Friday, October 05, 2007

ओपेन सोर्स की पाती - बिटिया के नाम

पापा,उत्तरी पश्चिमी कॅनाडा से दक्षिणी मध्य अमेरिका की यात्रा तो सुखद थी पर दोनो जगह के मौसम में अन्तर है। इसलिये ठीक तरह से व्यवस्थित होने में कुछ समय लगेगा।

यहां मुझे एक बढ़िया लैपटाप मिला है । मैने इसमें लिनक्स फेडोरा और विन्डोज एस.पी. दोनो डाले हैं पर मैं काम फिडोरा में ही करती हूं। विंडोज तो इसलिए डाला है कि यदि कभी जरूरत पड़े तो इसका प्रयोग कर सकूं। मुझे मालुम है कि आपको यह पढ़ कर अच्छा लगेगा,
इसलिये मैंने यह ई-मेल में लिखा है।

मेरा समय ज्यादातर काम में लग जाता है और मुझे अपना काम पसन्द है लेकिन मैं उपन्यास के लिये समय निकालना चाहती हूं। मैं सोने जाने से पहले हमेशा थोड़ा पढ़ती हूं - कुछ साहित्य से सम्बन्धित।

मैंने अभी दास्तोवेस्की (Dostoevsky) की क्राइम एण्ड पनिशमेंट (Crime and Punishment) पढ़ी है। मैं सोचती हूं
कि यह रोचक उपन्यास है। क्या आपने इसे पढ़ा है? यदि नहीं, तो पढ़ें - यह आपको पसन्द आयेगी। उसमें एक जगह लेखक, अपराध और अपराधी का वर्णन करता है और मेरे विचार से यह पुस्तक का सबसे अच्छा भाग है।

मां ने आपको, मेरी जर्मन सहेली के बारे में बताया होगा। वह मेरे साथ कॅनाडा में थी और अब वापस म्यूनिख चली गयी है। वह भारत में है और मैंने उसे आपका फोन और पता दे दिया है। शायद, उसे कभी आपकी जरूरत पड़े।

आप और मम्मी अच्छे होंगे। अपना ख्याल रखियेगा।
आपकी परी


बिटिया रानी
मां तुमसे फोन पर बात कर लेती हैं पर मुझे तो तुम्हारे ई-मेल का इंतजार रहता है। मैं तुम्हें बता नहीं सकता कि तुम्हारा यह ई-मेल पा कर मुझे कितना अच्छा लगा ।

मेरे विचार से ओपेन सोर्स सॉफटवेयर का भविष्य उज्जवल है। तुम लिनेक्स पर ही काम करो। इसके बारे में विस्तार से तुम ओपेन सोर्स सॉफ्टवेर और लिनेक्स की कहानी पर पढ़ सकती हो।

मालुम नहीं, मुन्ने का मैक प्रेम कब भंग होगा। हो सके तो उसे मेरी चिट्ठी लिनेक्स बनाम वीस्टा एवं मैकिन्टॉश पढ़ने को कहो। वह मेरी बात नहीं सुनता है तुम्हारी बात तो सुनता है।
देखो, कि वह, कम से कम हिन्दी का समर्थन अपने लैपटॉप पर स्थापित कर ले।

फेडोरा-७ एक बेहतरीन वितरण है। मेरे डेस्कटॉप पर फिडोरा-७ ही है - इसमें सूरत भी है और खूबसूरत भी। यदि कोई समस्या आये तो मुझे लिखो।
लिनेक्स में कई डेस्कटॉप रहते हैं पर इसमें दो, KDE और Gnome डेस्कटॉप मुख्य हैं। यह दोनो, लिनेक्स के हर वितरण के साथ आते हैं। KDE प्रोग्राम user friendly है पर ज्यादा RAM लेता है। Gnome ज्यादा स्थायी है। मैं Gnome पर ही काम करता हूं। Gnome डेस्कटॉपका प्रयोग करते समय भी, तुम KDE का कोई प्रोग्राम प्रयोग कर सकती हो। इसलिये कोई मुश्किल नहीं है - तुम जिस पर चाहो उस पर काम करो।

