कुछ समय पहले, परी को शोध के लिये वियाना और मुन्ने को एक सम्मेलन में स्विटज़रलैण्ड जाना था। वे दोनो यूरोप तक आ रहे थे। मुन्ना समय निकाल कर भारत आ गया। लेकिन परी का शोद्ध पूरा नहीं हुआ है। इसलिये वह वियाना से वापस अमेरिका चली गयी।
मुन्ने का सम्मेलन Swiss Federal Institute of Technology Zurich के द्वारा आयोजित किया गया था। यह सम्मेलन एक सैरगाह में था। वहां उसे एक बैग मिला, उसमें यह लिखा था।
'Once we were twelve plastic bottles and we sadly about ready for the garbage, but one day a friend picked us up and with a magic, turned us into this soft bag.'अब यह हमारा प्रिय बैग है। हम इसी में अपनी खरीददारी करने का प्रयत्न करते हैं।
हम १२ प्लास्टिक की बोतलें थे और कूड़े दान में फेंके जाने वाले थे। एक मित्र ने हमें उठा लिया और जादू की छड़ी से इस कोमल से थैले में बदल दिया।
मुन्ना के साथ समय आनन्द से गुजरा। हम दोनों ने साथ-साथ एंजेला डन के द्वारा सम्पादित मैथमेटिकल बैफलरस् (Mathematical Bafflers edited by Angel Dunn) नामक पुस्तक की पहेलियों के हल निकाले। इस पुस्तक की पहेलियां रोचक हैं। यदि आपको या आपके मुन्ने या मुन्नी को पहेलियों में आनन्द आता है तब इस अवश्य पढ़ें।
मुन्ना के भारत आते समय, मैं कुछ उदास था। मेरे साथ शायद वैसा नहीं हुआ जैसा कि मैं चाहता था। जीवन के कुछ कटु सत्य से भी परिचय हुआ। ईश्वर हम सब को बराबर देता है यह अलग बात है कि कभी कहीं ज्यादा, तो कभी कम। हमारा समय आनन्द से गुजरा। लेकिन उससे मेरा दुख छिपा नहीं।
मुन्ने ने कहा,
मुन्ने ने मुझे जीवन-दर्शन का वह पाठ पढ़ाया जिसे मैं समझ नहीं पा रहा था। जैसा है उसे स्वीकार करो। उसमें आनन्द ढूढ़ो। भगवान कृष्ण, गीता में इसे अलग तरह से बताते हैं,'पापा, मुझे बहुत जगह काम करने का मौका नहीं मिला और बहुत जगह मिला। जहां नहीं मिल पाया उसके लिये मैं उदास नहीं होता हूं बल्कि समझता हूं कि यह उनका दुर्भाग्य था, मेरा नहीं।
हम सब जानते हैं कि तुम क्या हो, तुम्हारी क्या क्षमता है। यदि कोई तुम्हें नहीं समझ पाता, तो यह उसकी बदकिस्मती है, नुकसान उसका है - तुम्हारा नहीं।'
'जो हुआ वह अच्छे के लिये था,
जो हो रहा है वह अच्छे के लिये हो रहा है,
जो होगा वह भी अच्छे के लिये होगा।
तुमने क्या खो दिया जिसके लिये तुम रो रहे हो?
तुम क्या अपने साथ लाये थे, जिसे तुमने खो दिया?
तुमने क्या बनाया जिसे तुमने खो दिया?
इस दुनिया में तो तुम खाली हाथ आये थे।
तुम्हारे पास जो भी है वह उसी ने दिया,
तुम जो भी दोगे उसी को दोगे।
तुम खाली हाथ आये थे खाली हाथ जाओगे।
जो आज तुम्हारा है वह कल किसी का था और कल किसी और का होगा,
इसलिये क्यों बेकार में चिन्ता करना।'
यही बात 'तीन पेड़ों की कहानी' भी कुछ अलग तरह से कहती है।
उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।
१९८५ ने पीटर ब्रुकस् ने महाभारत नाटक के मंचन का निर्देशन किया। यह ९ घंटे लम्बा था। १९८९ में, इस पर ६ घंटे की टीवी श्रृंखला बनायी। तत्-पश्चात इसे ३-घंटे की कर, फिल्मघरों के लिये और डीवीडी पर जारी किया। उस फिल्म में, कृष्ण, अर्जुन को गीता का पाठ पढ़ाते हुऐ।
यही बात 'तीन पेड़ों की कहानी' भी कुछ अलग तरह से कहती है।
धन्यवाद बेटे राजा, मुझे समझाने के लिये, मुझे यह सीख देने के लिये। मैंने भी तुमसे जीवन का दर्शन समझा।
आज का दिन, तुम्हारे और परी दोनो के लिये सुख, शान्ति, यश, और समृद्धि लाये।
उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।
१९८५ ने पीटर ब्रुकस् ने महाभारत नाटक के मंचन का निर्देशन किया। यह ९ घंटे लम्बा था। १९८९ में, इस पर ६ घंटे की टीवी श्रृंखला बनायी। तत्-पश्चात इसे ३-घंटे की कर, फिल्मघरों के लिये और डीवीडी पर जारी किया। उस फिल्म में, कृष्ण, अर्जुन को गीता का पाठ पढ़ाते हुऐ।
चलते, चलते - मैथमेटिकल बैफलरस् से एक पहेली। किसी पार्टी में कितने व्यक्ति हों कि दो व्यक्तियों के जन्मदिन एक ही तारीख पर होने की संभावना १/२ (आधी) से अधिक हो।
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सांकेतिक शब्द
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हाल ही में हमें भी कुछ इसी तरह की खिन्नता का सामना करना पड़ा. दरअसल यहाँ सिस्टम ही ऐसा सड़ चुका है. तात्कालिक व्यक्तिगत लाभ की खातिर अपने समुदाय, देश और अंततः स्वयं के दीर्घकालीन नुकसान की ओर लोग आँखें मूंदे रहते हैं.
