२०१७ में, उन पर निकला स्टैम्प |
श्रीलाल शुक्ल
इकतीस दिसंबर १९२५ में जन्मे, श्रीलाल शुक्ल हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार थे। १९४७ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास की। १९४९ में, राज्य सिविल सेवा से नौकरी शुरू की। १९८३ में, भारतीय प्रशासनिक सेवा से निवृत्त हुए। उनकी मृत्यु २८ अक्तूबर, २०११ को हुई।
वे अपने व्यंग लेखन के लिये जाने जाते थे। उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास 'राग दरबारी' है। यह व्यंगात्मक शैली में लिखा गया, पूर्वांचल उत्तर प्रदेश के एक कस्बे की कहानी के द्वारा, स्वतंत्रता के बाद, ग्रमीण जीवन की मूल्यहीनता का चित्रण है। इसके लिये उन्हें १९६९ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया। इसका अंग्रजी सहित १५ भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है और इस पर दूरदर्शन ने टीवी सीरियाल भी बनाया है। यह बेहतरीन उपन्यास है, जो पढ़ने योग्य है।
सम्मान
इसके बाद, शुक्ल जी को अनेकों सम्मानों से सम्मानित किया गया, जिसमें प्रमुख हैं - हिन्दी साहित्य परिषद, मध्य प्रदेश सम्मान (१९७८), साहित्य भूषण (१९८८), गोयाल साहित्य पुरस्कार (१९९१), लोहिया सम्मान (१९९४), शरद जोशी सम्मान (१९९६), मैथिलीशरण गुप्त सम्मान (१९९७), व्यास सम्मान (१९९९), यश भारती (२००५), पद्मभूषण (२००८), ज्ञानपीठ सम्मान (२०११ में, २००९ के लिये)।
कई साल पहले, 'राग दरबारी" पढ़ी थी। उसके बाद उनकी लिखी किसी अन्य रचना को पढने का अवसर नहीं मिला। पिछले साल, उनका उपन्यास 'मकान' पढ़ने को मिला। इसके लिये उन्हें मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य परिषद का सम्मान भी मिला है। लेकिन कुछ कम समझ में आया। पूरा पढ़ने के लिये मशक्कत करनी पड़ी। मेरे पास, उनकी लिखी, कुछ अन्य पुस्तकें भी थी, लेकिन इस अनुभव के बाद, मैंने उन्हें अलग रख दिया।
आदमी का जहर
लेकिन, कुछ दिन पहले, उनका एक और उपन्यास 'आदमी का जहर' पढ़ना शुरू किया। यह शायद इसलिये कि इसके छः संस्करण निकल चुके हैं। यह जासूसी उपन्यास है।
कहते हैं कि सुन्दर पत्नियों के पति को जल्दी ही दिल का दौरा पड़ता है। पत्नी की खूबसूरती, उन्हें शक्की और ईर्षालू बना देती है। रूबी रूपवती है। उसके पति हरिश्चन्द के साथ कुछ ऐसा ही होता है।
हरिश्चन्द को शक हो जाता है कि रूबी प्रेम प्रसंग अजीत सिंह के साथ है। एक दिन, वह दोनों को एक होटेल के कमरे में पाता है। बस उसका शक यकीन में बदल जाता है और वह अजीत सिंह को गोली मार देता है। लेकिन उसकी मृत्यु गोली से नहीं, पर जहर खाने से होती है।
अजीत सिंह को जहर देने के लिये, बहुतों के पास कारण है पर वह है कौन व्यक्ति। इस उपन्यास की कहानी, इस बात पर घूमती है कि उसे किसने जहर दिया और क्यों।
इसकी कहानी तेजी से चलती है और अन्त तक बांधे रखती है। यह केवल मनोरंजन ही नहीं पर आज के समाज का आईना भी है, जिसमें सब जायज़ है। यह बेहतरीन जासूसी उपन्यास है। यदि आपने इसे नहीं पढ़ा है तब अवश्य पढ़ें।
इस उपन्यास में, वह सब है जो किसी भी फिल्म में होता है। मुझे आश्चर्य है कि इस पर अभी तक कोई फिल्म क्यों नहीं बनी।
एक प्रश्न श्रीलाल शुक्ल के बारे में
शुक्ल जी का जन्म लखनऊ जनपद के अतरौली गांव में हुआ था। वे १९४५ में लखनऊ से इलाहाबाद विश्विद्यालय में पढ़ने आये। १९४७ में स्नातक की डिग्री ली। आगे नहीं पढ़ पाये क्योंकि उनके पिता की १९४६ में मृत्य हो गयी थी। वे वापस लखनऊ चले गये।
क्या किसी को मालुम है कि इलाहाबाद में, वे किस हॉस्टल में रहते थे? यदि मालुम हो तो टिप्पणी कर बतायें।
एक मित्र के द्वारा भेजी गयी इस लिंक से पता चलता है कि वे पीसी बैनर्जी हॉस्टल में रहते थे।
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