Monday, December 04, 2006

हरिवंश राय बच्चन: नारी मन

हरिवंश राय बच्चन
भाग-१: क्या भूलूं क्या याद करूं
पहली पोस्ट: विवाद
दूसरी पोस्ट: क्या भूलूं क्या याद करूं

भाग-२: नीड़ का निर्माण फिर
तीसरी पोस्ट: तेजी जी से मिलन
चौथी पोस्ट: इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय के अध्यापक
पांचवीं पोस्ट: आइरिस, और अंग्रेजी
छटी पोस्ट: इन्दिरा जी से मित्रता,
सातवीं पोस्ट: मांस, मदिरा से परहेज
आठवीं पोस्ट: पन्त जी और निराला जी
नवीं पोस्ट: नियम

भाग-३: बसेरे से दूर
दसवीं पोस्ट: इलाहाबाद से दूर

भाग -४ दशद्वार से सोपान तक
ग्यारवीं पोस्ट: अमिताभ बच्चन
बारवीं पोस्ट: रूस यात्रा
यह पोस्ट: नारी मन

कहा जाता है कि नारी को समझ पाना, पुरषों के लिये सुलभ नहीं है। बच्चन जी संवेनदशील थे - कई महिलाओं के नजदीक रहे। अपनी जीवनी कुछ ऐसे सम्बन्धों की भी चर्चा की जिसे भारतीय समाज में दबी जुबान से बात की जाती है। मेरे लिये कहना मुश्किल है कि वे नारी मन को अच्छा समझ पाये कि नहीं। यह तो वही व्यक्ति कह सकता है जो स्वयं इसमें पारंगत रहा हो - मैं नहीं। पर मैं बच्चन जी के नारी विश्लेषण से सहमत नहीं हूं। ऐसा क्यों है, मैं नहीं बता सकता हूं, मैं स्वयं न तो इसे समझ पा रहा हूं और नही इसे तर्क पर रख पा रहा हूं।

बच्चन जी कहते हैं कि तुलसी दास जी ने
'एक ओर तो उन्होंने सीता के रूप में आदर्श नारी की कल्पना की और दूसरी ओर, जहॉं भी मौका मिला नारी की निंदा करते रहे, प्राय: उसकी कामुकता की ओर संकेत करते हुए।'
इसका कारण वे इस तरह से बताते हैं।
'विवाह हो गया था, पर पत्नी उनकी अनुपस्थिति में, बिना उनकी अनुमति के मायके भाग गई थी। आधी रात को तुलसीदास को पत्नी की याद सताती है ... पहुँच जाते हैं [पत्नी] के कमरे में। ... कहा तो यह जाता है कि ... [पत्नी] ने कहा कि जैसी प्रीति आपको मेरे हाड़-मांस के शरीर से है वैसी प्रीति यदि आप रघुनाथ जी से करते तो आपका जन्म-जन्मांतर सुधर जाता ... क्षमा करेंगे, इस विषय में मेरी अलग ही कल्पना है। अधिक संभावना इसकी है कि उस रात तुलसीदास ने ... [अपनी पत्नी] को किसी और के साथ देखा। उस रात उनकी मोहनिद्रा नहीं टूटी। नारी के प्रति उनका मोह भंग हुआ—‘Frailty thy name is woman’ (नारी तेरा नाम छिन्नरपन)। '

हो सकता है कि वे ठीक हों, पर मालुम नहीं क्यों मुझे यह ठीक नहीं लगता - शायद मैं कम संवेदनशील हूं या फिर महिलाओं को नजदीक से कम परखा है।

वे भारतीय नारी की मुश्किलों के बारे में लिखते हैं कि,
'परंपरागत मर्यादाओं में बँधी भारतीय नारी की बड़ी मुसीबत है। किसी पुरूष के प्रति यदि उसमें प्रेम जागे तो वह सीधे-साफ शब्दों में यह नहीं कह पाती कि मैं तुमसे प्रेम करती हूँ। प्राय: वह उसे अपना भाई बनाती है। उसकी कलाई पर राखी बांधती है और इस प्रकार उससे किसी संबंध से जुड़ उसे अपना सखा, साथी, मित्र, प्रेमी बना पति के रूप में भी पाने की कामना करती है।'

उनके मुताबिक शूर्पणखा भी अनाड़ी थी। उनके अनुसार,
'यदि वह [शूर्पणखा] बहन बनकर राम के हाथ में राखी बॉंधने के लिए आई होती, तो ... अरण्य कांड के बाद रामायण की कथा कुछ और ही तरह लिखी जाती।'

वे साहित्य की दुनिया से दो उदाहरण भी देते हैं।
'सुनता हूं कि पुष्पा ने भी भारती के हाथ में पहले राखी बांधी थी; आज वे उनसे एक पुत्र, एक पुत्री की मां हैं। नंदिता जी को आज प्राय: सभी लोग भगवतीचरण वर्मा की पत्नी के रूप में जानते हैं। उन्होंने भी पहले वर्मा जी के हाथ में राखी ही बांधकर उनसे बहन का रिश्ता कायम किया था।'
बच्चन जी के अनुसार अजिताभ और रोमेला का प्रेम भी, शायद इसी तरह से शुरु हुआ। यह सब सच है कि नहीं यह तो वे ही लोग बता सकते हैं। पर अब समय बदल गया है यह आज सच न हो। मैंने तो नहीं पर मेरे कई मित्रों ने प्रेम विवाह किया पर उनका पत्नी से रिश्ता कभी भी बहन के रूप में नहीं शुरु हुआ था वह हमेशा मित्र के रूप में ही शुरु हुआ था।

मेरे और उनके विचारों की भिन्नता का कारण शायद यही हो कि हम लोग अलग अलग समय में पैदा हुऐ और अलग अलग वातावरण में बड़े हुऐ। इसने हमारी विचारधारा पर भी असर डाला।

अन्य चिट्ठों पर क्या नया है इसे आप दाहिने तरफ साईड बार में, या नीचे देख सकते हैं।

2 comments:

  1. समय के साथ प्रेम व्यक्त करने के तरीकों में फर्क आता रहा है । एक वक्त वो भी था जिसका बच्चन ने जिक्र किया है । रही तुलसीदास के बारे में बच्चन जी की कही बात तो ये तो अँधेरे में तीर चलाने जैसा है।

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  2. तुलसीदास जी की बात तो कपोल कल्पना ही है. लेकिन उस चर्चा के बाद बच्चन जी ने जो लिखा है, वो शायद उनका अपना अनुभव हो सकता है.

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