'रानी पद्मिनी फिल्म - बन्द करो' श्रंखला की पिछली कड़ी में 'रानी पद्मिनी फिल्म - विवाद' के बारे में चर्चा थी। इस कड़ी में चर्चा है कि रानी पद्मिनी वास्तविक पात्र थी या फिर काल्पनिक।
१७५० ईसवी में, सचित्र पद्मावत से - चित्र विकिपीडिया से
रानी पद्मिनी की कथा के बारे में इतिहासकारों में विवाद है। कई इतिहासकार इसे काल्पनिक मानते हैं। इसके दो मुख्य कारण हैं। पहला, कारण अमीर खुसरो का युद्ध का वर्णन और दूसरा, पद्मावत का लगभग २५० साल बाद लिखा जाना।
अलाउद्दीन ने, वित्तौड़ पर चढ़ाई १३०३ ईसवी में की थी। उस लड़ाई में, उसका वर्णन लिखने के लिये, अमीर खुसरो भी गये थे। उन्होंने अपने वर्णन मे, न तो रानी पद्मिनी का वर्णन किया न ही जौहर का। हांलाकि पहले कि कुछ लड़ाइयों में जौहर की बात लिखी है। उनके मुताबिक राजा जीवित पकड़ लिये गये थे पर अलाउद्दीन ने उनको तथा उनके परिवार को छोड़ दिया।
रानी पद्मिनी और उनके जौहर की कथा सबसे पहले १५४० ईसवी में मलिक मोहम्द जायसी ने पद्मावत में की। इसके पहले किसी अन्य लेख में उनका उल्लेख नहीं है। यहां तक कि किसी राजपुताना लेख में भी नही।
राजपुताना में, रानी पद्मिनी का उल्लेख सबसे पहले १५८९ में, हेमरत्न ने 'गोरा बादल पद्मिनी चौपाई' में किया। इसके बाद कई रचनाओं में इसका जिक्र आया। जवाहर लाल नेहरू ने भी 'इिस्कवरी ऑफ इंडिया' में भी रानी पद्मिनी का उल्लेख किया है।
पद्मावत में अलाउद्दीन का फरेब, फिर उसी तरह से, गोरा-बादल का उन्हें छुड़ाना, गोरा-बादल की वीरता, और पद्मिनी के जौहर की बात लिखी है। इस महा काव्य में, ५७ खण्ड हैं। खण्ड 'पद्मावती नागमती खण्ड' की एक चौपाई है,
जौहर भइ सब इस्तरी, पुरुष भए संग्राम,राजपूतो पुरषों में अन्त समय साका और महिलाओं में दुश्मन के हाथ जलील होने से अच्छा, अग्नि पर जल जाने (जौहर) की परंपरा थी। यह उसी तरफ इशारा करती है।
बादशाह गढ़ चूरा, चितउर भा इसलाम।।
अथार्त सारे पुरुष लड़ाई में मारे गये और महिलाओं ने जौहर कर लिया। किला बर्बाद हो गया और चित्तौड़ में मुसलमानों का राज्य हो गया।
पद्मावत, इस घटना के लगभग २५० साल बाद लिखा गया। इसलिये कुछ इतिहासकार इसे सही नहीं मानते। उनके मुताबिक रानी पद्मिनी का कोई प्रमाण नहीं है।
कुछ इतिहासकारों का कहना है कि हमारे यहां लिखने की परम्परा नहीं थी बहुत सी कथायें सुनायी जाती थीं। यह कथा इसी तरह से रही और बाद में जायसी ने इसे लिपिपद्ध किया। उनका यह भी कहना है कि पद्मावत में कुछ बाते बढ़ा-चढ़ा कर लिखीं हैं पर उससे इसकी मूल कथा की सत्यता पर अन्तर नहीं पड़ता।
मेरे विचार से इतिहास व्यक्तिपरक होता है। इसमें निष्पक्षता नहीं होती। यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन इतिहास लिख रहा है। इसलिये आज के दिन यह दावे से कह पाना कि रानी पद्मिनी की कहानी सच है कि नहीं संभव नहीं है।
लेकिन, इस फिल्म पर उठे विवाद के लिये यह प्रसांगिक नहीं है कि रानी पद्मिनी की कथा वास्तविक थी या नहीं, या उन्होंने जौहर किया या नहीं, या गोरा बादल की शौर्य गाथा सच है कि नहीं। क्योंकि यदि रानी पद्मिनी की कहानी काल्पनिक भी हों, तब भी, उत्तर वही रहेंगें।
अगली बार हम लोग चर्चा करेंगे कि यदि रानी पद्मिनी काल्पनिक भी हों तो भी क्या फिल्म में उनके और अलाउद्दीन के बीच रुमानी दृश्य दिखाये जा सकते हैं।
रानी पद्मिनी फिल्म - बन्द करो
रानी पद्मिनी फिल्म - विवाद।। रानी पद्मिनी वास्तविक या काल्पनिक।। रानी पद्मिनी - अलाउद्दीन से रुमानी तौर पर नहीं जुड़ीं।। पद्मावती फिल्म का नाम बदलिये।।
सांकेतिक शब्द
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प्रभावित करता आलेख, श्यामनारायण पाण्डेय कृत जौहर भी इस लिहाज से प्रासंगिक है।
ReplyDeleteकाल्पनिक हो तब भी नहीं . आखिर जन मानस का कोई महत्त्व है कि नहीं . फिर इतिहास हो न हो जनश्रुतियाँ भी उस समय का पक्का लेखा जोखा हो सकतीं हैं .
ReplyDeleteGora badal ki alag se koi katha he ya kewal padmavat me hi unke baare me likha gaya hai?
ReplyDeleteमैं कह नहीं सकता। शायद को इतिहासकार बता पाये।
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