टाइम पत्रिक का शताब्दी अंक |
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मैंने पिछली बार बताया था कि बट्रेंड रसेल (Bertrand Russell) ने ऍपीमेनेडीज़ या लाएरस् विरोधाभास को नयी तरह से रखा। उन्होंने कहा,
'एक गांव में केवल एक ही नाई था। उसका कहना था कि वह उन लोगों की दाढ़ी बनाता है जो स्वयं अपनी दाढ़ी नहीं बनाते हैं।'सवाल यह था कि
'नाई की दाढ़ी को कौन बनाता है?'रसेल और व्हाइटहैड (Whitehad) के मुताबिक उन्होंने इस विराधाभास का हल, प्रिंसिपिया मैथमैटिका (Principia Mathematica) (१९१३) में निकाल लिया था। उनका हल, कुछ इस तरह से समझा जा सकता है कि नाई महिला है। इस दशा में तो उसे दाढ़ी बनाने की आवश्यकता नहीं है।
इस हल में वे पुरूषों के स्तर से ऊपर निकल कर व्यक्तियों के स्तर में चले जाते हैं जिसमें पुरूष और महिलायें दोनों रह सकती है। लेकिन वे भूल गये कि व्यक्तियों के स्तर में अलग तरह का विरोधाभास है। जिस पर उन्होंने विचार नहीं किया।
२०वीं शताब्दी के समाप्त होते समय, टाइम पत्रिका ने एक विशेष अंक निकाला था। इसमें उन्होंने बीसवीं शताब्दी के सौ महानतम लोगों के बारे में लिखा था। इन सौ लोगों में एक ऑस्ट्रियन गणितज्ञ कोर्ट गर्डल भी थे। उन्हें आज तक का सबसे महानतम तर्क शास्त्री माना जाता है।
गर्डल ने १९३१ में एक पेपर जर्मन भाषा में लिखा। इसके शीर्षिक का अंग्रेजी में अनुवाद है,
'On formally Undecidable Proposition of Principia Mathematica and Related Systems.इसमें उन्होंने सिद्व किया,
'Proof of arithmetic consistency is not possible―every mathematical system is incomplete'.गर्डल ने हिलर्ब्ट के द्वारा १९०० और १९२८ की आईसीएम में रखे गये प्रश्न का जवाब ढूंढ लिया। लेकिन यह वह जवाब नहीं था जो डेविड हिल्बर्ट चाहते थे। वे तो चाहते थे कि गणितीय तर्क का ऐसा संसार हो, जहां सारे कथन सही अथवा गलत सिद्घ किये जा सकें। गर्डल ने इसका उल्टा ही सिद्ध कर दिया। इससे हिल्बर्ट को परेशान हुई। लेकिन वे कुछ कर न सके - गर्डल के शोद्ध पत्र में आजतक कोई गलती नहीं निकाली जा सकी है। वे मन मनोस कर रह गये।
आप किसी भी मूलभूत सिद्वान्तों को लेकर चलें, उनमें कुछ इस तरह के कथन अवश्य निकल आयेगें जो न कि सही साबित किये जा सकते है न गलत। सुसंगत गणित सम्भव नहीं है ... प्रत्येक व्यवस्था अपूर्ण है।
अगली बार हम लोग गर्डल और उसके अपूर्णता सिद्धान्त के बारे में लिखी कुछ रोचक पुस्तकों के बारे में चर्चा करेंगे।
कुछ समय पहले बीबीसी ने डेंजरस् नॉलेज (Dangerous Knowledge) नामक श्रृंखला प्रसारित की थी। यह श्रृंखला चार विलक्षण प्रतिभा के व्यक्ति, जिसमें तीन गणितज्ञ - जॉर्ज कैंटर (Georg Cantor), कोर्ट गर्डल (Kurt Gödel) और ऐलन ट्यूरिंग (Alan Turing) - और एक भौतिक शास्त्री लुडविंग बॉल्टज़मैन (Ludwig Boltzmann) पर थी। यह बेहतरीन श्रृंखला है और यदि इसे आपने नहीं देखा है तो यूट्यूब में देख सकते हैं। हांलाकि इस श्रंखला में, इनकी जीवनी के बारे में कुछ सूचनायें सही नहीं हैं। इसमें गर्डल के जीवन के शुरू का भाग यहां देखिये।
तू डाल डाल, मैं पात पात
सांकेतिक शब्द
। Bertrand Russell, Epimenides' or liar's paradox, Principia Mathematica, Russell's or Barber's paradox, David Hilbert, Kurt Gödel, Incompleteness theorems,
। cyber crime, cyber space, Information Technology, Intellectual Property Rights, information technology, Internet, Internet, Open source software, software, software, technology, technology, Technology, technology, technology, Web, आईटी, अन्तर्जाल, इंटरनेट, इंटरनेट, ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर, टेक्नॉलोजी, टैक्नोलोजी, तकनीक, तकनीक, तकनीक, सूचना प्रद्योगिकी, सॉफ्टवेयर, सॉफ्टवेर,
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बहुत खूब.
