'उन्मुक्त की रचना अछूते विषय पर उड़ती सी नजर डाल गयी दिखी। सच में, इससे ज्यादा की उम्मीद थी उन्मुक्त आपसे। वैसे आपने विषय बहुत हृदयस्पर्शी चुना है।'मैंने भी 'आईने, आईने यह तो बता - दुनिया में सबसे सुन्दर कौन' चिट्ठी लिखते समय यह बात पूछी थी कि क्या इस बारे में विस्तार में पढ़ना पसन्द करेंगे। कुछ टिप्पणियां भी आयीं जिसमें पाठक गण ने इसे पढ़ने में रुचि जतायी। मेरे छुटपुट चिट्ठे पर सर्च कर सबसे ज्यादा लोग इसी चिट्ठी पर आते हैं पर यह विषय कुछ लम्बा , मुश्किल, एवं विवदास्पद है। कुछ आत्मविश्वास की भी कमी लगती है - लोग क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे - फिर भी लिखने का प्रयत्न करूंगा।
दूसरी प्रतिक्रियाया क्षितिज जी की है। वे अपनी समस्या इस प्रकार से बता रहें हैं,
'आज सुबह उन्मुक्त की रचना मां को कैसे बतायें पढ़ी। हालांकि वे सिर्फ अन्य लोगों के विचार प्रस्तुत कर के चुप हो गए, मेरे लिए यह एक गंभीर समस्या है, और तब तक रहेगी जब तक मैं स्वयं अपनी मां (और पिता) को नहीं बता पा रहा।'मुझे कुछ जिज्ञासा हुई कि विक्रम सेठ की मां, न्यायमूर्ति लीला सेठ, को यह बात कैसे पता चली।
न्यायमूर्ति लीला सेठ ने पटना में वकालत शुरु की। उसके बाद उन्होने वकालत दिल्ली में की और वहीं पर न्यायधीश बनी। वे हिमाचल प्रदेश की मुख्य न्यायधीश नियुक्त हुईं और वहीं से अवकाश ग्रहण किया। उन्होने अपनी जीवनी लिखी है इसका नाम है 'On Balance'। इसे Penguins India प्रकाशित किया है। इसमें इस बात का कुछ जिक्र है।
विक्रम सेठ ने कुछ समय चीन में बिताया। न्यायमूर्ति लीला सेठ और उनके पति चीन घूमने और उससे मिलने गये थे। वहां का वर्णन करते समय वे इस बात का आभास, इन शब्दों में देती हैं,
'The night before his thirtieth birthday, he [Vikram Seth] suddenly asked me where Gabrielle [Vikram's friend] would stay if she came to India. I [Justice Seth] said she would share a room with Aradhana [Vikram's sister]. He replied, ‘But she is my friend. Why shouldn’t she share the room with me? Before I could answer, he asked, ‘If I had a male friend visiting me, where would he stay? I replied, ‘He would share the room with you.’ ‘Vikram responded: ‘So you are driving me arms of men.’ I was a bit taken aback by his remark and the annoyed and sarcastic way in which he said it, but tried to remain calm and explained that in Indian society that was how things were done. I asked him what the staff would think if it were done any other way; even my colleagues, if they got to know, would be horrified. He declared aggressively, ‘You are more concerned with the opinion of others than the happiness of your children.’ I was upset by the remark, but told him, ‘When you come to our home, you must observe our rules, and when we stay in your house we will abide by yours.’ He retorted, ‘I thought that the house in Delhi was my house too.’ I found the situation was getting tense, and I didn’t want to get into a heated argument. I decided to go to bed quietly and ignore the subject for the rest of the trip.'
'At the time I didn’t realise that Vikram was bisexual. This understanding came to me later and I found it hard to come to terms with his homosexuality. Premo [Vikram's father] found it even afraid that someone might try to exploit him because of it. It is only now that I realize that many creative persons share this propensity and that it gives them a special nurturing and emotional dimension.'
यह किताब कैसी है, इसमें क्या है - यह सब अगली बार।
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इस सब में जज सहिबा यह बताना कतई भूल गईं हैं कि उन्हें किस प्रकार "This understanding came to me later"। क्या यह सोचते हुए कि बेटा क्यो अपनी महिला मित्र से साथ एक कमरे में सोने के लिए आतुर है, अचानक नभ वाणी से? या बाद में दोबारा कोई बहसबाज़ी हुई जो कि प्रकाशित करने योग्य नहीं समझी गई?
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