ममता बहन के ससुर और मेरे बाबा विश्वविद्यालय के मित्रों में से थे, लेकिन फिर भी मैं उनके पति को ज्ञानू जीजाजी ही कहता था। वे और उनके पति डॉक्टर थे और इलाहाबाद मेडिकल कॉलेज (मेडिकल कॉलेज) के संकाय में थे। ममता बहन मेडिकल कॉलेज की प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त हुईं। सेवानिवृत्ति के बाद भी, सरकार के अनुरोध पर, उत्तराधिकारी के चयन तक, प्रधानाचार्य का कार्यभार संभाला। इसे उन्होंने बखूबी से निभाया।
मेरी बहन विज्ञान पढ़ना चाहती थी। लेकिन १९५० के दशक में, इलाहाबाद में लड़कियों के लिये विज्ञान पढ़ने के लिये केवल, क्रॉस्थवेट गर्ल्स कॉलेज (कॉलेज) था। १९५७ में, मेरी बहन ने, वहां ९वीं क्लास में दाखिला लिया। ममता बहन की मां चाहती थीं कि वे डॉक्टर बने और जब उन्हें पता चला कि मेरी बहन ने साइंस पढ़ने के लिए कॉलेज में दाखिला लिया है, तो उन्होंने ममता बहन का दाखिला वहीं ७वीं क्लास में करवा दिया।
उन दिनों, भाईलाल रिक्शेवाला हुआ करता था। वह मेरी बहन को, कॉलेज ले जाता और फिर वापस लाता था। ममता बहन का घर, कॉलेज के रास्ते में था। जाते समय, मेरी बहन उन्हें ले लेती और फिर लौटते समय छोड़ देती थी।
१९६१ में, मेरी बहन ने, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कदम रखा और १९६७ तक, गणित और भौतिकी में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। ममता बहन ने भी १९६१ में विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और १९६५ में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उनका चयन पीएमटी (प्री मेडिकल टेस्ट) में हो गया। उन्होंने इलाहाबाद मेडिकल कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की और बाद में वहीं अध्यापिका बन गयी़ं और अन्त में प्रधानाचार्य।
१९८० में मेरी मां को दिल का दौरा पड़ा और उन्हें इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज से जुड़े अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनसे मेरी सबसे पहली स्मृति, उसी समय की है। वे एक पैथोलॉजिस्ट थीं और हम उन्हें अक्सर टेस्ट के लिए परेशान करते थे।
ममता बहन के पास, रिक्शे से कॉलेज आने-जाने, कॉलेज और विश्वविद्यालय के समय, मेरी बहन के साथ बिताए समय के, कई कहानी-किस्से थे। वे उन्हें चटखारे लेकर सुनाया करती थीं।
ममता बहन, एक दिलदार व्यक्तित्व की स्वामी थीं, दबंग थीं। वे आशावादी थी और जीवन को जीना जानती थीं। वे मददगार स्वभाव की थीं और हर कोई उन्हें इसी बात के लिए याद करता है। उनसे मिलना, यानि कि ऊर्जा का संचार होना - हमेशा सुखद अनुभव रहता था।
अगस्त १९८४ में, मेरी मां का निधन हो गया। मेरे पिता, जिन्हें मैंने कभी अपनी माँ से बात करते नहीं देखा था, बहुत दुखी थे। वे निराशा में डूब गए। वे केवल, मां के बारे में बात करते थे। इसके अलावा, उन्हें कुछ नहीं सूझता था। उस मुश्किल समय में, ममता बहन, ज्ञानू जीजाजी के साथ, हमारे घर आकर, मेरे पिता से बात करती और उस निराशा से बाहर निकालने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया।
मैं भी जब कभी निराश होता था तब अक्सर उनसे बात करता था ताकि वापस पटरी पर आ सकूं। यह बात सिर्फ़ मेरे साथ ही नहीं, बल्कि हर किसी के साथ, जो भी उनके संपर्क में आया।
वे कुछ समय से बीमार थी, और जब २०२३ में, कॉलेज में, सुभद्रा कुमारी चौहान एवं अपनी बहन के नाम पर एक पुरस्कार शुरू किया, वे नहीं आ सकी। वे १३ मार्च २०२५ को, हम सब को छोड़ कर वहां चली गईं, जहां से कोई वापस नहीं आता। लेकिन वे जहां भी होंगी, सभी को खुश और प्रसन्न रखेंगी। लगता है स्वर्ग में भी कुछ लोग निराश रहने लगे। इसी लिये भगवान ने उन्हें अपने पास बुला लिया।
अलविदा, ममता बहन, आपका परिवार, आपके मित्रगण, और आपके संपर्क में आने वाले सभी लोग, आपको हमेशा याद करेंगे।
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Beautifully written article Mamaji. Every time I learn something new about our family. Mamta Mausi played a part in my marriage too. She knew my father in law and spoke highly of him.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर दिल को छूने वाला प्रसंग।मेरा ममता बहन जी को सादर नमन और आपको इतना सुन्दर लिखने के लिए प्रणाम
ReplyDeleteRest in Peace
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