'रानी पद्मिनी फिल्म - बन्द करो' श्रंखला की पिछली कड़ी में चर्चा थी कि यदि रानी पद्मिनी काल्पनिक भी हो तब भी फिल्म में रानी पद्मिनी और अलाउद्दीन के बीच रोमांस नहीं दिखाया जा सकता है क्योंकि किसी भी कथा में वे रुमानी तौर पर नहीं जुड़ी थी। इस कड़ी में चर्चा है कि अलाउद्दीन के सपनों की दौड़ पर लगाम नहीं लगया जा सकता और इस फिल्म पर विवाद करना गलत है
फिल्में मनोरंजन के लिये होती हैं। उन्हें रुचिकर बनाने के लिये, फिल्म बनाने वाले कुछ बदलाव कर देते हैं और कभी कुछ कल्पना से डाल देते हैं। यदि कुछ समय पहले आयी फिल्म महावीर सिंह फोगट, और उनकी बेटी गीता फोगट पर बनी फिल्म 'दंगल' को देखें, तो उसमें भी, उसे मनोरंजक बनाने के लिये बदलाव किये गये। यहां तो फिल्म उस कथा के बारे में है जिसकी सत्यता पर विवाद है।
मैंने पिछली चिट्ठी में स्पष्ट किया कि रानी पद्मिनी, अलाउद्दीन से कभी रुमानी तौर पर नहीं जुड़ीं और इस तरह के दृश्य दिखाये जाते हैं तब सेन्सर बोर्ड को पूरा अधिकार होगा कि वे इसे काट दें या फिर उसे सार्वजनिक प्रदर्शन के लिये तब तक अनुमति न दें जब तक इन्हें हटा न दिया जाय। लेकिन यदि अलाउद्दीन ने चितौड़ पर हमला, रानी पद्मिनी की सुन्दरता से मोहित हो कर, उन्हें प्राप्त करने के लिये, किया था तब यह सच ही होगा कि वह उनके सपने भी देखता होगा। यदि उन सपनो को परदे पर दिखाया जाय तो शायद यह गलत न होगा - लेकिन तभी, जब वह सपने की तरह दिखाया जाय।
मेरे विचार से, इस पूरी घटना की सबसे दुखद बात है - फिल्म सेट पर मार पीट करना, तोड़ा-ताड़ी करना, शर्तें रखना कि पहले उसे राजपूत बिरादरी को दिखाया जाय और उनसे पास होने के बाद ही, इसे दिखाया जाय। यह गलत है।
यह सेंसर बोर्ड का काम है कि वह तय करे कि फिल्म में कौन सा दृश्य दिखाया जाय अथवा नहीं। ऐसा सोचना कि हमारा सेंसर बोर्ड अपना काम नहीं करेगा, गलत है। यदि वह गलती करता है तब उसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। लेकिन यह सोचना कि हमीं ठीक हैं और हम जो कहें वैसा ही होना चाहिये अन्यथा हम कानून को अपने हाथ में ले लेगें - गलत है। यह अराजकता की निशानी है।
लेकिन अक्सर इस तरह के विवाद वह लोग करते हैं जो उस फिल्म को चर्चित करना चाहते हैं ताकि वह चले। मैं नहीं जानता कि क्या सच है। शायद पता भी नहीं चले। फिल्म तो, १ दिसंबर को प्रदर्शित हो रही है। तभी पता चले कि इसमें रुमानी दृश्य हैं अथवा नहीं - तभी इसका आनन्द लिया जायगा।
रानी पद्मिनी फिल्म - बन्द करो
सांकेतिक शब्द
। Rani Padmini, Alauddin Khilji,। Film, Review, Reviews, समीक्षा, film, review,
अब तो इन्तजार खत्म ही है। देखकर बताते हैं। सपने की तकनीक वैसे भी घिसीपिटी है।
ReplyDeleteफ़िल्म 'पद्मावती' में अलाउद्दीन खिलजी और पद्मावती के स्वप्न में भी प्रेम-प्रसंग पाकिस्तान या किसी पाश्चात्य देश में फ़िल्म को हिट बनाने के लिए दिखाए जा सकते हैं, भारत में नहीं. अलाउद्दीन ने पद्मिनी (पद्मावती)को हासिल करने के लिए चित्तौड़ पर आक्रमण किया या नहीं, उसने दर्पण में पद्मिनी (पद्मावती) का अक्स देखा या नहीं, इन बातों को फ़िल्मकार अपनी कहानी में भले ले ले किन्तु अनावश्यक रूप से सपनों के बहाने लाखों-करोड़ों भारतीयों की भावनाओं को ठेस पहुँचाना किसी के लिए उचित नहीं है. 'रणवीर सेना' तो तोड़फोड़ करके अपना नाम देशभक्तों में लिखाना चाहती है. पर हम भी कलात्मक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर सब कुछ तो सहन नहीं कर सकते.
