इस चिट्ठी में, नैनीताल के फ्लैट में लगी कुछ दुकानों एवं चीनी खिलौनों की चर्चा है।
राकेश जिनसे मैंंने लट्ठू खरीदा |
फ्लैट में बहुत सी दुकाने खिलौनें की थी। बचपन में, मैंने चकरी चलायी हुई थी और मुझे अब भी उसको चलाना अच्छा लगता है। मैंने एक खिलौने की दुकानवाले से पूछा,
'क्या आपके पास चकरी होगी?'दुकानवाले ने अपना नाम राकेश बताया और मुझसे पूछा,
'यह चकरी क्या होती है।'मैंने बताय कि चकरी गोल गोल होती है और उसमें डोरी बंधी रहती है। जब आप उसे चलाते हैं तब नीचे जाती है और फिर वापस आती है। राकेश ने कहा
'अरे आप इसे चकरी क्यों कह रहे हैं। यो-यो कहिए ना।'मुझे आश्चर्य लगा कि उसको हिन्दी का नाम नही मालूम था पर यो-यो जो कि एक अमेरिकन नाम है वह उसे मालूम था। राकेश ने बताया,
'मेरे पास यो-यो नहीं है। लेकिन आपको यहां पर मिल जायगा।'
जिससे मैंने चकरी खरीदी |
मैंने बगल की दुकान से योयो लिया जो कि ४०₹ का मिला। यह सारे खिलौने चीन से बन कर आ रहे हैं। यह बहुत सस्ते हैं और हमारे खिलौने उद्योग को समाप्त कर रहे हैं। चीनी खिलौने जितने सस्ते हैं उतने ही बेकार हैं। बहुत जल्दी ही टूट जाते हैं। जीवन भी उतना कम है।
यो-यो वहीं फलैट में चलाते समय टूट गया। मेरे ४०₹, ५ मिनट में ही डूब गये।
अगली बार कुछ और दुकानों की चर्चा करेंगे।
जिम कॉर्बेट की कर्म स्थली - कुमाऊं
जिम कॉर्बेट।। कॉर्बेट पार्क से नैनीताल का रास्ता - ज्यादा सुन्दर।। ऊपर का रास्ता - केवल अंग्रेजों के लिये।। इस अदा पर प्यार उमड़ आया।। उंचाई फिट में, और लम्बाई मीटर में नापी जाती है।। चिड़िया घर चलाने का अच्छा तरीका।। नैनीताल में सैकलीज़ और मचान रेस्त्रां जायें।। क्रिकेट का दीवानापन - खेलों को पनपने नहीं दे रहा है।। गेंद जरा सी इधर-उधर - पहाड़ी के नीचे गयी।। नैनीताल झील की गहरायी नहीं पता चलती।। झील से, हवा के बुलबुले निकल रहे थे।। नैनीताल झील की सफाई के अन्य तरीके।। पास बैटने को कहा, तो रेशमा शर्मा गयी।। चीनी खिलौने - जितने सस्ते, उतने बेकार।।
सांकेतिक शब्द
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प्रभावी लेखन,
ReplyDeleteजारी रहें,
बधाई !!
चीनी खिलौनों की असलियत हम कब समझेंगे।
ReplyDeleteहम पोस्टों को आंकते नहीं , बांटते भर हैं , सो आज भी बांटी हैं कुछ पोस्टें , एक आपकी भी है , लिंक पर चटका लगा दें आप पहुंच जाएंगे , आज की बुलेटिन पोस्ट पर
ReplyDeleteprabhavi likhan... :)
ReplyDeleteChina has mastered the art of manufacturing . That's why its products are cheaper.
ReplyDeleteबाजार पर चीनियों का कब्ज़ा है -बचपन से बुढापा तक उनके हवाले :-(
ReplyDeletesach kaha lekhak mahoday..par apne desh ke khilono ki baat hi alag hai...
ReplyDeleteखरीदने में सस्ते पर उपयोग की दृष्टि से बड़े मँहगे हैं खिलौने।
ReplyDeleteजी हम तो स्वदेशी विचारधारा के समर्थक है । बस समस्या ये है कि मंहगे उत्पादों मे स्वदेशी का ख्याल हम नही रख पाते है ।
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