शून्य के अनुसार यह वेब साईट है,
तकनीकी लोगों के लिये, तकनीकी लोगों के द्वारा (News for Techies in India. By techies in India)
तकनीकी लोगों के द्वारा, सबके लिये और सब के द्वारा, तकनीकी लोगों के लिये
मैंने भी इस वेब साईट को किसी लेख पढ़ने के लिये नहीं, पर कौतूहलवश इसके नाम के कारण से खोला था। शून्य नाम से मेरे विद्यार्थी जीवन की बहुत सारी यादे जुड़ी हुई हैं बस उसी के कारण और एक बार इस पर गया फिर इस पर लिखे या इसके द्वारा अनुमोदित लेखों को पढ़ने लगा। दो शब्द मेरी उन यादें के लिये जो शून्य के साथ जुड़ी हैं।
यह सच है कि मुझे कई बार, कई विषयों पर शून्य या सिफ़र, या जीरो नम्बर मिल चुके हैं। इसलिये इसको तो भूलना मुश्किल है। इसके अलावा और बहुत सी यादें हैं
मैं जब विद्यार्थी था या जैसे ही विद्यार्थी जीवन समाप्त किया तब ही एक पिक्चर 'पूरब और पश्चिम' आयी थी। इसमे मनोज कुमार, सायरा बानो, और प्राण थे। इसकी कहानी कुछ इस प्रकार कि है कि सायरा बानो, प्राण की लड़की का किरदार निभा रहीं हैं और लंदन मे अपने पिता के साथ रहती हैं। मनोज कुमार इलाहाबाद विश्वविद्यालय से लंदन पढ़ने जाते हैं। वहां एक जगह, शायद इंडिया हाऊस मे, उनकी मुलाकात प्राण से होती है। प्राण उनसे कहते हैं कि हिन्दुस्थान तो जीरो है इस पर वह, जीरो का महत्व के लिये यह कहते हैं यह लय मे एक गाने के छोटे से हिस्से के रूप मे है।
जब जीरो दिया मेरे भारत ने,
भारत ने, मेरे भारत ने,
दुनिया को तब गिनती आयी।
तारों की भाषा भारत ने,
दुनिया को पहले सिखलायी।
देता न दशमलव भारत तो,
यूं चांद पर जाना मुश्किल था।
धरती और चांद की दूरी का,
अन्दाजा लगाना मुश्किल था।
सभ्यता जहां पहले आयी,
सभ्यता जहां पहले आयी।
पहले जन्मी है, जहां पे कला।
अपना भारत, वह भारत है,
जिसके पीछे संसार चला।
संसार चला, और आगे बढ़ा।
यूं आगे बढ़ा, बढ़ता ही गया।
भगवान करे यह और बढ़े,
बढ़ता ही रहे और फूले फले।
बढ़ता ही रहे और फूले फले।
यह गाना कुछ लम्बा है पर मैने इसका जीरो से सम्बन्धित भाग ही लिखा है। इस गाने को आप यहां सुन सकते हैं और यहां विडियो में देख और सुन सकते हैं।। यदि आपने पहले इसे सुना है तो आपको यह पुरानी यादों मे वापस ले जायेगा। यदि नहीं सुना है तो कम से कम एक बार सुनिये - आपको अच्छा लगेगा।
मैंने पहले इस गाने को ogg फॉरमैट में रखा था पर अब सीधे लिंक दे दिया है। यहां मैं आपको बताना चाहूंगा कि ogg फॉरमैट की ऑडियो फाइलों को आप हर ऑपरेटिंग सिस्टम मे सुन सकते हैं पर आप इसे किस प्रोग्राम मे सुन पायेंगे इसके लिये यहां देखें। इसे विन्डोस़ मे विन्डो मीडिया प्लेयर पर भी सुन सकते हैं। vorbis.com के अनुसार विन्डो मीडिया प्लेयर-१० या उसके उपर का प्रोग्राम प्रयोग करना पड़ेगा पर इसमे भी मुश्किल पड़ती है। विन्डोस़ मे ogg फॉरमैट पर म्यूज़िक सुनने के लिये एक प्रोग्राम विनऐम्प है। यह एकदम फ्री प्रोग्राम है और यहां से डाऊनलोड किया जा सकता है। ऑडेसिटी (Audacity) एक और प्रोग्राम है जिसमे इसे सुना जा सकता है। ऑडेसिटी का फायदा यह है कि यह ओपेन सोर्स है और विन्डोस, लिनेक्स, तथा ऐपेल्ल तीनो पर चलता है। विनऐम्प और ऑडेसिटी बहुत अच्छे प्रोग्राम हैं और इन पर हर फॉरमैट की ऑडियो क्लिप सुनी जा सकती है। इन्हे प्रयोग कीजिये। यहां कुछ शब्द ogg फॉरमैट के बारे मे।
मैं कई चिठ्ठेकार बन्धुवों की ऑडियो क्लिप सुनता हूं। यह सब MP-3 फॉरमैट मे होती हैं। MP-3 फॉरमैट मलिकाना है। जब कि ogg फॉरमैट ओपेन सोर्स है और इस पर किसी का कोई मलिकाना अधिकार नहीं है। इसके बारे मे विस्तृत जानकारी यहां देखें। इस बारे मे भी सोचियेगा कि,
- मलिकाना फॉरमैट का क्यों प्रयोग किया जाय?