मेरे विचार से तुम्हे उन प्रोग्रामों का प्रयोग करना चाहिए जो सब आपरेटिंग सिस्टम में चलते हैं ताकि यदि किसी कारण तुम्हे कोई दूसरे आपरेटिंग सिस्टम में काम करना पड़े तो कोई परेशानी न हो । इस तरह के प्रोग्रामों में फायरफॉक्स, ऑपरा (वेब ब्राउसर), थण्डरबर्ड ( ई-मेल के लिये), सनबर्ड ( ई मैनेजर तुम्हें जन्म-दिन की याद दिला सकता है), ऑडेसिटी (ऑडियो फाइलों को संपादित वा सुनने के लिये),
एमप्लेयर (ऑडियो और विडियो फाइलों को सुनने वा देखने के लिये), जिम्प (चित्रों को संपादित करने के लिये), और ओपेन ओफिस डाट काम का आफिस सूट प्रमुख प्रोग्राम है। यह सभी आपरेटिंग सिस्टम में चलते हैं और वेहतरीन प्रोग्राम है। तुम्हे कोई कठिनाई नही होगी। विंडोज़ पर काम करते समय इन्हीं प्रोग्राम पर काम करो।

यह सारे प्रोग्राम न केवल मुफ्त हैं पर मुक्त भी। इनको प्रयोग करने के लिये न कोई पैसा देना पड़ता है न ही कोई चोरी करनी पड़ती है :-)

सनबर्ड, थंडरबर्ड में शामिल किया जा सकता है। मैं इसका इसी तरह से प्रयोग करता हूं।

थंडरबर्ड में तुम फीड स्थापित कर सकती हो। ऎसे भी फीड स्थापित करने के लिये वेब ब्राउसर में कोई प्रोग्राम स्थापित करने के लिये प्रयोग कर सकती हो जैसे गूगल रीडर, माई याहू या फिर न्यूज़गेटर में। यह फायरफॉक्स या ऑपरा में भी स्थापित की जा सकती है।

मैने पिछले साल ऑपरा का प्रयोग किया था पर लिनेक्स पर, इसमें हिन्दी दिखने में कुछ मुश्किल होती थी। इसलिये मैंने इसका प्रयोग करना छोड़ दिया था। तुम प्रयोग कर बताओ कि क्या यह ठीक हो गया है।
मुझे ऑडिसिटी प्रोग्राम अच्छा लगता है। ऐसा क्यों है यह तुम मेरी चिट्ठी ऑडियो फाइल सम्पादक और अरुणा जी का दूसरा सवाल पर पढ़ सकती हो। मैं इसी पर अपना पॉडकास्ट बकबक रिकॉर्ड करता हूं।

मैं पहले अपना पॉडकास्ट ogg फॉरमैट पर रखता था पर आजकल mp3 पर रख रहां हूं। ऐसा मैं क्यों करता था या क्यों कर रहा हूं - यह तुम मेरी चिट्ठी, शून्य, जीरो, और बूरबाकी, और हमें आसान लगने वाली बात, अक्सर किसी और को मुश्किल लगती है, पर पढ़ सकती हो। यह तो तुम्हें मालुम है कि मैंने पॉडकास्ट क्यों करना शुरू किया

एम.पी.-३ मालिकाना फॉरमेट है इसलिए लिनेक्स के प्रोग्राम इसका समर्थन नहीं करते हैं। इसके लिए एमप्लेयर का प्रयोग करो। यदि तुम आडियो फाइल संपादित करना चाहती हो तो ऑडेसिटी का प्रयोग करो पर ऑडेसिटी में एम. पी.-३ फॉरमैट की फाइल में काम करने के लिए इसका प्लग-इन डाउनलोड करना पड़ेगा।


ओपेन ओफिस के डिफॉल्ट फॉरमैट, ओपेन स्टैण्डर्ड पर है और इसी फॉरमेट में काम करना सबसे अच्छा है। एम. एस. वर्ड इस फॉरमैट की फाइलों को अभी खोल नहीं सकता है पर सन माइक्रोसिस्टम ने इसके लिये बेहतरीन प्लगइन निकाला है तुम इसे विंडोज में एम. एस. वर्ड के लिए डाउनलोड कर लो।

