इस चिट्ठी में 'इरविन श्रोडिंगर एंड द क्वांटम रिवोल्यूशन' पुस्तक की समीक्षा है।
जॉन आर. ग्रिबिन एक ब्रिटिश खगोलशास्त्री हैं और विज्ञान विषयों के लोकप्रिय लेखक हैं। उन्होंने न केवल कठिन विज्ञान अवधारणाओं को आसान भाषा में समझाने वाली कई पुस्तकें लिखी हैं, बल्कि कई वैज्ञानिकों की जीवनियां भी लिखी हैं। उनकी पुस्तकें पढ़ने लायक हैं।
इन्होंने इरविन श्रोडिंगर की जीवनी पर 'इरविन श्रोडिंगर एंड द क्वांटम रिवोल्यूशन' लिखी है। कुछ समय पहले, मुझे इसे पढने का मौका मिला। यह बेहतरीन पुस्तक है और पढ़ने योग्य है।
इरविन श्रोडिंगर और पॉल डिराक को, १९३३ में, क्वांटम भौतिकी में, उनके योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार से नवाज़ा गया था। यह वह विषय है जिसके बारे में नील्स बोह्र ने एक बार कहा, कि जो लोग इस विषय को पढ़ने के बाद गहराई से चौंकते नहीं, वे इसे समझते नहीं।
नील्स बोह्र, वर्नर हाइज़ेनबर्ग, मैक्स बोर्न ने भी क्वांटम भौतिकि पर काम किया है। इस विषय पर इन लोगों के द्वारा किये काम को 'कोपेनहेगन व्याख्या' (Copenhagen interpretation) कहा गया है। यह विषय कितना जठिल या अजीब है इसके बारे में, श्रोडिंगर ने, आइंस्टाइन के साथ, एक प्रयोग पर विचार किया, जिसका उद्देश्य, देखने की भूमिका के संदर्भ में, इसकी व्याख्या में विरोधाभासों और जटिलताओं को उजागर करना था।
यह वैचारिक प्रयोग यह दर्शाता था कि एक कण कई अवस्थाओं में मौजूद रह सकता है, जब तक कि उसे देखा न जाए। यह काल्पनिक प्रयोग, एक डब्बे में बन्द बिल्ली को, ध्यान में रख कर किया गया था। लेकिन जब तक, इस बिल्ली को देखा न जाय तब तक इसे जीवित और मृत दोनों माना जा सकता था। इसलिये इस प्रयोग को 'श्रोडिंगरस् कैट' के नाम से जाना गया।
इस प्रयोग की कल्पना इस तरह से की गय़ी कि एक बिल्ली, एक डिब्बे के अन्दर बन्द है। इस डिब्बे में, बिल्ली के साथ एक जहर की शीशी, हथौड़ा, और एक गाइगर कॉउन्टर है। यदि गाइगर कॉउन्टर से, रेडियोधर्मिता का पता चलता है, यानि कि परमाणु का क्षय हो गया है। तब हथौड़ा चलने लगता है और जहर की शीशी टूट जाती है और बिल्ली जहर के कारण मर जाती है। लेकिन जब तक डिब्बे को खोल कर न देखा जाय तब तक यह पता नहीं चल सकता कि बिल्ली जीवित है या मरी। यानि कि बन्द डिब्बे में, बिल्ली जीवित या मरी दोनो होती है।
इरविन श्रोडिंगर का मेरे प्रति कुछ विशेष आकर्षण है, क्योंकि जब मेघनाथ साहा ने १९३८ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय का भौतिकी विभाग छोड़ा, तब १९४० में, श्रोडिंगर को, इसका हैड बनाने की पेशकश की गई थी। लेकिन, शायद वह नहीं आ सके क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था, या न आने का निर्णय लिया क्योंकि वह उस समय वे डबलिन में स्थापित हो गये थे। लेकिन इसके बारे में, पुस्तक में कोई जिक्र नहीं है।
श्रोडिंगर हिंदू वेदांत दर्शन में विश्वास रखते थे और मानते थे कि आत्मा शरीर में रहती है और मृत्यु के समय निकल जाती है। पुस्तक में, सत्येन्द्र नाथ बोस और आइंस्टीन के बारे में एक और दिलचस्प घटना है।
१९२४ में, बोस ने एक पेपर एक नई सांख्यिकीय विधि के साथ, फोटॉन की गिनती कर, प्लैंक के ब्लैक बॉडी रेडिएशन नियम पर पहुंचने के लिए लिखा था। लेकिन इस पेपर को एक अंग्रेजी पत्रिका ने छापने से मना कर दिय। उन्होंने उस पेपर आइंस्टीन को यह कहते हुऐ भेजा यदि उन्हें ठीक लगे तो उसे प्रकाशन के लिए भेजें। आइंस्टीन इस पेपर इतने उत्साहित हुए कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से इसका जर्मन भाषा में अनुवाद किया और इसे प्रकाशन के लिए भेजा और यह उसी साल, एक प्रतिष्ठित जर्मन पत्रिका में विधिवत प्रकाशित हुआ।
यह पुस्तक न केवल श्रोडिंगर के रंगीन जीवन (उनकी शैक्षणिक गतिविधि, उनकी सेक्सुअल गतिविधियों के साथ बढ़ती थी) बल्कि क्वांटम भौतिकी के इतिहास के बारे में बताती है। हालांकि, पुस्तक का आनंद लेने के लिए, किसी को क्वांटम भौतिकी और उसमें शामिल वैज्ञानिकों के बारे में बुनियादी ज्ञान होना चाहिए। लेकिन यदि कोई विज्ञान में रुचि रखता है तो उसे यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए।
#BookReview #Biography #ErwinSchrodinger #JohnGribbin #ErwinSchrodingerAndTheQuantumRevolution
No comments:
Post a Comment
आपके विचारों का स्वागत है।