Monday, June 05, 2006

अनुगूँज 20: नेतागिरी, राजनीति और नेता

Akshargram Anugunj





अनुगूंज पर इस बार का विषय है - नेतागिरी, राजनीति और नेता| इस बारे मे मेरे कोई विचार नहीं हैं न ही मै कुछ कह सकता हूं| मेरे जैसे कई और लोग हैं| शायद उन्ही का बहुमत है, इसीलिये पिछ्ले साल, टाईम्स औफ इंडिया मे, अलग-अलग दिन उत्तर प्रदेश के विधान सभा के एक सदस्य के बारे मे यह खबरें पढ़ने को मिली|
इन खबरों को आप स्वयं पढ़ सकते हैं|

यह विधान सभा के सदस्य, एक पार्टी से चुनाव जीत कर आये थे और फिर दल बदल कर सत्तारूढ़ पार्टी मे जा मिले| इन्हे दो खून करने के कारण सेशन कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनायी| उसके बाद इनकी अपील उच्च न्यायालय से खारिज हो गयी| उसके पश्चात महामहिम ने इन्हे पेरोल पर छोड़ दिया| जिसके परिवार मे खून हुआ था, उसने उच्च न्यायालय मे अपनी गुहार लगायी| इस पर उच्च न्यायालय ने विधान सभा के सदस्य की पेरोल खारिज कर दी और एलेक्शन कमीशन से इनकी सदस्यता समाप्त करने को कहा, जिस पर यह सारा हंगामा हुआ| उच्च न्यायालय का आदेश, अंतरिम आदेश लगता है1 और WP 11529 of 2005 Sarvesh Narain Shukla Vs. State Of U.P. Thru' Principal Secy. & Others कि याचिका मे दिया गया है| यह आज्ञा यहां पर है|

नेतागिरी, राजनीति और नेता ऐसे लोगों तक सीमित नहीं रहनी चाहिये| यदि हमारा बहुमत इस तरह के विषय मे रुचि रखे तो इस तरह के लोग न ही चुनाव जीत पायेंगे और न ही 'नेतागिरी, राजनीति और नेता' ऐसे लोगों तक सीमित रहेगी|

मै तरुन जी का आभार प्रगट करता हूं कि उन्होने हम लोगों का ध्यान इस तरफ खींचा| मै आगे से ऐसे विषय पर हमेशा रुचि रखूंगा और वोट देने अवश्य जाऊंगा|


1मै जब इस आदेश को ढ़ूढने इलाहाबाद उच्च न्यायालय कि वेब साईट पर गया तो पाया कि,
  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय न्यायिक एवं प्रशाशनिक निर्णय RSS feed पर उपलब्ध हैं;
  • यह न केवल न्यायालय मे लगे हुऐ मुकदमो कि सूची इन्टरनेट पर उपलब्ध कराती है पर webdiary के द्वारा उस दिन न्यायालय मे क्या हुआ इसका ब्यौरा भी उपलब्ध कराती है
मुझे कई बार दुनिया के न्यायालयों की वेब साईट पर जाने का मौका मिला| मुझे आज तक किसी भी न्यायालय की वेब साईट नहीं मिली जिसमे इस तरह की सुविधा उपलब्ध हो| शायद यह न्यायालयों मे इस तरह की सेवा उपलब्ध कराने वाली यह पहली वेब साईट है|

1 comment:

  1. Anonymous8:00 pm

    इन जैसे ना जाने कितने है, इन लोगों के कारण ही नेताओं और गुण्‍डो, बदमाशों का फर्क कम होने लगा है।

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