ReplyDeleteफिर एक रोचक दृष्टांत -दरअसल अंतिम सत्य का तो पता लग ही नहीं सकता शायद !सापेक्षता ने सबको दबोच रखा है!
ReplyDeleteअगर यह सब हिंदी प्रिंट में आ पाता...कितना अच्छा होता..साधारण भारतीय की पहुँच नेट तक कहाँ है ..
ReplyDeleteलवली जी, काश मेरी इतनी जान पहचान होती कि अपने लेख हिन्दी प्रिंट में छपवा सकता। यही कारण है कि मैंने चिट्ठा लिखना शुरू किया। इसमें कोई भी जान पहचान की जरूरत नहीं है।
ReplyDeleteलेकिन मेरे सारे लेखों में कोई भी कॉपीराईट नहीं है। हर को कुछ भी छापने का अधिकार है। क्या मालुम कोई हिन्दी प्रिन्ट वाला आपकी तरह सोचता हो और वह छाप दे :-)
सही विचार.
ReplyDeleteसही उत्तर है । यह तो दिमाग में धँसा ही नहीं ।
ReplyDeleteरोचक पोस्ट है धन्यवाद।
ReplyDeleteउत्तर सही है पर सटीक नहीं...अरविन्द जी की बात सही है. पर सापेक्षता नहीं संभाविता होना चाहिए. यदि हर बात का उत्तर एकदम सही या गलत दिया जा सकता तो संभाविता या प्रोबेबिलिटी का इतना बोलबाला नहीं होता.
ReplyDeleteआपका ब्लॉग मुझे बेहद पसंद आया उन्मुक्त जी ,वैसे भी वैज्ञानिकता के परिप्रेक्ष्य के लेख मेरी पहली पसंद होते हैं किन्तु आप तो वास्तविकता को उजागर कर रहे हैं अन्यथा लोग साइंस के नाम पर उल-जलूल चीजें परोस देते हैं ,गर्दल को मैं जल्दी ही पढूंगी और आपकी पत्नी का ब्लॉग भी
ReplyDeleteवाह! बड़ा अच्छा लगा आपकी यह पोस्ट पढ़कर। लवली की बात को मैं फ़िर से दोहराऊंगा। आपके लेखों का संकलन छपना चाहिये। आप सोचिये ,रास्ते निकलेंगे।
ReplyDeleteहम जहाँ भी देखते हैं सर्वत्र अस्तव्यस्तता पाते हैं। लेकिन जब खोजने निकलते हैं तो हर चीज अपने ठिकाने पर पाते हैं, उस की तमाम वजहें पाते हैं। समूचा विश्व नियमों से बंधा और व्यवस्थित है। बस नियम ही इतने हैं कि उन का कोई छोर नहीं।
ReplyDeleteवैज्ञानिक सिद्धांत निरूपण संबंधी यह चर्चा बड़ी
ReplyDeleteप्रासांगिक और रोचक लगी। आपको
जानकारी देता हूँ। "नाई" शब्द
"न्यायी" का अपभ्रंश रूप है। नैयायिकों
का एक काम था; "बाल की खाल
निकालना" न कि "खाल के बाल
निकालना।"
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
अच्छा लेख है . इसी से मिलता जुलता प्रकार का १ मत Physics के टोपिक Thermodynamics में भी मिलता है जिसके अनुसार " Perfectly black body doesn't exist " .ie: There is no such body in universe that can absorb heat totally . ब्रह्मांड में कोई ऐसी वस्तु विधमान नहीं है जो ताप को पोर अवशोषित करले .
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