हिन्दी को बढ़ावा मिले, इसलिये, मैं कोशिश करता हूं हिन्दी की पत्रिकायें और अखबार खरीदूं और पढ़ूं। इस कोशिश में यह भी शामिल होता कि यदि किसी पुस्तक का अनुवाद हिन्दी में भी हो तो उसे हिन्दी में खरीद कर पढूं। इसी कोशिश में मैंने इन्द्रा नूयी की आत्मकथा 'एक पूरा जीवन: घर, काम और हमारा कल' पढ़ी।
यह पुस्तक मूल रूप से अंग्रेजी में है और इसका अनुवाद नीलम भट्ट और सुबोध मिश्र ने किया है। अभी तक मैंने जितने भी अनुवाद पढ़ें हैं उनमें से यह सबसे अच्छी है। बाकी सब को पढ़ने से लगता था कि वे अनुवाद हैं पर यह नहीं।
इसका मुख्य कारण, बहुत से अंग्रेजी के शब्दों को देवनागरी में लिखा जाना है। यदि उनका हिन्दी में अर्थ लिख जाता तो उसे समझना नामुमकिन होता। इसकी भाषा में प्रवाह है। ऐसा नहीं लगता है कि यह अनुवादित पुस्तक है।
इन्द्रा नूयी फार्च्यून ५० कंपनी को चलाने वाली, दुनिया की पहली अश्वेत और अप्रवासी महिला हैं। उन्होंने पेप्सिको में, बारह साल तक सीईओ के रूप में काम करते हु़ऐ, कॉर्पोरेट दुनिया का चलाने की नयी परिभाषा गढ़ी। इसमें उद्देश्य के साथ प्रदर्शन {Performance with Purpose(PoP)} पर चलने की परिपाटी चलाई। उद्देश्य में मानवता को पोषित (नरिश, nourish) करने के साथ, पर्यावरण की भरपाई (रिप्लेनिश, replenish) करना, और अपनी कंपनी के लोगों को सहेजना (चेरिश, cherishकरना) है। उनके अनुसार,
"यह कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व या पत्रकारों वाला काम नहीं था, जिसमें हमें पैसे दान करने थे। पीडब्यूपी पेप्सिको के पैसे कमाने के तरीके को बदल देने और हमारे बिज़नेस की कामयाबी को इन उद्देश्यों - पोषण, भरपाई, और क़द्र करने से, जोड़ देने वाला था।“
वे कहती हैं कि,
"कंपनियों को कमर्शियल के साथ-साथ नैतिक दृष्टि से भी सही होना चाहिए। … कंपनी का सामाजिक प्रभाव उसके पूरे बिज़नेस प्लान में दर्ज होना चाहिए ... जो कॉमर्स के लिए अच्छा है और जो समाज के लिए अच्छा है, दोनो को साथ-साथ चलना चाहिए।"
अनुकरणीय विचार।
वे महिलाओं को काम करने की सलाह देती हैं। वे कहती हैं,
"महिलाओं को एक बहुत सीधी-सादी वजह से कमाना चाहिए। हमारे पास अपनी आज़ादी के लिए पावर ऑफ पर्स यानी अपनी जेब में ताकत ,यानी पैसे होने चाहिए। महिलाओ को काम करने वाले लोगों के रूप में पूरी तरह स्वीकार किया जाना इंसान की तरक्की का सूचक है। यह उन्हें पुरुषों के दबदबे वाली दुनिया की दया पर रहने से आज़ादी दिलाता है।"
इस बात पर उनके ससुर ने भी साथ दिया। उन्होंने कहा,
"इंद्रा अपनी नौकरी मत छोङना। तुमने इतनी पढाई की है, तुम्हें उसका इस्तेमाल करना चाहिए। हम हर संभव तरीके से तुम्हारा साथ देंगें।”
इस बात पर मुझे मुझे उनके लम्बे बाल वाली युवती के परिवार के बातें याद आयीं - वे अब भी पुरानी दुनिया में रह रहे हैं।
इन्द्रा नूयी के कई विचार अच्छे लगे। वे बताती हैं कि दस्तख़त करने से पहले वे सारी फाइलें पूरी पढ़ती थीं। उनका कहना है कि
"यह बुनियादी ज़िम्मेदारी की बात है. एक ऐसा व्यक्ति मत बनिये, जिसके हस्ताक्षर बस औपचारिकता हों।"
वे ठीक ही कहती हैं कि,
"हमें ऐसे परिवारों की ज्यादा क़दर करनी चाहिए जिनके बच्चे हैं और जो उन्हे पढे-लिखे और प्रोडक्टिव सिटिजन बनाने के लिए उनका सही पालन-पोषण कर रहे हैं।"
वे काम करने वाली महिलाओं की मुश्किलों का जिक्र करते हु़ऐ एक घटना का जिक्र करती हैं जिस दिन वे पप्सिको की प्रेसीडेन्ट बनी, इस बात को घर में बताने के लिये आतुर थीं। लेकिन घर घुसते समय उनकी मां ने कहा,
"खबर इंतजार कर सकती है। अभी जाकर दूध ले आओ।"
वे कार पर वापस गयीं और दूध लेकर आयीं। उन्होंने मां से कहा,
"मैं पेप्सिको की प्रेसिडेंट बन गई हूँ, और आपको एक पल रुककर मेरी खबर सुनने कि फुर्सत नही थी। आप बस चाहती थीं कि मैं जाकर दूध ले आऊं।”
उनकी मां ने जीवन की सच्चाई बतायी,
"मेरी बात सुनो, तुम पेप्सिको में प्रेसिडेंट या जो कुछ भी रहो। लेकिन जब तुम घर आती हो तो तुम एक पत्नी, मां और बेटी हो। तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता। … इसलिए अपना यह ताज गैराज में ही छोड़कर आया करो।"
शायद यह ठीक नहीं था। लेकिन ऐसा होता है। मुझे अपने जीवन की एक घटना याद आयी।
एक बार कस्बे में अन्तरराष्ट्रीय कॉन्फ़्रेंस हो रहीं थी। शुभ्रा उसी में व्यस्त थी, आने में देर रात हो गयी थी। वह खुश थी, उसके पेपर को बहुत सहारा गया था। लेकिन मुन्ना छोटा था, परेशान था और मैंने भी उसकी बात सुनने के बजाय, उसे झिड़क दिया, मुन्ने से बात करने को बोला। यह गलत था, नहीं करना चाहिये पर शायद हम ऐसे ही हैं। बदलने में समय लगेगा।
यह बेहतरीन आत्म कथा है, पढ़ने योग्य है। इस पुस्तक को सबको पढ़ना चहिये।
- हर लड़की, हर महिला को - इतनी मुश्किलों के बाद भी, वे ऊंचाइयों को छू सकती हैं।
- हर लड़के, हर पुरष को - कामकाजी महिलाओं को कितनी मुश्किल होती है। इसे समझने की जरूरत है।
काश यह पुस्तक मैंने अपने जीवन की शाम में नहीं, पर जीवन की सुबह पढ़ी होती। लेकिन कभी देर नहीं होती - अब भी समय है।
#BookReview #Autobiography #IndiraNooyi #MyLifeInFull #EkPooraJeevan #एकपूराजीवन #इन्द्रानूयी
जानकर अच्छा लगा कि आपको किताब पसंद आई। सस्नेह, नीलम भट्ट
ReplyDelete