ऎसे विन्डोज में भी Open Office.org का प्रयोग करना चाहिये। यह एम. एस. वर्ड के डिफॉल्ट फॉरमैट की फाइलों को खोल सकता है और उसी में सुरक्षित कर सकता है पर कभी-कभी फॉरमैटिंग में गड़बड़ हो जाती है। मैं अपने सारे लेख और प्रस्तुतिकरण (presentation) इसी पर तैयार करता हूं और यह मुझे किसी तरह से किसी और प्रोग्राम पर तैयार किये गये लेख या प्रस्तुतिकरण से कम नहीं लगते।

ज़ाइन (Xine) वीडियो, सी.डी. और डी.वी.डी. के लिये एक बहुत अच्छा प्रोग्राम है, यद्यपि यह केवल लिनेक्स पर काम करता है। एमप्लेयर दोनो पर काम करता है और अच्छा प्रोग्राम है। यह भी सारी फाईलों को प्ले कर सकता है।

लिनेक्स, हिन्दी
पर काम करने के लिये बहुत अच्छा है। इसमें हिन्दी के लिये समर्थन, विन्डोज़ से बेहतर है। लिनेक्स में हिन्दी टाइप करने के लिये SCIM स्थापित करो। इसमें फोनेटिक की बोर्ड भी है। तुम अंग्रेजी टाइपिंग जानती हो - बहुत आसानी से हिन्दी टाइप कर लोगी।

तुम्हारी हिन्दी अच्छी है और आगे से हिन्दी में ही ई-मेल लिखो। इससे तुम्हारी हिन्दी अच्छी बनी रहेगी। घर में हिन्दी में बात करो ताकि तुम्हारे बच्चों और हमारी आने वाली पीढ़ी का हिन्दी प्रेम बना रहे और वे अपनी सभ्यता, संस्कृति से जुड़े रहें।

यदि तुम्हारे पास समय हो तो हिन्दी में एक चिट्ठा लिखना शुरू करो। हालांकि यह समय लेता है। तुम्हारी मां, मुन्ने के बापू के नाम से चिट्टा लिखती है पर मुझे उसमें उससे चिट्ठी पोस्ट करवाने के लिये नानी याद आ जाती है - तुम्हारी मां के पीछे लगना पड़ता है :-)

तुम्हारी मां को भी, काम की जगह एक डेस्कटाप और एक लैपटाप मिला है पर वह विंडोज पर है। मैने उसमे वह सारे प्रोग्राम डाले हैं जो कि लिनेक्स पर चलते हैं ताकि उसे मुश्किल न हो। तुम तो जानती हो कि घर के सारे कम्प्यूटर लिनेक्स पर हैं।

आशा है कि तुमने मेरे तीनो चिट्ठे उन्मुक्त, छुटपुट, लेख और अपनी मां का चिट्ठा मुन्ने के बापू, मेरा पॉडकास्ट बकबक की फीड अपने लैपटॉप पर स्थापित ली होगी। फीड के बारे में कुछ जानना है तो तुम मेरी चिट्ठी, आर.एस.एस. क्या बला है, और यहां देखो। ऐसे लिनेक्स में फीड पढ़ने का सबसे अच्छा प्रोग्राम एक्रेगेटर है। यह
KDE डेस्कटॉप का प्रोग्राम है।

मुझे अच्छा लगा कि तुम्हें पुस्तकों से अब भी प्यार है। पुस्तकें हमारी सबसे अच्छी मित्र हैं।

मैंने दास्तोवेस्की (Dostoevsky) की क्राइम एण्ड पनिशमेंट (Crime and Punishment) नहीं पढ़ी है अब इसे पढूंगा, उसके बाद हम इस पर चर्चा करेंगे। हांलाकि इसमें कुछ मुश्किल है। अपराध क्या है और अपराधी कौन है - यह दर्शन से जुड़ा विषय है। मुझे दर्शन शास्त्र से घबड़ाहट लगती है।

तुम्हारी जर्मन सहेली का स्वागत है। उससे कहो कि वह हमारे साथ कुछ दिन रहे। तुम्हारी कमी दूर हो जायगी। अब यह मत कहना कि मेरे पास समय नहीं है।

