. एक दम नई जानकारी मेरे लिए ,धन्यवाद

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  20. "यथा शिखा मयूराणां ...."

    उपरोक्त श्लोक मूल रूप से लगध ऋषि द्वारा रचित ’वेदांग ज्योतिष’ नामक ग्रंथ से लिया गया है. लगध ऋषि का काल १३५० ई. पूर्व का माना जाता है. वे भारतीय ज्ञान परम्परा में प्राचीनतम विद्वानों में से हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि सुधाकर द्विवेदी जी ने अपनी पुस्तक में इस श्लोक को मात्र संदर्भित किया है.

    यह पृष्ठ देखें -
    http://pustak.org/bs/home.php?bookid=4545

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  21. लगध ऋषि का नाम मैंने सुना है. घोस्ट बस्टर की बात सही हो सकती है. चलिए इसी बहाने कई ज्योतिष के ग्रंथों के विषय में जानकारी मिली. आशा है कुछ और बातें सामने आयेंगी.

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  22. मैथिली गुप्त3:04 pm

    घोस्टबस्टर जी सहीं है,

    आचार्य लगध के वेदांग ज्योतिष के 2 हिस्से हैं, पहला हिस्सा आर्च ज्योतिष है जिसमें जो ऋगवेद पर आधारित है और दूसरा भाग याजुष्ज्योतिष जो यजुर्वेद पर आधारित है.

    आचार्य लगध की वेदांगज्योतिष का श्री टी के के शास्त्री द्वारा मूल श्लोको सहित अंग्रेजी भाष्य उपलब्ध है. मैं यह श्लोक इस पुस्तक में देख चुका हूं. घोस्टबस्टर जी मेरी बधाई स्वीकार करें.

    सुधाकर द्विवेदी जी की पुस्तक याजुष्ज्योतिष आचार्य लगध के वेदांगज्योतिष के दूसरे हिस्से का भाष्य प्रतीत होती है.

    @ अरविन्द जी, आपको मेरी बात से दुख पहुंचा, मैं इसके लिये क्षमा प्रार्थी हूं. आप तो ज्योतिष के बारे में अपने उद्गार सार्वजनिक कर सकते हैं, लेकिन मैं नहीं कर सकता.

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  23. @मैथिली जी ,शर्मिंदा न करें ,आपके सामाजिक सरोकारों की प्रतिबद्धता से मैं अवगत हूँ -और सिरिल जी भी 'आत्मा वै जायते पुत्रः ' सदृश हैं ! मैं तो आप सभी का शुभाकांक्षी हूँ !
    अपने उन्मुक्त जी की खोज को उसके मुकाम तक पहुंचा दिया ..मित्रगन भी जुटे और एक मकसद पूरा हुआ ..मिलकर हम क्या नहीं कर सकते.....
    पुनः आभार !

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  24. "यथा शिखा मयूराणां ...."

    उपरोक्त श्लोक मूल रूप से लगध ऋषि द्वारा रचित ’वेदांग ज्योतिष’ नामक ग्रंथ से लिया गया है.

    गोस्ट्बस्टर जी को बधाई!

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  25. सभी शुभाकांक्षी मित्रों का धन्यवाद. मुझे हर्ष है कि इस विषय में आप सभी जानकार लोगों की कुछ (छोटी सी ही सही) मदद कर सका. आदरणीय मैथिली जी ने अपने संग्रह से जांच कर प्रमाणित भी कर दिया.

    लेकिन पोस्ट में ही उठाये गये एक और मुद्दे पर अटक गया हूं. गणित में नोबेल पुरस्कार क्यूं नहीं रखा गया? इसके पीछे सही कारण क्या हो सकता है?

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  26. अद्भुत श्रृंखला... जारी रखिये.

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  27. ज्ञानवर्धक एवं रोचक ,शानदार पोस्ट ।

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  28. 'एक गांव में केवल एक ही नाई था। उसने कहा कि वह उन लोगों की दाढ़ी बनाता है जो स्वयं अपनी दाढ़ी न बनाते हो।'

    गणित महज एक भाषा है।

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  29. बहुत खूब!

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आपके विचारों का स्वागत है।