इस चिट्ठी में, रज्जू भैया की कुछ और यादें और उनके जीवन दर्शन की चर्चा है।
१९९८ में, इलाहाबाद के प्रवास के दौरान, मेरी लिखी पहली पुस्तक पढ़ते हुऐ |
रज्जू भैया सार्वजनिक वक्ता नहीं थे। आम तौर पर वे कक्षा में व्याख्यान देते थे या आरएसएस के स्वयंसेवकों के सामने बोलते थे, हालांकि कभी-कभी जनता उनकी बैठकों में शामिल होती थी। उनके भाषण एकदम सुसंगत, स्पष्ट, और सटीक रहते थे। उनके भाषण के तरीके ने, उन्हें हिंदी के बेहतरीन वक्ताओं में से एक थे। लेकिन वे अंग्रेजी में नहीं बोलते थे।
१९८२ में, हिन्दू परिषद के कार्यक्रम में भाग लेने के लिये अमेरिका गए, वहां बहुत से भारतीय और विदेशी ऐसे भी थे जिन्हें हिन्दी नहीं आती थी इसलिये वे अंग्रेजी में बोले। लेकिन जब उन्होंने अपना भाषण समाप्त किया, तो दर्शकों की सर्वसम्मत राय थी कि वह भाषण उनके द्वारा सुने गये भाषणों में सबसे अच्छा था।
डा. मुरली मनोहर जोशी परिवार सहित |
“मैं तुम्हें सौ साल के जीने के लिए आशीर्वाद नहीं देता। लेकिन तुम्हारे लिये उस जीवन की कामना करता हूूं कि तुम्हारा हर पल दूसरों की सेवा में लगे; देश हित के लिए हो।”
जोशी ने ऐसा ही जीवन जिया।
रज्जू भैया का दर्शन क्या था? किस बात ने उनका जीवन नियंत्रित किया। इसका पता उनके प्रिय गीत से लगता है।
हमारे बचपन में टेप रिकॉर्डर एक नवीनता थी। हमारे यहां यह १९६० के दशक में आया। शाम को, हम लोग अपने पसंदीदा गाने/कविता रिकॉर्ड कर रहे थे। उसी समय रज्जू भैया भी आ गये। हमने उनसे भी कुछ रिकॉर्ड करने का अनुरोध किया। उन्होंने यह गीत सुनाया,
तन समर्पित, मन समर्पित
और यह जीवन समर्पित
चाहता हूं देश की मिट्टी,
तुझे कुछ और भी दूं।
यह गीत, उनके मन के सबसे करीब था; यही उनका दर्शन था; इसी के आधार पर उन्होंने ने अपना जीवन जिया; और वे यही चाहते थे कि हम सब इसी का अनुसरण करें। हमने इसकी पूरी कोशिश भी की - कितनी सफलता मिली शायद समय तय करेगा।
इस सदी के शुरू में, इलाहाबाद के घर में, रज्जू भैया के साथ - मेरा बेटा अभी, मैं और पत्नी नीता |
About this post in Hindi-Roman and English
विराट व्यक्तित्व
ReplyDeleteसनातन धर्म के पुरोधा
ReplyDeleteआपका परिवार प्रयागराज की धरोहर है
ReplyDelete