हो सकता है कि मैं, काम के सिलसिले से, जर्मनी जाऊं। इसके बारे में, मैं तुम्हे बाद में ईमेल करूंगा।
पापा

(यह ई-मेल और मेरा जवाब अंग्रेजी में था। इसमें कुछ ओपेन सोर्स के लोकप्रिय प्रोग्रामों के बारे में चर्चा है जिसका उपयोग और लोग कर सकते हैं। इसलिये मैंने हिन्दी में अनुवाद कर यहां इस चिट्ठी में डाला है।)

15 comments:

  1. व्यक्तिगत जानकारी के साथ महत्वपूर्ण जानकारी आपकी लेखन कला को रोचक बनाता है। हिन्दी के लिये औरों की तरह आपका दर्द अच्छा लगा।

    ReplyDelete
  2. एक अत्यंत शानदार, उदाहरणीय व अनुकरणीय पत्र.

    अंग्रेज़ी पत्र को आपने कहीं पर इंटरनेट में प्रकाशित नहीं किया हो तो कृपया प्रकाशित करें या फिर मुझे टेकट्रबल में प्रकाशनार्थ भेजें.

    ReplyDelete
  3. शुक्रिया, इस महत्वपूर्ण पत्र-व्यवहार को हमारे साथ साझा करने के लिए। यह तो नेहरु-इंदिरा के बीच के पत्र-व्यवहार की तरह शिक्षाप्रद है। विषयवस्तु विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। बच्चों को हिन्दी, हिन्दी कंप्यूटिंग के औजार और ओपन सोर्स प्रोग्रामों का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करने का यह अंदाज वाकई निराला है।

    आपके और रवि जी के लेखों को पढ़ते हुए कितनी बार लिनेक्स ऑपरेटिंग सिस्टम को अपनाने की तरफ मन हुआ है, लेकिन अभी तक यथास्थिति चल रही है, बिल्लू के उत्पादों के साथ। शायद अगली बार लैपटाप लेते समय सबकुछ लिनेक्स पर शुरू हो सकेगा।

    लेकिन दोस्तोवेस्की की वह चर्चित किताब आज ही लाइब्रेरी में से खोज कर निकालता हूं। बहुत दिनों से सोचा हुआ था इसे पढ़ने के लिए।

    ReplyDelete
  4. उन्मुक्त जी,

    आपने इस पत्र को हम सबके साथ बाँटा, बहुत आभार. कनाडा में हम भी हैं. बिटिया को कभी कोई आवश्यकता हो तो बस एक ईमेल की दूरी ही माने अपने घर से.

    ReplyDelete
  5. Anonymous8:46 pm

    सर, आप मेरी साइट पर टहल चुके हैं. मैं तो खैर आपका भक्त हूं ही, सिर्फ आपका ही नहीं पूरे परिवार का. मैंने मुन्ने की मां जी को एक पत्र भी भेजा था, मगर पता नहीं उन्होंने उसे देखा भी या नहीं क्योंकि साइट की पोस्टिंग उसके आगे खिसकी ही नहीं. सच बताऊं तो इन ब्लाग्स मे लिखे की बदौलत आप लोगों को जितना समझ सका हूं, उतना ही आप लोगों के प्रति मन में आदर भाव बढ़ता है. आप लोगों की बातों में आधुनिकता और परंपरा का अद्भुत संगम है. अगर लिखने को बैठ जाऊं तो यह कभी खत्म नहीं होगा. फिलहाल इतना ही. अपने बारे में थोड़ा सा बता दूं मेरे दो ब्लाग हैं इंडियन बाइस्कोप और खिड़कियां. मैं इन दिनों बैंगलोर में एक हिन्दी पोर्टल में एडीटर हूं. कृपया इस टिप्पणी को पढ़कर चुप्पी न साध जाइएगा, जवाब भी भेजिएगा.
    मुझे इस पते पर भी मेल कर सकते हैं.
    dinesh.s@greynium.com
    दिनेश श्रीनेत

    ReplyDelete
  6. आपिन आफिस तो मैं भी प्रयोग करता हू लेकिन विन्डोज में.
    आपका ब्लाग एक अरसे पढ़ता रहा हूं। एकदम दिल से लिखते हैं आप।

