नैनीताल से बिन्सर के रास्ते में, न्याय देवता का मन्दिर पड़ता है। इस चिट्ठी में उसी की कथा की चर्चा है।
गोलू देवता - चित्र विकिपीडिया से |
हम लोगों ने एक रात बिन्सर रूकने का प्रोग्राम बनाया था। -११ बजे नैनीताल से विन्सर के लिए टैक्सी से निकले। वहां जाने के लिए अल्मोड़ा होते हुए जाना पड़ता है। एक दिन पहले बहुत जोर की बारिश हो चुकी थी। इसलिए अल्मोड़ा पहुंचने के रास्ते में आसमान एकदम साफ हो गया और हम लोगों को हिमाच्छदित हिमालय की चोटियां दिखने लगी। और अल्मोड़ा पहुंचते पहुंचते हम लोगों ने नन्दा कोट की चोटियों को देखा।
अल्मोड़ा में हम लोगों ने अपने दोपहर के भोजन लिया और उसके बाद विन्सर के लिए निकले। नैनीताल से चलते समय, मेरे मित्र ने कहा था, रास्ते में न्याय देवता का मंदिर पड़ता है उसे भी देख लेना। हम लोग इसे देखने के लिए गये।
नन्दा कोट की चोटियां |
न्यास देवता गोलू देवता या श्री ग्वेल ज्यू बाला गोरिया, गौर भैरव या ग्वेल देवता के रूप में प्रसिद्व है। इनके मंदिर चम्पावत, चितई (अल्मोड़ा) तथा घोड़ाखाल (नैनीताल) में है। इनकी कथा कुछ इस प्रकार बतायी जाती है।
जनश्रुतियों के अनुसार चम्पावत में कत्यूरी व बंशीराजा झालूराई का राज था। इनकी सात रानियां थी लेकिन वे नि:सन्तान थे। राजा ने भैरव पूजा का आयोजन किया। भगवान भैरव ने स्वप्न में कहा कि मैं तुम्हारे यहां रानी से जन्म लूंगा।
एक दिन राजा शिकार करते हुए जंगल में बहुत दूर निकल गए। उन्हें प्यास लगी। दूर एक तालाब देखकर राजा ने ज्यों ही पानी को छुआ उन्हें एक नारी स्वर सुनाई दिया,
'यह तालाब मेरा है। तुम बिना मेरी अनुमति के इसका जल नहीं पी सकते।'राजा ने उस नारी को अपना परिचय देते हुए कहा- मैं गढ़ी चम्पावत का राजा हूं। मैं आपका परिचय जानना चाहता हूं। तब उस नारी ने कहा- मैं पंच देव देवताओं की बहन कलिंगा हूं। राजा ने उसके साथ शादी की।
रानी कलिंगा गर्भवती हुई। राजा प्रसन्न हुआ पर उसकी बाकी सात रानियों को जलन हुई। रानी कलिंगा ने बालक को जन्म दिया पर सातों रानियों सिल बटटे को रानी कलिंगा को दिखाकर कहा कि तुमने उसे जन्म दिया है। बालक को एक लोहे के संदूक में लिटाकर काली नदी में बहा दिया। वह संदूक गोरीघाट में पहुंचा। गोरीघाट पर भाना नाम के मछुवारे के जाल में वह संदूक फँस गया। मछुवारा नि:संतान था, इसलिए उसने बालक को भगवान का प्रसाद मान कर पाल लिया।
एक दिन बालक ने अपने असली माँ-बाप को सपने में देखा। उसने सपने की बात की सच्चाई का पता लगाने का निश्चय किया।
एक दिन उस बालक ने अपने पालक पिता से कहा कि मुझे एक घोड़ा चाहये। निर्धन मछुवारा कहाँ से घोड़ा ला पाता। उसने एक बढ़ई से कहकर अपने पुत्र का मन रखने के लिए काठ का घोड़ा बनवा दिया। बालक चमत्कारी था। उसने उस काठ के घोड़े में प्राण डाल दिये और फिर वह उस घोड़े में बैठकर दूर-दूर तक घूमने जाने लगा।