ReplyDeleteAren't movies work of fiction ? 'Lagaan' was released and accepted without any friction. Then why not Rani Padmini ? How suddenly People's feeling are hurt with it ?
ReplyDeleteसुबुही जी, मेरे विचार से, रानी पद्मिनी के बारे में विवाद करना अनुचित है, जैसा कि मैंने इस चिट्ठी में लिखा है। लेकिन इसके लिये तर्क देना गलत है कि लगान फिल्म में कोई विवाद नहीं हुुआ था। यह दोनो फिल्म एकदम भिन्न हैं; इन दोनो की तुलना या समानता अनुचित है। यह बात यदि आप इस श्रंखला की सारी कड़ियां पढ़ेंगी, तो अपने आप सपष्ट हो जायगी।
DeleteI have read both the previous posts of yours related to ‘Padamavati’ film. What i understood is you have made your point that to take any action on this movie should be in hands of censor and that people should not make chaos or create trouble on the movie sets. My comment was for people who think that they are representing the view point of all the people in country on the name of patriotism . That is where i also gave example of 'Lagaan' on which movie was made and it also altered the facts . Both movies are historic movies and that is the common thing between both . Not the subject of course. Thanks .
Deleteमेरी पत्नी शुभा की अन्य आपत्ति इस फिल्म के बारे में है। उसका कहना है कथाओं में रानी पद्मावती को बहुत सुन्दर कहा गया है उसका किरदार भी उस कलाकारा को करना चाहिये था जो सुन्दर हो और दीपिका पादुकोन सुन्दर नहीं हैं, मेकअप बाद तो अधिकतर लोग सुन्दर लगते हैं।
ReplyDeleteमेरे पूछने पर क्या आजकल कोई हिरोइन है जो इस किरदार के लायक है। उसके अनुसार इस समय फिल्म इन्डस्ट्री कोई भी सुन्दर कलाकारा नहींं है पर पहली की कलाकाराओं में बीना राय या मधुबाला सुन्दर थी जो इस किरदार पर बेहतरीन तरीके से निभा सकती थीं।
I read in news that Madam Smiriti Irani has come forward in support of the movie's director and has assured that there won't be any disturbance during its release ... So no need to worry now . :-)
ReplyDeleteमैंने इस श्रंखला की पहली कड़ी में लिखा था कि,
Delete'अक्सर इस तरह के विवादों का वास्तविक मकसद, वह नहीं होता जो कि दिखायी पड़ता है पर कुछ और ही होता है। इस तरह के विवाद पर भावनाओं में बहना साधारण बात है और यह विवाद इन भावनाओं को किसी और जगह फायदा मिलने के लिये शुरू किये जाते हैं या फिल्म को मुफ्त में प्रचार मिल जाय, तो कोई नुकसान नहीं। इस विवाद में, मुझे तो कुछ ऐसा ही लगता है :-)'
क्या मालुम यही सही हो।
कुछ दिन गुब्बार निकलता है बाद में सब ठंडा, वैसे भी ठण्ड तो आ ही रही धीरे -धीरे
ReplyDeleteबनाने वाले बनाते हैं, देखने वाले देखते हैं, हंगामा करने वाले हंगामा करते हैं लेकिन सबकुछ कुछ दिन सामान्य होता है और फिर एक नयी कहानी
टीवी सीरियल ही देखिये बस घरेलु लड़ाई झगडे के अलावा होता है क्या इनमें, लेकिन टी आर पी देखिए
It is changed! Now it's name is 'PADMAVAT'. Seems like some one from the management of this film has read this post of yours.
ReplyDelete:-)
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