Thursday, November 24, 2016

नोटबन्दी हाय हाय - नोटबन्दी हिप हिप हुर्रे

इस चिट्ठी में, कुछ चर्चा नोट बन्दी के बारे में

सोशल मीडिया, अखबार, टीवी जहां देखो वहां बस नोट बन्दी की चर्चा है। लगता है कि समाज के दो धड़े हो गये हैं - एक नोट बन्दी के पक्ष में, तो दूूसरा नोट बन्दी के विपक्ष में। दोनो अपनी अपनी बात कहे जा रहे हैं - मुनासिब बात तो कहीं खो गयी है।

नोट बन्दी का फैसला सोचा समझा होगा पर इसे अमल करने के तरीके पर दिमाग नहीं लगाया गया। जिसके कारण मुश्किलें पैदा हो गयी हैं। यदि इसकी योजना को अमल में लाने की बात, कुछ महीनों से चल रही थी तब, बहुत कुछ पहले से किया जा सकता था जिससे न तो गोपनीयता भंग होती और न ही इतनी मुश्किल, मसलन,

  • छपने वाले नोटों का स्वरूप और रचना इस प्रकार की होनी चाहिये थी कि एटीएम को ठीक करने की जरूरत न होती।   
  • पहले उचित संख्या में ५०० के नोट छाप लिये जाते उसके बाद इस योजना को अमल में लाना था। २००० के नोट अभी छापने की जरूरत ही नहीं थी।
  •  पहले से ऑनलाइन कार्यवाही को बढ़ावा देना था। ऑनलाइन कार्यवाही पर सर्विस टैक्स/ कार्ड फी समाप्त करना था। 
  • ईव्यवसाय तथा विलास की चीजें जैसे विदेशी शराब इत्यादि के लिये रोकड़ देना समाप्त करना।  
  • मिल के मजदूरों, प्रोजेक्ट और मनरेगा में काम करने वाले लोगों को, नेट बैंकिंग से ही पैसा देना शुरू करना।
  • पोस्ट ऑफिस को बैंकिंग के अधिकार दिये जाना।
  • डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंकों को अपने खातेदारों के केवाईसी कागजात पूरे करने के निर्देश देने चाहिये थे और जो न पूरा करते उनके लाइसेन्स या फिर खातेदारों के खाते तब तक निलम्बित कर देना चाहिये थे जब तक कि वे पूरा न करें।
  • योजना को शादी और रबी की बुवाई के बाद लागू करना।
इस तरह के बहुत से अन्य सुझाव हैं जो कि किये जा सकते थे पर वे नहीं किये गये - नतीजा सामने है। मुश्किले तो हैं। नोटबन्दी को बिना पूरी तैयारी के बिना अमल में लाना ही नहीं था पर जब इस पर अमल कर दिया गया है तब क्या किया जाय - क्या नोटबन्दी समाप्त कर दी जाय?

यह सच है कि बहुत सा काला धन विदेश में है, बहुत कुछ बेनामी सम्पत्ति, सोने, हीरों और आभूषणों  में। लेकिन यह भी सच है कि अधिकतर भ्रष्ट नेताओं, सरकारी एवं संवैधानिक मुलाज़िम, टैक्स की चोरी करने वाले व्यवसाइयों एवं पेशेवरों, राजनैतिक पार्टियों का पैसा कागज़ के टुकड़ों में है। इस तरह के अनगिनत लोग हैं। आतंकवाद को बल, बहुत कुछ यही टुकड़े ही दे रहे हैं। यह इस नोटबन्दी से समाप्त हो गये। 


विदेशी धन, या फिर बेनामी सम्पत्ति से लड़ाई तो बाद में लड़ ली जायगी पर यदि आज नोटबन्दी समाप्त हो गयी तब इन भ्रष्ट लोगों के हौसले बुलन्द हो जायेंगे। भ्रष्टाचार, आतंकवाद का समाप्त कर पाना, संभव नहीं होगा। नोटबन्दी को हर हाल में सफल होना चाहिये। 

