इस लेख में चर्चा है कि यदि हमारे काम बिगड़ रहे हों तो घबराना नहीं चाहिये पर अपना कर्म करते रहना चाहिये। अच्छे काम का फल सदैव मीठा होता है।
कुछ समय पहले निशान्त जी ने तीन वृक्षों की कहानी लिखी थी। एक दिन सफर करते समय एक गुनी जन से मुलाकात हो गयी। उन्होंने इस कहानी को अलग तरह से बताया। यह मुझे पसन्द आया। आपको भी बताता हूं।
तीन पेड़ थे। तीनों के अलग-अलग सपने थे, अलग-अलग अरमान थे।।
- पहला पेड़ बहुत सुंदर था। उसका सपना एक सुंदर पेटी बनने का था जिसमें रानियों और राजकुमारियां गहने रखें;
- दूसरा पेड़ ऊंचा था। उसका सपना इतना ऊंचा होने को था कि उसे देख कर, लोगों को स्वर्ग की याद आये;
- तीसरा पेड़ बहुत मजबूत था। उसका सपना एक जहाज बनने की थी जो राजा, रानियों को समुद्र के पार ले जा सके।
- सुंदर पेड़ से, एक कटोरा बनाया गया, जो कि अंततः एक फकीर के हाथ मे आया। वह उसका प्रयोग दूध रखने और उससे दूध पीने के लिये करने लगा;
- ऊंचे पेड़ को काटकर लट्ठे बनाए गए। उन्हें सूखने के लिये रख दिया गया, ताकि ठंड में, उनका उपयोग ईंधन के रूप मे किया जा सके;
- मजबूत पेड़ से, टोकरी बना दी गयी। जिसका उपयोग कूड़ा-करकट ढोने के लिये किया जाने लगा।
एक दिन उस फकीर के पास लोग मिलने आये। वे सभी भूखे थे। फकीर के पास खाने के लिए, लकड़ी के कटोरे मे दूध के अलावा, कुछ नहीं था। फकीर ने उन्हें पीने के लिए दूध दिया। अन्य दिनों के विपरीत, जब वे दूध पीते थे तब वह कटोरा खाली तो होता था लेकिन दूसरे मुलाकती को दिये जाने से पहले, पुनः भर जाता था। कटोरा तब खाली हुआ जब अन्त में, फकीर ने उससे दूध पिया।
पेड़ ने, महसूस किया कि वह फकीर कोई और नहीं बल्कि अल्लाह के दूत मोहम्मद थे। पेड़, एक पेटी बनना चाहता था जिसमें रानियां और राजकुमारियां अपने गहने उससे निर्मित पेटी में रख सकें। लेकिन विधाता ने उसे, उसकी सेवा के लिये चुना, जिसे उसने, अपना संदेश देने के लिये पृथ्वी पर भेजा था।
एक दिन, कुछ लोग, ऊंचे पेड़ से बने लट्ठों को ले गए। उन्होंने उनसे एक क्रॉस बनाया। उसके बाद के शुकवार को, उस पर एक व्यक्ति को कील ठोक कर लटका दिया गया। इसके तीसरे दिन, अथार्त उसके बाद वाले रविवार को वह व्यक्ति पुनः जीवित हो गया।
पेड़ ने महसूस किया कि वह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि ईश्वर के पुत्र ईसा मसीह थे। वह तो केवल यह चाहता था कि लोग उसे देखकर स्वर्ग की याद करें पर ईश्वर ने उसे यह सौभाग्य दिया कि यदि लोग उसके क्रॉस का चित्र भी देखेंगे तो उन्हें धारमिकता का बोध होगा।
एक रात, एक व्यक्ति, मजबूत पेड़ से बनी कूड़ा-करकट ढोने की टोकरी में एक बच्चे को ले गया। जब वह नदी पार कर रहा था तभी तूफान आया, मूसलाधार वर्षा होने लगी, नदी मे उफान आ गया। ऐसा प्रतीत होने लगा मानो सब कुछ डूब जाएगा। लेकिन, जैसे ही नदी, उस बच्चे के पैरों तक पहुंची, उसने बच्चे के पैरों को छुआ, उफान समाप्त हो गया, तूफान थम गया, और सब शान्त हो गया। लगा कि नदी केवल बच्चे के पैर छूना चाहती थी।
पेड़ ने महसूस किया कि वह बच्चा कोई और नहीं बम्हाण्ड के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण थे। पेड़ जहाज बन, राजाओं और रानियों को ले जाना चाहता था लेकिन भगवान उसे स्वयं अपने को मथुरा से वृन्दावन स्थान ले जाने के लिये चुना।
पेड़ों के अपने गुण थे, अपने सपने थे। उन्हें अपने सपनों अनुसार काम नहीं मिला पर उन्हें जो भी काम मिला, वह उन्होंने लगन से किया। यही कारण था कि न तो वे नज़र-अदाज किये गये, न ही उपेक्षा की गयी। बल्कि, उनके सपनों को, उनके अरमानों को, बेहतर ठौर मिला। ऐसा ही हमारे लिये है।
यदि हमारे काम ठीक न हो रहे हों। तब हमें अपने भाग्य को नहीं कोसना चाहिये, घबराना नहीं चाहिये। हमें अपना काम निष्ठा से, लगन से करना चाहिये। वह सो नहीं रहा है। वह हमारे लिये कुछ अच्छा ही सोचता है, अच्छा ही करता है। हमें भरोसा रखना चाहिये। हमें अपना कर्म करना चाहिये - फल देना तो उसका काम है।
उस गुनी जन के अनुसार, यही गीता का सार है।
आप सब को जन्माष्टमी की शुभकामनायें।
इस चिट्ठी के चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से हैं
सांकेतिक शब्द
। culture, Family, Inspiration, life, Life, Relationship, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन, दर्शन, जी भर कर जियो,
इस तरह की तमाम शिक्षाप्रद कहानियों से हमारी पूर्ववर्ती पीढियां संस्कारित होती रही हैं -ये एक तरह के 'माइंड सेट' की निर्मिति में बड़ा योगदान करती आयी हैं -दुःख है अब ऐसी कहानियों की परम्परा ख़त्म हो रही है और मनुष्य भौतिकता के प्रवाह में मानसिक शान्ति,जीवन के प्रति आशावादी सोच और सकारात्मकता खोता जा रहा है! ठीक है वस्तुनिष्टता हमें यथार्थवादी बनाती है और वैज्ञानिक /प्रौद्योगिक हमें तमाम तरह की सुख सुविधाएं देती है मगर इसके चलते तरह की अनास्थायें, अविश्वास ,शंकाएं भी हमारे मन में आ पैठती हैं -एक संतुलित जीवन के लिए विज्ञान और आचार संहिता के समन्वय की जरुरत यहीं महसूस होती है ! यह विषय और भी विस्तृत चर्चा की मांग करता है !
ReplyDeleteहम अपनी योजना ईश्वर पर थोपना चाहते हैं, उसने कहीं अच्छी योजनायें रखी होती हैं, हमारे लिये।
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत कथा है.
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरणादायी पोस्ट । हमारे लोक इतिहास में सालों से सुनी और सुनाई जाने वाली ऐसी लघु कथाएं हमेशा से समाज के चरित्र निर्माण और जीवटता को समृद्ध करने में सहायक रही हैं । सुंदर पोस्ट
ReplyDeleteHappy Janamashtami !
ReplyDelete:)
ReplyDeleteबहुत ही शिक्षाप्रद कहानी और उससे भी खूबसूरत कहानी को बंया करने का अंदाज ।
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत कथा है.
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