कुछ समय पहले, मैंने 'बाईबिल, खगोलशास्त्र, और विज्ञान कहानियां' नामक एक श्रंखला कई कड़ियों में लिखी थी। इसकी इस कड़ी में, आर्थर सी. क्लार्क के लेख 'Hazards of Prophecy: The Failure of Imagination' की चर्चा के साथ, 'विज्ञान कहानियों के मूलभूत सिद्धान्तों ' की भी चर्चा है। कलार्क ने अपने लेख में, भविष्य के बारे में चार निम्न नियम प्रतिपादित किये हैं। उसका तीसरा नियम है
Any sufficiently advanced technology is indistinguishable from magic.
किसी भी पर्याप्त विकसित तकनीक और जादू में फर्क कर पाना नामुमकिन है।
उक्त कड़ी में यह भी बताया था कि कलार्क के द्वारा लिखी गयी विज्ञान कहानियों में सबसे अच्छी 'द सिटी एण्ड द स्टारस्' है। इस कहानी में, उन्होंने अपने तीसरे नियम का बेहतरीन प्रयोग किया है।
'उन्मुक्त जी, आप तो अजीब हैं, शीर्षक कुछ अन्दर कुछ और बात करने लगते हैं। अच्छा बेवकूफ बनाते हैं।'
यह उपन्यास, आज से ढाई अरब साल बाद के, समय का है। इस समय तक, सारे महासागर सूख चुके हैं, पेड़ और जंगल खत्म हो गये हैं। बस डायस्पर नाम का शहर बचा है और जहां तक इसके लोगों को पता है, यह पृथ्वी पर बचा हुआ एकमात्र शहर है।
यह शहर एक गुंबज से घिरा हुआ है, किसी की याद में न किसी ने शहर में प्रवेश किया है और न ही छोड़ा है। इसका कारण, आक्रमणकारियों के एक किस्से को बताया जाता है, जिसमें आक्रमणकारियों ने, कुछ लोगों को पृथ्वी पर वापस ला कर, इस शर्त पर छोड़ दिया था कि वे वे उसी शहर में रहेंगे और उसके बाहर नहीं जायेंगे।
शहर एक केंद्रीय कंप्यूटर द्वारा चलाया जाता है। शहर में सब कुछ मशीनों द्वारा किया जाता है जो खुद की मरम्मत कर सकती हैं।
शहर की आबादी एक ही रहती है। लोग अपने जीवन को समाप्त करने या एक हजार साल जीने का विकल्प चुन सकते हैं। उसके बाद, उनका जीवन कंप्यूटर द्वारा समाप्त हो जाता है। वे मरते नहीं हैं लेकिन कंप्यूटर में रहते हैं। जब एक जीवन समाप्त होता है तो पूरी तरह से विकसित एक नया व्यक्ति अपनी सभी पिछली यादों के साथ कंप्यूटर से बाहर आता है।
परन्तु, इस शहर में कभी ऐसे व्यक्ति का भी जन्म होता है जिसका पहले कभी जीवन नहीं था। वह पहली बार पैदा होता है। एल्विन इसी तरह का था। उसकी कोई यादें नहीं थीं। इसलिए वह शहर से बाहर जाने की सोचता है।
एल्विन इस उपन्यास का नायक है। वह शहर से बाहर जाता है और फिर क्या होता है - यही इस उपन्यास की कहानी है।
एल्विन के बाहर जाने के में, खेड्रोन नाम का एक विदूषक उसकी मदद करता है। उसकी मदद से पता चलता है कि केंद्रीय कंप्यूटर ही शहर की जन संख्या को इस तरह से नियंत्रित करता है कि इसमें सब तरह के लोग रहें -
कुछ अच्छे तो कुछ खराब, कुछ गंभीर तो कुछ मज़ाकिया, कुछ परोपकारी तो कुछ चोर उच्चके, कुछ व्यवस्था के समर्थक तो कुछ विरोधी।
लेकिन ऐसा क्यों है? क्या सब अच्छे लोग नहीं हो सकते?