बहुत से अर्थशास्त्री भविष्ववाणी कर रहे हैं कि नोटबन्दी से, हालात नहीं बदलेंगे और बदतर हो जायेंगे। मेरे विचार से वे सही नहीं हैं। हालात बेहतर ही होंगे - लेकिन यह कहना मुश्किल है कि कितने बेहतर होंगे। फिर भी, यदि इससे आतंकवाद को कुछ भी लगाम लग सकी, भ्रष्टों के हौसले पस्त हुऐ, तब कुछ मुश्किल और सही।  

इस जंग में, हम बहुत कुछ तो नहीं कर सकते। जब स्वयं के पास नकद के लाले हों तब दुसरों की नकद से सहायता कर पाना मुश्किल है। सरकार ही, इस अर्थव्यवस्था की मुश्किलों से निजात दिला सकती है। लेकिन कुछ तो, अपने स्तर पर किया जा सकता है - रोकड़ रहित नया जीवन तो शुरू किया जा सकता है :-)
  • अपने सारे काम नकदी रहित व्यवस्था से करें। सारे भुगतान, रेवले और हवाई जहाज के टिकट नेट बैंकिग से करें। ज्यादा से ज्यादा क्रेडिट/ डेबिट कार्ड का प्रयोग करें। मैं १९७० के दशक से, क्रेडिट कार्ड प्रयोग करता आ रहा हूं।
  • पिछले कुछ सालों से, व्यक्तिगत काम करने वालों के बैंक में खाते खुलवा दिये थे। उनको  वेतन नेट बैंकिंग से देता हूं। उन्हें डेबिट कार्ड से पैसा देना और एटीएम से पैसा निकालना भी सिखाया। जो व्यक्ति बज़ार से समान लाता है, उसे एक डेबिट कार्ड भी दिया जिससे वह बिना नकदी के समान ला सके।
  • स्वयं भी, मोबाइल बैंकिंग सीखी और अपने साथ काम करने वालों को  भी सिखाया।
  • जो भी नेट  या मोबाइल बैंकिग के बारे में पूछता है उसे अवश्य बताता हूं ताकि उसे मुश्किल न हो।
  • मैंने सारे काम करने वालों के लिये राष्ट्रीय पेन्शन योजना भी शुरू करा रखी है और उनका मेडिकल बीमा भी।
इरादा है कि १ जनवरी से रोकड़ को हाथ नहीं लगाउंगा - देखिये कहां तक चल पाता है :-)

बीबीसी का यह वीडियो देखिये कि क्यों इस गांव में कोई परेशानी नहीं हुई। यदि इस की व्यवस्था सारे गावों में हो जाती तब कितना अच्छा होता। चलिये अब कोशिश करते हैं कि ऐसा हो जाय। यहां भी युवाओं ने वृद्धाओं को बिना रोकड़ के काम करना सिखाया।

उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।

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सांकेतिक शब्द
। demonetisation, नोटबन्दी
mobile phone, smartphone, net banking, mobile banking, 
culture, Family, Inspiration, life, Life, Relationship, Etiquette, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन, दर्शन, जी भर कर जियो, तहज़ीब,

4 comments:

  1. बहुत कुछ समझने का मौका मिला

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  2. ये प्रसंशनीय है - इरादा है कि १ जनवरी से रोकड़ को हाथ नहीं लगाउंगा - देखिये कहां तक चल पाता है :-)

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  3. It takes two hands to clap. My LL doesn't accept cheque or online payment for rent. Also the tea shop where i go often doesn't keep swipe machine even though he can afford it . So going 100% cashless is bit difficult for me . Chiller problem ends with cashless system.

    Notes exchange decision has not been taken wisely as you mentioned in the post. Also the introduction of Rs 2000/- note is beyond my understanding . Ban of Rs 1000/- and replacement of Rs 500/- note could have soled the problem .

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  4. Just to update it here that i was able to pay rent for the month of Month of Nov and Dec by online payment to my LL . To my surprise LL agreed for online payment . Only Tea bill i am still paying by cash . Will see how it goes in future .

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