वर्ष २०१० में, मैंने ‘टु किल अ मॉकिंगबर्ड’ उपन्यास पर 'बुलबुल मारने पर दोष लगता है' नामक श्रंखला लिखी थी। इस साल इसके प्रकाशन होने के ५० साल पूरे हुऐ थे। यह उपन्यास बीसवीं सदी के उत्कर्ष अमेरिकी साहित्य में गिना जाता है। इसने अमेरीकी जन मानस पर गहरा असर किया।
‘टु किल अ मॉकिंगबर्ड’ उपन्यास, एक वास्तविक घटना तथा उस पर चले केस (स्कॉटस्बॉरो बॉयज़ केस) पर आधारित था।
'स्कॉटस्बॉरो बॉयज़ केस' को, २०वीं शताब्दी के दूसरे चतुर्थांश में अमेरिका के सबसे प्रसिद्ध वकील, सैमुएल लाइबोविट्ज़, ने किया था। 'बुलबुल मारने पर दोष लगता है' श्रंखला में उनकी जीवनी 'कोर्टरूम' की भी चर्चा है।
आजकल मैं, मार्क गैलेन्टर की लिखी पुस्तक, 'लोवरिंग द बार - लॉयर जोकस् एन्ड लीगल कलचर' पढ़ रहा हूं। इसकी प्रस्तावना में, वे ‘टु किल अ मॉकिंगबर्ड’ और उसके वकील हीरो एटिकस फिन्च के बारे में कुछ रोचक तथ्य बताते हैं।
गैलेन्टर बताते हैं कि समाज में, वकीलों का स्थान, वास्तविक वकीलों के साथ, इस बात पर भी निर्भर करता है कि उपन्यास, फिल्म, एवं टीवी में किस तरह वकीलों को चित्रित किया जाता है। वे लिखते हैं,
१९६० के आस-पास, कानून एवं वकीलों के बारे में कुछ बेहतरीन फिल्में और टीवी सीरियल आये थे। जैसे कि, विटनेस फॉर प्रॉसिक्यूशन (१९५७), ऐनॉटमी फॉर मर्डर (१९५९), कम्पल्शन (१९५९), इनहेरिट द विंड (१९६०), जजमेन्ट एट न्यूरेमबर्ग (१९६१), ‘टु किल अ मॉकिंगबर्ड’ (१९६२) नामक फिल्में; द डिफेन्डर (१९६१-६५), पैरी मेसन (१९६६-७२), एवं ओवेन मार्शल (१९७१-७४) नामक टीवी सीरियल।
इनमें सबसे महत्वपूर्ण था - उपन्यास ‘टु किल अ मॉकिंगबर्ड’ का प्रकाशन और उस पर बनी फिल्म। अमेरिका में यह समय, कानून और वकीलों के लिये सम्मान का समय था।
‘टु किल अ मॉकिंगबर्ड’ की कहानी एलबामा के एक कस्बे की कहानी है। एटिकस फिंच इस कस्बे में वकील हैं। इस कस्बे में एक हबशी (माफी चाहूंगा पर कहानी के संदर्भ में ठीक है) पर, एक श्वेत युवती से बालात्कार का प्रयत्न करने का, मुकदमा चलता है।
सारा कस्बा उस हब्शी के खिलाफ है। फिर भी, एटिकस बेधड़क उसका बचाव में अदालत में खड़ा होता हैं। वह यह साबित भी कर देता है कि हबशी निर्दोष है फिर भी जूरी उसे सजा दे देती है। हबशी जेल से भागने का प्रयत्न करता है और मारा जाता है।
‘टु किल अ मॉकिंगबर्ड’ का अमेरीकी जन मानस पर गहरा असर रहा। १९९१ में एक सर्वे में, लोगों ने, उपन्यासों में, इस उपन्यास को उनके जीवन पर सबसे ज्यादा असर डालने वाली पुस्तक बताया।
एटिकस के व्यक्तित्व का अमेरिकी सांस्कृतिक समाज में गहरी पैठ रही। २००३ में अमेरिकी फिल्म इंस्टिट्यूट ने १०० प्रसिद्ध हीरो की लिस्ट निकाली तब उसमें एटिकस सबसे ऊपर थे - जेम्स बौंड और इंडयान जोन्स् से भी ऊपर।
मुझे नहीं मालुम कि अपने देश में इस तरह का कोई उपन्यास वकीलों पर आधारित हो कर लिखा गया या नहीं। लेकिन वास्तविक वकीलों में, अपने देश में, निःसन्देह पालकीवाला सबसे बड़े वकील हुऐ हैं। उनका जीवन प्रेरणादायक है।
पालकीवाला पर कुछ जीवनियां भी लिखी गयी हैं पर वे बेहतर तरीके से लिखी जा सकती थी। वे ऐसी नहीं हैं कि जन-मानस में पैठ बना सकें, वे वकीलों तक ही सीमित रह गयीं - शायद जरूरत है उन पर एक बेहतर जीवनी की।
इस समय यह भी जरूरत है वकीलों पर आधारित कुछ अच्छी कहानियों और उपन्यासों की।
। Lowering the Bar, Marc Galanter,
। Advocate, Lawyer,
#BookReview #Biography
माननीय न्यायविद भी आखिर क्यों वंचित रहें!
ReplyDeleteअरविन्द जी इसके लिये आपको पुस्तक पढ़नी पड़ेगी। यदि आपने नहीं पढ़ी है तो पढ़े और इस पर बनी फिल्म भी देखें।
Deleteइस पुस्तक के मुख्य पात्र स्काउट और एटिकस हैं। स्काउट ६ साल की है और इसके कथानक को बता रही हैं। एटिकस उनके वकील पिता हैं। यह एटिकस को मॉडेल वकील के रूप में पेश करती है। इसमें न्यायाधीश का रोल कम है।
रोचक जानकारी
ReplyDeleteNothing much is written on advocates and law practitioners in India , may be due to the fact that several such people have contributed in shaping of the nation. Be it Gandhi, Nehru , Patel or Palkiwala. Their lives have set examples for us to follow and practice . Instead of reading books .... their lives are open books for all of us.
ReplyDeleteBest Regards
By the way there have been few movies released in recent past in India based on judgement / law sector . Undertrail , Shahid , Mohan Joshi hazir ho , Jolly LLB are few of them .
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