- क्यों नहीं ऐसी फॉरमैट का प्रयोग किया जाय जो कि ओपेन सोर्स हो?
- क्या थोड़ी सी सुविधा के लिये अपने अधिकारों को सीमित करना ठीक होगा?
१९३० के दशक मे नीकोला बूरबाकी (Nicolas Bourbaki) के नाम से गणित पर बहुत सारी फ्रांसीसी किताबें आयीं। इन किताबों ने गणित को नयी दिशा दी। नीकोला बूरबाकी नाम का कोई भी व्यक्ति नहीं था। कुछ फ्रांसीसी गणितज्ञों ने मिल कर यह कार्य किया। किताबों मे लेखक का नाम देना जरूरी होता है चार्ल्स डेनिस बूरबाकी फ्रांसीसी सेना के एक प्रसिद्ध अधिकारी थे। फ्रांसीसी गणितज्ञों ने, बस उसी के नाम पर एक काल्पनिक नाम नीकोला बूरबाकी चुन लिया और लगे लिखने गणित पर किताबें। किताबें इतनी अच्छी थीं कि उसने गणित को नयी दिशा ही दे दी। न ही उसमे किसी ने अपने नाम के बारे मे सोचा, न ही किसी ने कॉपीराईट के बारे मे - गणित को आगे बढ़ाना ही उनका ध्येय था। बूरबाकी के बारे मे एक अच्छा लेख साईंटिफिक अमेरिकन के मई १९५७ के अंक मे छपा है। इस लेख को पौल हेलमौस ने लिखा है जो कि स्वयं एक जाने माने गणितज्ञ हैं। नीचे के दो स्केच साईंटिफिक अमेरिकन के सौजन्य से हैं और इस पत्रिका के इसी लेख के साथ मई १९५७ के अंक मे छपे थे। स्केच के नीचे जैसा साईंटिफिक अमेरिकन मे अंग्रेजी मे लिखा है वही यहां पर मैने लिख दिया है।
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१९६० के दशक मे मैंने स्नातक कि कक्षा मे प्रवेश लिया। स्नातक कक्षा मे गणित भी मेरा एक विषय था। उस समय गणित के कुछ अध्यापकों और विद्यार्थियों ने इसी बूरबाकी से प्रेणना लेकर जीरो नाम का क्लब बनाया और कई कार्यकर्म किये और कुछ किताबें भी लिखीं।
शून्य ने मुझे कुछ इन्ही बातों की याद दिलायी जिसके कारण मैने इस वेब साईट को देखा। यह हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के चिठ्ठों को नयी दिशा देगी - इसी शुभकामना के साथ यह चिठ्ठी समाप्त करता हूं और ज्लदी ही फिर से बात करने उपस्थित होऊंगा।
१ मै नहीं जानता कि यह उच्चारण सही है कि नहीं क्या कोई इसकी पुष्टि करेगा
श्री उन्मुक्त जी,
ReplyDeleteआपके द्वारा दिये गये link से मैं भी उत्सुक्तावश शून्य नामक वेब साइट पर गया और कुछ लेख भी देखे परंतु उस साइट पर लेख नहीं अपितु उनके links दिये गये हैं। आलेखों की प्रस्तावना ही शून्य पर है और सम्पूर्ण लेख लेख अन्यान्य वेब साइटों पर, अन्य भाषाओं में ही हैं। फिर भी यह एक अच्छा प्रयास है और मेरी भी शुभकामनाये उनके साथ हैं।
अच्छी जानकारी है... और लिखे गणित के बारे में. मैं भी प्रयास कर रहा हूँ... कोशिश है कम से कम तकनिकी शब्दों का इस्तेमाल किया जाय...
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