इस चिट्ठी में, 'लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी' प्रार्थना पर उठे विवाद पर चर्चा है।
यहां इस प्रार्थना को सुनें। यह कितनी मधुर और मन को शान्त करने वाली है। यह प्रार्थना सिद्धार्थ नगर उत्तर प्रदेश के स्कूल में गायी जा रही है।
'सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा', शायद सबसे प्यारा, सबसे अच्छा गीत है। इसे प्रसिद्ध शायर मुहम्मद इक़बाल (९ नवम्बर १८७७– २१ अप्रैल १९३८) ने, १९०५ में, लिखा था। वे भारत के प्रसिद्ध दार्शनिक कवि और नेता एवं आधुनिक काल में, उर्दू और फ़ारसी के सर्वश्रेष्ठ गीतकार थे।
उन्होंने बहुत से गीत लिखे हैं उनमें से एक 'बच्चे की दुआ' भी है। इसे १९०२ में लिखा गया था।
मुहम्मद इक़बाल का यह चित्र, विकिपीडिया के सौजन्य से |
यह प्रार्थना पाकिस्तान के सारे स्कूलों में गायी जाती थी। लेकिन अब वहां के अंग्रेजी स्कूलों में बन्द कर दी गयी है।
अपने देश के बहुत से स्कूलों में, यह प्रार्थना के रूप में अब भी गायी जाती है।
देहरादून का दून स्कूल, अपने देश का प्रसिद्ध स्कूल है। इसमें सुबह प्रार्थना के लिये एक पुस्तक है जिसमें कई प्रर्थनाऐं हैं। रोज उनमें से एक गायी जाती है। इनमें से यह तीसरी है और बीच से चार पंक्तियां (पांचवीं से आठवीं) निकाल कर, छोटा कर दिया गया है। इसका नंबर लगभग दस दिन में एक बार आता है।
इस प्रार्थना गीत के बोल कुछ इस तरह से हैं,
लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी,
ज़िंदगी शमा की सूरत हो ख़ुदाया मेरी।
दूर दुनिया का मेरे दम से अंधेरा हो जाए।
हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाए।
हो मेरे दम से यूं ही मेरे वतन की ज़ीनत,
जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत।
ज़िंदगी हो मेरी परवाने की सूरत या-रब,
इल्म की शमा से हो मुझ को मोहब्बत या-रब।
हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत करना,
दर्द-मंदों से ज़ईफ़ों से मोहब्बत करना।
मेरे अल्लाह! बुराई से बचाना मुझ को,
नेक जो राह हो उस रह पे चलाना मुझ को।
हिन्दी में इसका भावार्थ कुछ इस तरह से है,
हे प्रभु, मेरी मन्नत, मेरे होंठों पर प्रार्थना बन कर आती है,मेरा जीवन एक मोमबत्ती की तरह हो।
मेरी शक्ति से दुनिया का अंधेरा दूर हो जाय,
मेरे चमकने से हर जगह उजाला हो जाय।
मेरे देश की सुंदरता ऐसी है,
जैसे फूल से बाग की शोभा होती है।
हे प्रभु, मेरा जीवन उस पतंगे की तरह हो,
जो ज्ञान के प्रकाश पर मर मिटे।
मेरा काम गरीबों के लिए हो,
कमजोर और वृद्धों से सहानुभुति का हो।
प्रभु, मुझे गलत काम से बचाओ,
मुझे धर्म के मार्ग पर चलाओ।
बीबीसी की खबर है कि २१ दिसंबर, २०२२ को, बरेली ज़िले के, कमला नेहरू उच्च प्राथमिक विद्यालय में, विद्यार्थियों के द्वारा, इस गीत के गाने पर, प्रधानाचार्या और एक शिक्षक पर शिकायत दर्ज की गयी। शिकायत के अनुसार,
इन्होंने हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से सुबह बच्चों को मुस्लिम विधि से प्रार्थना करवाई और ये सब इस्लाम धर्म की ओर प्रेरित करने के उद्देश्य से किया गया है।
इस पर उनके विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया गया और उन्हें निलंबित कर दिया गया है।
प्रधानाचार्या का कहना है कि वे अपनी बेटी की शादी के सिलसिले में, १७ दिसंबर से २२ दिसंबर तक छुट्टी पर थीं। उन्हें इसके बारे में कुछ नहीं मालुम।
शिक्षक का कहना है कि उर्दू की किताब में यह दुआ लिखी है और इसे उर्दू विषय के क्लास में पढ़ाया जा रहा था।
मेरे विचार से, यदि यह प्रार्थना के रूप में रोज गायी जाती हो तो भी इसमें कोई गलती नहीं है। यह सब धर्मों की प्रार्थना है। कोई भी नवयुवक, इससे अधिक या कम, क्या चाह सकता है। मुझे तो यह बृहदारण्यक उपनिषद के पवमान मन्त्र की तरह लगती है, जो कहता है,
असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय।
हे प्रभु, मुझे असत्य से, सत्य की ओर ले चलो।
मुझे अन्धकार से, प्रकाश की ओर ले चलो।
मुझे मृत्यु से, अमरता की ओर ले चलो।
किसी के खिलाफ इस प्रर्थना पर - मुकदमा दायर करना, निलंबन करना - गलत है।
- माननीय मुख्यमंत्री योगी जी से प्रार्थना है कि इस निलंबन को वापस करवायें और जिन लोगों के कहने पर यह कार्यवाही की गयी है उनके खिलाफ दंगा फैलाने के लिये कार्यवाही करें।
- विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल के पदाधिकारी से कहना है कि वे अपने कार्यकर्ताओं को ऐसे कार्य करने से मना करें।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय से प्रार्थना है कि वे स्वतः संज्ञान में लेकर, इस निलंबन को स्थगित कर, पूरी कार्यवाही समाप्त करें।
इस चिट्ठी को लिखने में, दो युवा वकीलों - इलाहाबाद के काशिफ जै़दी और इस्लामाबाद के हुसैन रज़ा - ने सहायता की। इसके लिये उनका शुक्रिया।
सांकेतिक शब्द
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