इस चिट्ठी में, साउथ अफ्रीका की यात्रा के दौरान एक घटना का जिक्र है जो यात्रा संस्मरण लिखते समय शर्म के मारे नहीं लिख सका था।
मैं कुछ साल पहले, अपनी पत्नी शुभा के साथ, एक सम्मेलन में, साउथ अफ्रीका गया था। इसका संस्मरण मैंने पहले अपने 'उन्मुक्त' चिट्ठे पर कड़ियों पर लिखा। फिर संपादित कर उसे अपने 'लेख' चिट्ठे पर 'फैंटम, टार्ज़न … यह कौन हैं – साउथ अफ्रीकन सफारी' नाम से प्रकाशित किया।
साउथ अफ्रीका से चलने के एक दिन पहले, हम लोग प्रिटोरिया घूमने के लिये गये। इसका विवरण 'मैं, प्रिटोरिआ से ज्यादा, बम्बई की सड़को पर सुरक्षित महसूस करती हूं' नामक चिट्ठी में किया है। इस दिन, एक घटना हुई थी जिसका बारे में, शर्म के कारण, पहले नहीं कर सका था। कुछ दिन पहले इसकी याद आयी - सोचा, जब जीवन की शाम पर हूं, तब अब शर्म कैसी।
हम लोग टैक्सी में, सम्मेलन में आये कुछ और लोगों के साथ, घूमने गये थे। घूमने के बाद हम लोग एक मॉल में समान खरीदने के लिये गये। यह शुभा की प्रिय जगह थी। वह वहां से लोगों के लिये उपहार लेना चाहती थी। वह खरीदने के लिये समान देख ही रही थी कि मैंने वापस चलने के लिये कहना शुरू दिया। उसने पूछा,
'तुम्हारी तबियत तो खराब नहीं हो गयी।'मेरे मना करने पर, उसने कुछ देर रुकने को कहा। लेकिन जब मैं अड़ गया तब उसे वापस चलना ही पड़ा पर उसे यह अजीब लगा और वह अनमनी सी हो गयी।
हम लोग जब वापस होटेल पहुंचे। तब चुप्पे से, छिपते-छिपते होटेल के कमरे में चला गया। वह कुछ देर बाद कमरे में आयी। उसने पूछा,
'ऐसा भी क्या हो गया था कि तुम वापस चलने की जिद्द करने लगा। कुछ रुक जाते तो मैं कुछ उपहार ही ले लेती। तुम भाग कर कमरे में चले आये।'मैंने कहा, हम लोग उपहार इस होटेल से या फिर कल हवाई अड्डे पर ले लेंगे। लेकिन तुम मेरे पैरों को तो देखो।
शुभा घबरा गयी। उसने तुरन्त मेरे पैरों को देखा कि कहीं चोट तो नही लगी या ज्यादा चलने के कारण, पैर तो नहीं फूल गये। पैरों को देखने के बाद, वह मेरी तरफ मुखातिब हुई। उसके हाव-भाव से ऐसा लग रहा था कि वह कह रही हो कि इतना जीवन बीत जाने के बाद भी - लगता है लबड़धोंधो के लबड़धोंधो ही रहोगे। फिर हम दोनो ठहाका मार कर हसने लगे।
मैं अपने साथ दो जूते ले गया था - काला सम्मेलन में पहनने के लिये और हरा वहां पर घूमने के लिये। मेरे एक पैर में काला जूता था और दूसरे में हरा। मैं सारी जगह अलग-अलग जूते पहन कर घूूमा। इसका पता मुझे मॉल में हुआ। बस, शर्म के मारे, वापस चलने की जिद्द करने लगा था।
इस तरह, बेवकूफी की घटनायें, मेरे जीवन में अक्सर होती रहतीं हैं। मौका मिला तब आगे भी कूछ लिखूंगा :-)
अफ्रीकन सफारी: साउथ अफ्रीका की यात्रा
झाड़ क्या होता है? - अफ्रीकन सफारी पर।। साउथ अफ्रीकन एयर लाइन्स और उसकी परिचायिकायें।। मान लीजिये, बाहर निलते समह, मैं आपका कैश कार्ड छीन लूं।। साउथ अफ्रीका में अपराध - जनसंख्या अधिक और नौकरियां कम।। यह मेरी तरफ से आपको भेंट है।। क्रुगर पार्क की सफाई देख कर, अपने देश की व्हवस्था पर शर्म आती है।। हम दोनो व्यापार कर बहुत पैसा कमा सकते हैं।। फैंटम टार्ज़न ... यह कौन हैं?।। हिन्दुस्तानी, बिल्लियों से क्यों डरते हैं।। आपको तो शर्म नहीं आनी चाहिये।।। लगता है, आप मुझे जेल भिजवाना चाहती हैं।। ऐसा करोगे तो, मैं बात करना छोड़ दूंगी।। भगवान की दुनिया - तभी दिखायी देगी जब उसकी खिड़की साफ हो।। सर, पिछली रात, आपने जूस का पैसा नहीं दिया।। मैंने, आज तक, यहां हवा में कूदती हुई मछलियां नहीं देखी हैं।। आश्चर्य - सर्कस को चलाने वाले, इतने कम लोग।। अश्वेत लोग और गोरी मेम - वोट नहीं दे सकतीं।। मैं, प्रिटोरिआ से ज्यादा, बम्बई की सड़को पर सुरक्षित महसूस करती हूं।। लबड़धोंधो ही रहोगे।।
सांकेतिक शब्द
Pretoria,
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:-)
ReplyDeleteमेरे साथ भी ऐसा हो चुका है. चप्पल दो अलग अलग पहन लिया था. पर वो वक्त रात का था, और एक कार्यक्रम में गया था जो घर के पास ही था, जिसमें लोगों का ध्यान पहुंचता इससे पहले ही मेरा ध्यान चला गया क्योंकि चलने में परेशानी आ रही थी, और मैं बदल आया था :)
ReplyDeleteहा हा,साला मैं तो प्रोफेसर बन गया......
ReplyDeleteअरविंद
अब जब आपने ये बता दिया की जीवन की शाम में शर्म छोड़ देनी चाहिए :-) तो मुझे मेरी बेवकूफी याद आ गई। .. दोनों बच्चों के साथ सुबह ६ बजे स्कूल की बस पकड़नी होती थी ठण्ड के दिन थे दोनों को तैयार करना ,खुद तैयार होना घर में बिजली ,गैस नाल सब देखकर ताला बंद करना। ...और सुबह ५ बजे बिजली कटौती। .. ..उफ़! बहुत भागम-भाग अपना कुछ देखने का वक्त ही नहीं मिलता था। ... सलवार ही उल्टी पहन ली। ....गनीमत थी की काली थी। ..पता तो स्कूल पहुंचकर ही चला। .... :-) जब स्कूल वाली दीदी ने बताया। .... लबड़धोंधो कहते हैं अभी पता चला
ReplyDeleteपुरानी बात है शायद 1995 की... लेकिन मैं बीस साल का था.
ReplyDeleteपिताजी के स्कूटर पर पीछे बैठकर डेंटिस्ट के यहां गया. उसने लंबी कुर्सी पर बिठाकर ट्रीटमेंट करना शुरु कर दिया.
अचानक से उसने मुझसे पूछा, आपने ये कैसी चप्पलें पहनी हैं.
मैंने लेटे-लेटे ही अपने पैरों की तरफ देखा. मैंने एक पैर में हवाई चप्पल और एक पैर में चमड़े की चप्पल पहनी हुई थी.