ReplyDeleteऔर, दिल बहलाने के लिए ग़ालिब, गीता का ज्ञान बहुत अच्छा है.
हम भी आपके दुख में शामिल हैं. दुखी हैं.
@ दिल को बहलाने को ग़ालिब ---
ReplyDeleteगीता का ज्ञान दिल को बहलाने के लिए नहीं, बल्कि दिल को इन दुखों से पूरी मुक्ति दिलाने के लिए है :)
दुःख और आशा एक दुसरे से जुडी बातें हैं | बुद्ध कहते थे कि इच्छा ही दुःख की जननी है |
"तुम्हारे लिए क्या आवश्यक है / क्या उपयुक्त है / क्या होना चाहिए / क्या नहीं होना चाहिए - यह तुमसे बेहतर परमात्मा जानता है | और वह तुमसे प्रेम करता है, जो उचित होगा वही करेगा | भले ही वह वो न हो जो तुम्हारी आस थी - किन्तु वह वो अवश्य होगा जो तुम्हारे लिए शुभ होगा | "
i asked for many things which i wanted, but i did not get them ..... but the lord always gave me what i really needed |
खिन्नता होती है। ज्ञान की बातें पढ़ते समय तक अच्छी लगती है। मन संभलता है फिर खिन्नता हॉवी हो जाती है। खुद को व्यस्त रखना सबसे अच्छा उपाय है।..पोस्ट बढ़िया लगी।
ReplyDeleteपहेली... 732 लोगों को बुलाया जाय तो कैसा रहेगा?
"....जहां नहीं मिल पाया उसके लिये मैं उदास नहीं होता हूं बल्कि समझता हूं कि यह उनका दुर्भाग्य था, मेरा नहीं।
ReplyDeleteहम सब जानते हैं कि तुम क्या हो, तुम्हारी क्या क्षमता है। यदि कोई तुम्हें नहीं समझ पाता, तो यह उसकी बदकिस्मती है, नुकसान उसका है - तुम्हारा नहीं।'"
एक अपरिहार्य श्रेष्ठ जीवन दर्शन -मैं अचम्भित सा हूँ -यही वाक्य तो मैं कहता रहा हूँ और यह एक गहरे अनुभव जन्य सोच से उभरा है !लायक पिता लायक पुत्र -दोनों अनुकरणीय !
आपके मुन्ने का जीवन दर्शन बहुत पसंद आया, दिल से।
ReplyDeleteशोद्ध यानि शोध?
ReplyDeleteराहुल जी, धन्यवाद। ठीक कर दिया है।
ReplyDeleteसुन्दर बात! बहुत अच्छा लगा आपके मुन्ने की बात पढ़कर!
ReplyDeleteपहेली मे मजा आ गया! सामान्यत: प्रायिकता निकालनी होती है,यहां प्रायिकता ज्ञात है!
ReplyDeleteउस पार्टी मे 23 लोग होना चाहीये, तब समान बर्थडे की प्रायिकता 1/2 होगी।
नुकसान फायदा , किसका है किसका नहीं - यह बात ही नहीं है | यह जीवन है - इसे as it is accept करना है |
ReplyDeleteयदि दो तिनके धारा में हैं, तो वे धारा की ही दिशा में बहेंगे | एक तिनका अपने को धारा में बह जाने दे - तो सुखी रहेगा | दूसरा धारा से लडेगा - दुखी रहेगा | जायेंगे दोनों एक ही दिशा में - सिर्फ उनकी मानसिक अवस्था भिन्न होगी |