एक बार घूमते-घूमते वह राजा झालूराई की राजधारी धूमाकोट में पहुँचा। घोड़े को एक जलाशय के पास बांधकर सुस्ताने लगा। वह जलाशय रानियों का स्नानागार भी था। सातों रानियां आपस में बातचीत कर रही थीं और रानी कलिंगा के साथ किए गए अपने कुकृत्यों का बखान कर रहीं थी कि बालक को मारने में किसने कितना सहयोग दिया और कलिंगा को सिलबट्टा दिखाने तक का पूरा हाल एक दूसरे को बढ़ चढ़ कर सुना रही थी। उनकी बात सुनकर, बालक को अपना सपना सच लगने लगा। वह अपने काठ के घोड़े को लेकर जलाशय के पास गया और रानियों से कहने लगा,
'पीछे हटिये- पीछे हटिये, मेरे घोड़े को पानी पीना है।'सातों रानियां उसकी बेवकूफी भरी बातों पर हँसने लगी और बोली,
'कैसे बेवकूफ हो। कहीं काठ का घोड़ा पानी भी पी सकता है।'बालक ने तुरन्त पूछा,
'क्या कोई स्त्री पत्थर (सिल-बट्टे) को जन्म दे सकती है?'सभी सातों रानियों डर गयी और राजमहल जा कर राजा से उस बालक की अभ्रदता की झूठी शिकायतें करने लगी। राजा ने बालक को पकड़वा कर पूछा,
'यह क्या पागलपन है तुम एक काठ के घोड़े को कैसे पानी पिला सकते हो?'बालक ने उत्तर दिया,
'महाराज यदि आपकी रानी सिलबट्टा (पत्थर) पैदा कर सकती है, तो यह काठ का घोड़ा भी पानी पी सकता है।'उसके बाद उसने अपने जन्म की घटनाओं का पूरा वर्णन राजा के सामने किया और कहा,
'न केवल मेरी मां कलिंगा के साथ अन्याय हुआ है पर महराज आप भी ठगे गए हैं।'राजा ने सातों रानियों को बंदीगृह में डाल देने की आज्ञा दी। सातों रानियां रानी कलिंगा से अपने किए की क्षमा मांगने लगी और रोने गिड़गिड़ाने लगीं। तब उस बालक ने अपने पिता को समझाकर उन्हें माफ कर देने का अनुरोध किया। राजा ने उन्हें दासियों की भाँति जीवन-यापन करने के लिए छोड़ दिया।
कहा जाता है कि यही बालक बड़ा होकर ग्वेल, गोलू बाला, गोरिया, तथा गौर -भैरव नाम से प्रसिद्व हुआ है। ग्वेल नाम इसलिए पड़ा कि उन्होंने अपने राज्य में जनता की एक रक्षक के रूप में रक्षा की। आप गोरी घाट में एक मछुवारे को संदूक में मिले, इसलिए बाला गोरिया कहलाए। भैरव रूप में इन्हें शक्तियाँ प्राप्त थी। आप गोरे थे इसलिए इन्हें गौर भैरव भी कहा गया।
अगली बार, इनके मन्दिर में चलेंगे।
उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।
जिम कॉर्बेट की कर्म स्थली - कुमाऊं
जिम कॉर्बेट।। कॉर्बेट पार्क से नैनीताल का रास्ता - ज्यादा सुन्दर।। ऊपर का रास्ता - केवल अंग्रेजों के लिये।। इस अदा पर प्यार उमड़ आया।। उंचाई फिट में, और लम्बाई मीटर में नापी जाती है।। चिड़िया घर चलाने का अच्छा तरीका।। नैनीताल में सैकलीज़ और मचान रेस्त्रां जायें।। क्रिकेट का दीवानापन - खेलों को पनपने नहीं दे रहा है।। गेंद जरा सी इधर-उधर - पहाड़ी के नीचे गयी।। नैनीताल झील की गहरायी नहीं पता चलती।। झील से, हवा के बुलबुले निकल रहे थे।। नैनीताल झील की सफाई के अन्य तरीके।। पास बैटने को कहा, तो रेशमा शर्मा गयी।। चीनी खिलौने - जितने सस्ते, उतने बेकार।। कमाई से आधा-आधा बांटते हैं।। रानी ने सिलबट्टे को जन्म दिया है।।
सांकेतिक शब्द
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। Kumaon,
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रोचक कथा..