उपन्यास में, इसका कारण भी बताया गया है कि संतुलित समाज के लिये, सब तरह के लोगों की जरूरत होती है, सबका योगदान होता। यदि मतलबी नहीं होंगे तो परोपकारी का महत्व कैसे पता चलेगा।
'उन्मुक्त जी, मुद्दे पर आइये, नहीं तो मैं जा रहा हूं।'
कहने का अर्थ है कि एक ही प्रकार का समाज, जहां सब एक ही विचारधारा के हों - ठीक नहीं है। लम्बे समय में, यह हानिकारक ही होता है। सभी लोग सरकार की तारीफ करने में लग जायें तो उनकी कमी कौन बतायेगा। यह तानाशाही को जन्म देता है।
लाल कृष्ण अदवानी के अनुसार, इमरजेन्सी के समय, जब अखबारों से,
'When asked to bend, they crawled.’
'झुकने के लिये कहा गया तो वे रेंगने लगे।
शायद केवल दो अखबार 'द स्टेसमैन' और 'ईंडियन एक्सप्रेस' ने ही सरकार के खिलाफ आवाज उठायी। इमरजेन्सी को हराने में, इन दो अखबारों का योगदान, हमेशा याद किया जायगा।
मेरे विचार में, एनडीटीवी की सारी खबरें और इनके कई विचार सही नहीं हैं। लेकिन बहुत से सही होते हैं। वे सरकार के खिलाफ आवाज उठाते हैं। मैं इसलिये या तो बीबीसी हिन्दी या फिर एनडीटीवी सुनता हूं। इससे पता चलता है कि सरकार कहां गलती कर रही है। बाकी चैनल से पता ही नहीं चलता।
जो खबरें और विचार मुझे सही लगते हैं, उन्हें ठीक करने के तरीके के साथ, सरकार को बताता भी हूं। इस सरकार की अच्छी बात यह है कि वह सुनती है। बहुत कुछ ठीक भी करती है। यह औरों की तरह नहीं है।
एनडीटीवी का बिकना और इसके प्रमुख लोगों का इस्तीफा देना दुखद है। यह अच्छे लक्षण नहीं हैं।
टीवी चैनल भारतीय जनता पार्टी (भाजापा) के साथ नहीं हैं। वे सत्ता के साथ हैं और अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। कल किसी दूसरी पार्टी की सरकार आयेगी तब यह सब, उसके साथ हो जायेंगे।
यदि पुनः इमेरजेन्सी सी बात उठेगी तब कोई उसे विरोध करने वाला नहीं होगा। सरकार को, हम सब, जो आज खुशी मना रहें हैं इस बात को समझना चाहिये। समय रहते चेत जाना चाहिये।
कबीर ने सही कहा है,
निंदक नियरे राखिए,
आंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना,
निर्मल करे सुभाय।
जब ऐपल्ल कंप्यूटर गिरने लगा तब उसकी मदद माइक्रोसॉफ्ट ने ही की थी। सनद रहे -
समाज के लिये स्वस्थ स्पर्धा, सवाल उठाना हमेशा अच्छा होता है।
About this post in Hindi-Roman and English
। book, book, books, Books, books, book review, book review, book review, Hindi, kitaab, pustak, Review, Reviews, science fiction, किताबखाना, किताबखाना, किताबनामा, किताबमाला, किताब कोना, किताबी कोना, किताबी दुनिया, किताबें, किताबें, पुस्तक, पुस्तक चर्चा, पुस्तक चर्चा, पुस्तकमाला, पुस्तक समीक्षा, समीक्षा,
#हिन्दी_ब्लॉगिंग #HindiBlogging
#BookReview #ScienceFiction #ArthurClarke #TheCityAndTheStars
#NDTV #PranavRoy #RavishKumar
No comments:
Post a Comment
आपके विचारों का स्वागत है।