इस चिट्ठी में, बांके बिहारी मन्दिर के पुजारी से बातचीत की चर्चा है।
स्वामी हरिदास,राजा अकबर के सामने, तानसेन को संगीत सिखाते हुऐ चित्र विकिपीडिया से |
एक बार वहां पर अकबर बादशाह आये। उन्होंने स्वामी हरिदास जी से पूछा कि वे मंदिर को क्या दे सकते है। हरिदास जी ने कहा,
'यदि आप कुछ देना ही चाहते है तो इस जगह पर पशु वध होना बंद करवा दें।'राजा अकबर दिल्ली पहुंचने के बाद एक तामपत्र पर यह आदेश लिखकर उनके पास भिजवाया। मेरे पूछने पर कि यह तामपत्र कहां है, उसने बताया कि,
'भारत के प्रथम राष्ट्रपति इस ताम पत्र को दिल्ली के संग्रहालय में रखवा दिया है।'मैंने पूछा कि क्या इस समय मथुरा में पशु वध नहीं होता है। इस पर उसका कहना था,
'अब तो कलयुग है और इस कलयुग में, सब कुछ होता है - मथुरा में मांस भी मिलता है।'
मुझे ईसाइयों की यह बात अच्छी लगती है कि उन्होंने बहुत अधिक स्कूल एवं अस्पताल चला रखे है। हिन्दुओं ने मंदिर तो बहुत बनाये पर स्कूल और अस्पताल उतने नहीं बनवाया। गोस्वामी जी ने बताया कि जब से न्याययालय ने रिसीवर रखा है तब से मन्दिर के पास ४२ करोड़ रुपये हो गये हैं। मैनें उन्हें इसाईयों का उदाहरण देते हुए कहा,
'जब मंदिर के पास इतना पैसा है तो स्कूल एवं अस्पताल बात क्यों नहीं चलाते। मैं चेन्नई गया था। वहां मैंने ए.आर. रहमान का शुरू किया संगीत स्कूल देखा। यह बहुत अच्छा है। क्यों नहीं इस पैसे से, स्वामी हरिदास की स्मृति में, मथुरा में संगीत का स्कूल खोलते?'उन्हें, यह बात अच्छी लगी। उन्होंने कहा,
'हमारे पास कुछ जमीन मथुरा में है। उस जगह पर, हरिदास जी की शैली के गायन को बढ़ावा देने के लिए स्कूल स्थापित करेगें।'हो सकता है आने वाले दिनों में आपको मथुरा में संगीत का स्कूल मिले।
अगली बार हम लोग स्कॉन अन्तराष्ट्रीय मंदिर देखने चलेंगे।
मथुरा में एक दिन, पूरे बनारसी जीवन पर भारी - मथुरा यात्रा
रस्किन बॉन्ड।। कन्हैया के मुख में, मक्खन नहीं, ब्रह्माण्ड दिखा।। जहाँपनाह, मूर्ति-स्थल नापाक है - वहां मस्जिद न बनायें। । कृष्ण-जन्मभूमि मन्दिर को महमूद गजनवी ने लूटा।। गाय या भैंस के चमड़े को अन्दर नहीं ले जा सकते।। गाय या भैंस के चमड़े को अन्दर नहीं ले जा सकते।। बांके बिहारी से कुछ न मांग सका।। देना है तो पशु वध बन्द करवा दें।। माई स्वीट लॉर्ड।। चित्रकला से आध्यात्म।। शायद भगवान कृष्ण यहीं होंगे।। महिलायें जमीन पर लोट रही थीं।। हमारे यहां भरतपुर से अधिक पक्षी आते हैं।। भारतीय़ अध्यात्मिकता की नयी शुरुवात - गोवर्धन कथा।।
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आपने बहुत उपयुक्त सुझाव दिया ....देखिये !
ReplyDeleteपहले तो मन्दिर साहित्य, संगीत और संस्कृति को बढ़ावा देते थे, बस वही कार्य पुनः प्रारम्भ करना होगा।
ReplyDeleteएक नये हरिदास और एक नये अकबर की दरकार है!
ReplyDeleteप्रवीण पाण्डेय जी क्षमा कीजियेगा बात इतने तक सीमित रहे तो अति उत्तम अन्यथा दक्षिण भारतीय परम्परा में देवदासियों को बढ़ावा भी सम्मिलित है !
ReplyDeleteनए हरिदास तो ठीक है किन्तु नए अकबर की दरकार ?
ReplyDeleteये क्या कह गये घनश्याम जी ,बोलने से पहले कुछ सोचते क्यों नहीं :)
मेरे अज्ञात मित्रगण,
ReplyDeleteटिप्पणियों के लिये धन्यवाद लेकिन यदि किसी की टिप्पणी पर अज्ञात हो कर मत प्रगट करना उचित नहीं। अपने परिचय के साथ अपनी बात कहें। यही उचित है।
उन्मुक्त जी ,
ReplyDeleteवे दोनों मेरे भी मित्र हैं संभवतः परिचित की आलोचना से उन्हें अधिक दुःख पहुंचे अथवा मैं ही आलोचना में तटस्थ ना रह पाऊं ! आपने टिप्पणियों को प्रकाशित किया अतः आभारी हूं ! आपकी सलाह पर ध्यान दिया जाएगा !
पुनश्च :
ReplyDeleteमुझे लगता है कि कि इस पोस्ट की बाटम लाईन थी -स्वामी हरिदास /तानसेन की स्मृति में एक संगीत कालेज की ट्रस्ट द्वारा स्थापना-जिस प्रस्ताव को बहुत ही उचित रूप से उन्मुक्त जी ने वर्तमान मंदिर प्रबन्ध कोदिया है ...बाकी की बातें तो मुझे गौण लगीं ...इसलिए वे विवेच्य हों यह बहुत अपेक्षित नहीं लगता !
बाकी अनाम टिप्पणी के बजाय खुद सामने आकर कहने का साहस होना चाहिए अब इसमें मित्रता -दुश्मनी का भाव क्यों हो ? माननीय काटजू साहब आज प्रेस काउन्सिल आफ इण्डिया के शीर्ष पद पर होकर पत्रकारिता की ही अच्छी खबर ले रहे हैं तो यह तो उनकी अनुकरणीय स्पष्टवादिता ही कही जायेगी -आशा है अनाम टिप्पणीकार इस बात का संज्ञान लेगें !
शुभ भाव!!
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