ReplyDeleteअदभुत जनश्रुति का उल्लेख किया है आपने ! इसे बांचते वक़्त मुझे , कथा में कुछ बातें प्रतीकात्मक रूप से निहित लगती हैं ! मसलन कलिंगा वास्तव में एक जलाशय / जलस्रोत की स्वामिनी /संरक्षक युवती रही होगी जोकि प्यासे राजा / विपदा ग्रस्त राजा की प्राण रक्षक साबित हुई , सो राजा ने उससे विवाह किया ! प्राचीन काल से ही जलाशयों की देखभाल तथा संरक्षण का कार्य आमतौर पर ढीमर / जल क्षत्री / मल्लाह श्रेणी के लोग करते आये हैं , जिन्हें क्षत्रियों की तुलना में निचली जाति का माना जाता है , ऐसे में राजा की शेष रानियों की ईर्ष्या के कम से कम तीन कारण बनते हैं , एक तो कलिंगा , अपेक्षाकृत निम्न जाति / सामाजिक वर्ग की युवती थी और दूसरे उसने राजा यानि कि अन्य रानियों के पति पर उपकार किया था , राजा को उपकृत कर अपना ऋणी बना लिया था , तीसरे वह अपेक्षाकृत रूप से अन्य रानियों से कम उम्र की और लावण्यमयी रही होगी ! गौर तलब है कि निम्न सामाजिक वर्ग की युवती को पत्नि के रूप में स्वीकार करना एक पुरुष के लिए आसान हो सकता है पर शेष परिजन उस युवती की संतान को भावी राजा स्वीकारें अथवा परिवार का सामान्य हिस्सा मान लें यह सहज भी नहीं है , क्योंकि यह हमारी समाज व्यवस्था और शताब्दियों पुरानी सोशल कंडीशनिंग का परिणाम है ! कलिंगा का पुत्र भगवान भैरव की पूजा और वरदान के फलस्वरूप उनके अवतार का प्रतीक है , जिसके तहत भगवान एक निम्न वर्गीय युवती की कोख से जन्म लेकर (प्रणय/विवाह के बहाने) वर्ग भेद / जाति भेद उन्मूलन का संकेत देते हैं ! यह दृष्टान्त सहज ही कुंती , कर्ण और सूर्य देवता के संबंधों का स्मरण कराता है , जहां सूर्य देव की तुलना में कुंती निरी मनुष्य / हेय जाति की थी और कर्ण के पालक निर्धन और कुंती के जाति वर्ग से हीन थे ! कलिंगा पुत्र का जल में बहाया जाना और उसका पालन पोषण, महाभारत कथा से गज़ब का साम्य रखता है !
ReplyDeleteआगे यह कथा बोध कथा बन जाती है , जहां एक निर्धन पालक पिता , अपनी सामर्थ्य के अनुसार अपने पुत्र को काठ का घोड़ा देता है और पुत्र जोकि भगवान का अवतार है , काठ के घोड़े बनाम सिल बट्टे की प्रतीकात्मक से निम्न वर्ग के उच्चवर्गीय अधिकारों की रक्षा करता है,उन्हें हासिल करता है! वस्तुतः यह कथा उस समय के सामाजिक ताने बाने का बखूबी विवरण देती है!
खेद है कि टीप अत्यधिक लंबी हो गई है सो अपनी बात यहीं पर समाप्त हुई !
अली जी,
Deleteखेद है तो उसपे हमारा प्रोटेस्ट है :)
कृपया टिप्पणी के दूसरे पैरे की तीसरी पंक्ति में 'प्रतीकात्मक' के स्थान पर 'प्रतीकात्मकता' पढ़ें !
Delete@ संजय जी,
वक़्त पर काम पे जाना और रोजी रोटी का जुगाड़ भी करना है श्रीमान जी ! बहरहाल आपका प्रोटेस्ट सिर माथे पर :)
रोचक लोक कथा
ReplyDeleteइससे पता चलता है कि पहले जाति भेद नहीं था. किसी भी वर्ण के व्यक्ति बतौर राजा भी स्वीकार्य होते थे, जाति गत निर्योग्यतायें बाद में आईं गुलामी के दौरान इनमें बेतहाशा वृद्धि हुई.
ReplyDeleteअक्सर लोक कथाओं क स्वरुप समय के साथ बदलता चला जाता है ।
ReplyDeleteअरे ! हार्डी का क्या हुआ उस रात ... ? वो कुछ समीकरण हल कर रहा था ...
ReplyDeleteमेरे चिट्ठे पर दो श्रंखला चल रही हैं एक कुमाऊं यात्रा है दूसरी रामनुजन पर। मैं प्रयत्न करता हूं कि कि हर शनिवार को चिट्ठी प्रकाशित करूं। एक शनिवार को कुमाऊं यात्रा तथा उसके अगले शनिवार को रामानुजन पर।
Deleteरामानुजन पर चिट्ठी कि उस रात क्या हुआ २ फरवरी को प्रकाशित होगी। इन्तजार करें :-)
jai golu devta aap ko koti koti parnam.......sada hamara marg darsan karna.,.....jai golu devta..
ReplyDeletejai golyu bhaul karia baa dikhaya
ReplyDeletejai bala goria
jai golu devta
ReplyDeletejain goloo devta. Prabhu kripa karo aur bahu se kaho ki wah hame aur pareshan no kare and vapis laut jaye.
ReplyDeleteJai jai
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