    ReplyDelete
  7. बहुत सुन्दर। पत्राचार की विषय वस्तु तो आपके प्रिय क्षेत्र से संबद्ध है ही परंतु प्रस्तुतिकरण ने उसे और भी रुचिकर बना दिया है।

    ReplyDelete
  8. Anonymous8:37 pm

    वाह उन्मुक्त जी ...एक बार फिर बेहतरीन प्रस्तुती .....दिनेश जी सही कहा .."आप लोगों की बातों में आधुनिकता और परंपरा का अद्भुत संगम है."....बहुत ही बढिया लिखा आपने ....आज कल आप हमारे चिट्ठे पर दर्शन नही दे रहे है ..कौनो नाराजगी है क्या ??

    ReplyDelete
  9. बहुत ही रोचक और जानकारी पूर्ण लेख। धन्यवाद इसे हम सब से बांटने के लिए।

    ReplyDelete
  10. आज बहुत दिनों बाद चिट्ठे पढ़े, आपकी ये प्रविष्टि भी बहुत पसन्द आयी।

    ReplyDelete
  11. Anonymous12:40 pm

    आपका ब्लोग बहुत ही अच्छा लगा| मैं फिर से आऊंगा और कुछ कहानियाँ या कविताएं पड़ लूँगा अगर आपने लिखी हो तो| मेरी हिंदी इतनी दुरुस्त नहीं लेकिन मुंशी प्रेमचंद का निर्मला उपन्द्यास मैंने स्कूल में पड़ा था, आज भी मेरे comp में मैंने ये उपन्यास रखा हुआ है और इसको बार बार पड़ता हूँ| हिंदी भाषा के लिए प्रेम जाग जाता है, लिखने का बड़ा मन करता है हिंदी में लेकिन क्या करूं, स्कूल में ज़्यादा ध्यान नहीं दिया था मैंने हिंदी को -- काश कि दिया होता| क्या आपको हिंदी कि online dictionary के बारे में कुछ जानकारी है? अगर हो तो मुझे ज़रूर बताए [arora.kush@gmail.com]| आपका आभारी रहूँगा| कुश, बेंगलूर से|

    ReplyDelete
  12. Anonymous10:00 am

    बहुत ही रोचक और जानकारी पूर्ण लेख। धन्यवाद इसे हम सब से बांटने के लिए। ravinder grover faridabad india

    ReplyDelete
  13. मज़ा आ गया उन्मुक्त जी आप का ब्लॉग पढ़ कर|
    मैं एक शोध का छात्र हूँ| आपके ब्लॉग से बहुत सारी जानकारी हासिल की|
    बहुत बढ़िया
    चिंटू

    ReplyDelete
  14. उन्मुक्त जी , धन्यवाद इस चिट्ठी को साझा करने के लिए। पहली बार ही टिप्पणी लिख रहा हूं। समय की कमी। आप अलबत्ता हमारे यहां आते रहे हैं। क्या करूं, अक्सर तकनीकी समस्याओं से जूझता रहता हूं। आपको ताज्जुब होगा कि मैं अपना ब्लाग तक नहीं देख पाता। ब्लागस्पाट की कोई साईट नहीं खुलती ।सबको बता चुका हूं। पीसी फार्मेट कराया तो शब्दों के सफर का बेशकीमती डेटाबेस ही उड़ गया ।
    बहरहाल , काफी चिंतनशील हैं आप। अच्छा लगता है पढ़ना। अब ये जो मेरा सफर रास्ते में ही मुझे दगा दे गया है तो उसका लाभ ब्लागों का सफर करने में ले रहा हूं।

    ReplyDelete
  15. आपका प्रोत्साहन रंग ला रहा है, मैं फायरफाक्स और ओपन आफिस तो प्रयोग करता ही था, आज मैने थंडरबर्ड भी इन्सटाल कर लिया, अगली बारी लिनक्स डेस्कटाप की है।

    अच्छी जानकारियां बांटने के लिये धन्यवाद।

    ReplyDelete

आपके विचारों का स्वागत है।